भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को देश की मौद्रिक नीतियों को लेकर कई बड़े ऐलान किये। मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिनों की बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ब्याज दरों पर भी अहम जानकारी दी। उन्होंने एमपीसी के फैसलों को देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति और भावी रणनीतियों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण करार दिया। सबसे बड़ी बात यह कि अमेरिका के टैरिफ वार के बाद भी आरबीआई ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। आरबीआई ने घोषणा की कि रेपो रेट 5.50% पर ही रहेगा।
टैरिफ वार पर है नजर
वाइस वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अश्विनी राणा ने बताया कि RBI ने SDF और Bank Rate में भी कोई बदलाव नहीं किया है। RBI पिछले रेट कट के प्रभाव को भी स्टडी कर रहा है। इससे जहां लोन लेने वाले लोगों को इएमआई कम होने की उम्मीदों को झटका लगा है, वहीं बैंकों में रकम जमा करने वालों को राहत मिली है। ऐसा इसलिए कि रेपो रेट कम होने पर उन्हें कम ब्याज मिलता था। RBI का मानना है कि महंगाई दर 4% से नीचे बनी हुई है और GDP ग्रोथ भी संतोषजनक बनी हुई है। इस कारण फिलहाल कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। हालांकि, टैरिफ वार पर उसकी नजर बनी हुई है।
इधर, RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मुंबई में घोषणा की कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने तटस्थ रुख जारी रखने का फैसला किया गया है। उन्होंने बताया कि ब्याज दरों को भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और देश में मौजूद क्षमता को देखते हुए तय किया गया है। ऐसे में नीतिगत दरों से जुड़े ऋणों की ईएमआई में फिलहाल बदलाव नहीं होने वाली। इससे पहले उन्होंने जून की मॉनेटरी पॉलिसी में रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स में कमी का ऐलान किया था। अप्रैल की पॉलिसी में भी RBI ने 25 बेसिस प्वाइंट्स की कमी की थी। फिलहाल यह 5.50% पर बरकरार है।
चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान 6.5% पर बरकरार
चालू वित्त वर्ष की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वित्त वर्ष 2026 के लिए विकास दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है। उन्होंने आगे कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने सर्वसम्मति से अल्पकालिक उधार दर या रेपो दर को तटस्थ रुख के साथ 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
महंगाई के अनुमानों को 3.7% से घटाकर 3.1% किया गया
महंगाई पर आरबीआई गवर्नर ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के लिए इसके अनुमान को 3.7 प्रतिशत से घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया। फरवरी 2025 से, आरबीआई नीतिगत दरों में 100 आधार अंकों की कटौती कर चुका है। जून में अपनी पिछली नीति समीक्षा में, उसने रेपो दर को 50 आधार अंकों की कटौती करके 5.5 प्रतिशत कर दिया था।
रेपो रेट में की गई थी 100 आधार अंकों की कटौती
सरकार ने केंद्रीय बैंक को यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत के मार्जिन के साथ 4 प्रतिशत पर बनी रहे। एमपीसी की सिफारिश के आधार पर, आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति में कमी के बीच फरवरी और अप्रैल में रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती की तथा जून में 50 आधार अंकों की कटौती की। इस साल फरवरी से खुदरा मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से नीचे चल रही है। खाद्य कीमतों में कमी और अनुकूल आधार प्रभाव के कारण जून में यह छह साल के निचले स्तर 2.1 प्रतिशत पर आ गई।
जून में महंगाई के आंकड़ों में दिखी राहत
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में लगभग आधी हिस्सेदारी रखने वाली खाद्य मुद्रास्फीति जून में घटकर (-)1.06 प्रतिशत रह गई, जो मई में 0.99 प्रतिशत थी। यह गिरावट मुख्यतः सब्ज़ियों, दालों, मांस और मछली, अनाज, चीनी, दूध और मसालों जैसी प्रमुख श्रेणियों में कम कीमतों के कारण हुई। एमपीसी में आरबीआई के तीन अधिकारी – संजय मल्होत्रा (गवर्नर), पूनम गुप्ता (डिप्टी गवर्नर), राजीव रंजन (कार्यकारी निदेशक) – और तीन बाहरी सदस्य – नागेश कुमार (निदेशक और मुख्य कार्यकारी, औद्योगिक विकास अध्ययन संस्थान, नई दिल्ली), सौगत भट्टाचार्य (अर्थशास्त्री) और राम सिंह (निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स) शामिल हैं।
क्या होता है टैरिफ वार
टैरिफ युद्ध देशों के बीच एक आर्थिक लड़ाई है जिसमें वे एक-दूसरे के निर्यात पर अतिरिक्त कर लगाते हैं। टैरिफ युद्ध का उद्देश्य अन्य देशों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाना होता है, क्योंकि टैरिफ आयातक देश के नागरिकों को निर्यातक देश के उत्पाद खरीदने से हतोत्साहित करते हैं, क्योंकि इससे उन उत्पादों की कुल लागत बढ़ जाती है।