कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक बातों में एक दिवंगत नेता का नाम लिया है, जिससे नया विवाद खड़ा हो गया है। इस बार उन्होंने एक तेज़ भाषण में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का ज़िक्र किया। लेकिन इस बार सिर्फ नैतिक बात नहीं, बल्कि एक साफ़ गलती की वजह से राहुल गांधी को ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, और उनकी भरोसेमंदी पर सवाल उठ रहे हैं।
राहुल गांधी ने 2025 के एनुअल लीगल कॉन्क्लेव में कहा- ‘जब मैं कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ रहा था, अरुण जेटली जी को मुझे धमकाने भेजा गया,’ उन्होंने आगे कहा, ‘जेटली जी ने मुझसे कहा कि अगर तुम सरकार का विरोध जारी रखते हो तो हमें तुम्हारे खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ेगी।’ गांधी ने जवाब में कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि आपको पता है कि आप किससे बात कर रहे हैं।’
यह बयान जो एक साहसिक किस्से की तरह सुनाया गया, वह जल्द ही विवाद का विषय बन गया। कुछ ही घंटों में बीजेपी नेताओं और राजनीतिक टिप्पणीकारों ने गांधी के दावे की सख्त आलोचना की, यह बताते हुए कि अरुण जेटली का निधन अगस्त 2019 में हुआ था, जबकि कृषि कानून 2020 में पेश किए गए और उसी वर्ष पारित हुए। यानी, वक्त का मेल ही इस दावे को गलत साबित कर देता है।
मृत नेताओं का बार-बार नाम लेने की आदत
यह घटना राहुल गांधी की राजनीतिक तरीके का हिस्सा है, जिसमें वह अक्सर मर चुके नेताओं का नाम अपने फायदे के लिए लेते हैं, लेकिन उनके पास इसका कोई पक्का सबूत नहीं होता।
2019 में भी राहुल गांधी ने यह दावा किया था कि दिवंगत गोवा मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उन्हें बताया था कि राफेल डील में प्रधानमंत्री मोदी ने संस्थागत प्रक्रियाओं को दरकिनार किया था। पर्रिकर के कार्यालय ने उस समय इस दावे को झूठा करार देते हुए इसे “निजी बैठक का तोड़-मरोड़” और “नाम का अनुचित इस्तेमाल” कहा था।
अब गांधी पर और भी गंभीर आरोप लगे हैं, ना सिर्फ विरासत का फायदा उठाने का, बल्कि एक ऐसी घटना गढ़ने का जो हुई ही नहीं। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने नुकसान की भरपाई की कोशिश करते हुए कहा कि राहुल गांधी शायद किसी पुराने राजनीतिक प्रसंग को वर्तमान संदर्भ से जोड़ बैठे, या किसी व्यापक दबाव के माहौल की बात कर रहे थे।
लेकिन तब तक बात बिगड़ चुकी थी। जिस अंदाज में गांधी ने बयान दिया, आत्मविश्वास और नाटकीयता के साथ उसने किसी भी अन्य व्याख्या की गुंजाइश नहीं छोड़ी। और तारीखों की चूक तो पूरी तरह साफ़ है।
नैतिक सवाल: क्या मतृ नेताओं के साथ हुई निजी बातें बताना सही है?
यह घटना एक बड़ा नैतिक सवाल उठाती है जो सभी पार्टियों के लिए है: क्या राजनीति में मर चुके नेताओं के साथ हुई बताई गई निजी बातें बताना सही है, खासकर जब उनकी सच्चाई जांचना मुश्किल हो?
भारतीय राजनीति में विरासत का हवाला देना आम है। राहुल गांधी खुद अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी का जिक्र अक्सर करते हैं, उन्हें प्रेरणा और बलिदान का प्रतीक बताते हैं। लेकिन यह सिर्फ विरासत की बात होती है, न कि नीतिगत दावों या धमकी जैसे आरोपों की।
अरुण जेटली को सरकार की डराने-धमकाने वाली राजनीति का संदेश भेजने वाला बताना, वह भी उनके मरने के बाद और बिना किसी सही जानकारी के, बहुत गंभीर बात है। और जब यह बात सच साबित नहीं होती, तो इससे राजनीति में हमला होता है और जनता का भरोसा भी टूटता है।
अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली की प्रतिक्रिया
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली ने भी इस मामले पर X (पहले ट्विटर) पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि उनके पिता का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वो किसी को विरोधी विचार रखने पर धमकाएं। उन्होंने बताया कि उनके पिता लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते थे और हमेशा सहमति बनाने की कोशिश करते थे।
रोहन ने यह भी लिखा कि राहुल गांधी को ऐसे लोगों के बारे में बोलते समय सावधानी बरतनी चाहिए जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राहुल गांधी ने इसी तरह की बात दिवंगत मनोहर पर्रिकर के बारे में भी की थी, जो उनके अनुसार ‘उतनी ही गलत और असंवेदनशील’ थी।
विवाद बढ़ने के बाद बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी X पर पोस्ट किया। उन्होंने तथ्यों को बताते हुए लिखा कि अरुण जेटली का निधन 24 अगस्त 2019 को हुआ था, जबकि कृषि कानूनों का मसौदा 3 जून 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाया गया था, और फिर सितंबर 2020 में ये कानून बने।
अमित मालवीय ने कहा कि राहुल गांधी का भाषण तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अपनी कहानी को सही साबित करने के लिए इतिहास और तारीखों को नहीं बदलना चाहिए।
एक ऐसे नेता के लिए जो खुद को व्यवस्था का निडर विरोधी साबित करने की कोशिश कर रहा है, यह घटना सिर्फ एक छोटी गलती नहीं बल्कि भरोसे का बड़ा सवाल है।