मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए कोर्ट का फैसला आने के बाद नित-नये खुलासे हो रहे हैं। अब साध्वी प्रज्ञा ने भी इस मामले में नया खुलासा किया है। उनके खुलासे ने विवादास्पद ‘भगवा आतंकवाद’ की कहानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के अधिकारियों पर मालेगांव विस्फोट की जांच के दौरान उन्हें क्रूर यातनाएं देने और प्रधानमंत्री तथा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को झूठे मामले में फंसाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है।
खड़े हो रहे कई सवाल
शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए, साध्वी प्रज्ञा ने दावा किया कि एटीएस अधिकारियों ने उन पर नरेंद्र मोदी, आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, योगी आदित्यनाथ, आरएसएस प्रचारक इंद्रेश कुमार, राम माधव और सुदर्शन जैसे शीर्ष राष्ट्रवादी नेताओं का नाम 2008 के मालेगांव विस्फोट से जोड़ने का दबाव डाला था, जिसके कारण वे 24 दिनों तक मानसिक और शारीरिक रूप से टूटती रहीं। उनके ये दावे ऐसे समय में आए हैं, जब कुछ ही दिन पहले एक विशेष एनआईए अदालत ने 17 साल पुराने इस मामले में सभी सात आरोपियों को सबूतों को अपर्याप्त बताते हुए बरी कर दिया था। ये खुलासे अब यूपीए काल में राजनीतिक प्रतिशोध, मनगढ़ंत कहानियों और जांच तंत्र के दुरुपयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
“मोदी का नाम लो तो नहीं करेंगे प्रताड़ित”:
साध्वी प्रज्ञा ने महाराष्ट्र एटीएस अधिकारियों के हाथों दी गई यातनाओं की भयावाहता भी बताई है। उन्होंने अपने साथ हुई प्रताड़नाओं को याद करते हुए कहा, “उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम मोदी को जानती हो, उनका भी नाम बताओ। अगर तुम उनका नाम लोगी, तो हम तुम्हें और प्रताड़ित नहीं करेंगे।’” उनके अनुसार, यह दबाव केवल मौखिक रूप से ही नहीं था, बल्कि तीन हफ़्तों से ज़्यादा समय तक हिरासत में अमानवीय यातनाओं के साथ था।
अदालत को भी बता चुकी हैं साध्वी
उन्होंने कहा कि मुझे 13 दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और 24 दिनों तक प्रताड़ित किया गया। उन्होंने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ दिया। मुझे मोदी, भागवत, योगी, राम माधव, इंद्रेश जी सभी सम्मानित हस्तियों के नाम लेने के लिए मजबूर किया गया। मैंने यह सब अदालत में पेश किए गए एक लिखित बयान में दर्ज भी कराया है। उनके दावे, राजनीतिक निर्देश पर एक झूठी भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ने की जानबूझकर और सोची-समझी कोशिश की ओर इशारा करते हैं।
कांग्रेस पर राजनीतिक साजिश रचने का आरोप
साध्वी प्रज्ञा ने इस साजिश के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी को जिम्मेदार ठहराया और आरोप लगाया कि यूपीए सरकार के तहत मालेगांव की पूरी जांच आरएसएस, भाजपा और हिंदू समर्थक संगठनों को निशाना बनाने के लिए रची गई थी। उन्होंने कहा कि वे सनातन धर्म को नष्ट करना चाहते थे, सेना को बदनाम करना चाहते थे और आरएसएस को बदनाम करना चाहते थे। कांग्रेस ने अपने एजेंडे को अंजाम देने के लिए एटीएस जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल किया।”
अधिकारी कहने लायक नहीं है परमवीर सिंंह
साध्वी प्रज्ञा के बयान अन्य आरोपियों के पहले के दावों की भी पुष्टि करते हैं, जिन्होंने कहा था कि राजनीतिक प्रभाव में एटीएस ने “हिंदू आतंक” का नैरेटिव गढ़ने के लिए हिंदू संगठनों के लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। साध्वी ने विशेष रूप से मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह पर सत्ता के इस कथित दुरुपयोग में अहम भूमिका निभाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वह अधिकारी कहलाने के लायक नहीं हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप से भरा है मामला
जानकारी हो कि मालेगांव विस्फोट 29 सितंबर, 2008 को हुआ था, जब एक मस्जिद के पास विस्फोटकों से लदी एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हो गया था, जिसमें छह लोग मारे गए थे और 100 से ज़्यादा घायल हुए थे। इसके तुरंत बाद एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य को गिरफ्तार कर लिया था। 2010 में मामला एनआईए को सौंप दिया गया, जिसने अंततः मकोका जैसे कड़े आरोप हटा दिए। वर्षों से मुकदमे ने सबूतों में स्पष्ट विसंगतियों को उजागर किया और गिरफ्तारियों के पीछे की मंशा पर संदेह पैदा किया। 31 जुलाई को 17 साल की सुनवाई के बाद विशेष एनआईए अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। दक्षिणपंथी नेताओं ने इस बरी होने को “सत्य की जीत” और राष्ट्रवादी ताकतों को बदनाम करने के उद्देश्य से कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार की हार बताया है।
न्याय के लिए 17 साल की लड़ाई का अंत
2008 से 2025 तक, मालेगांव मामला न केवल अपनी कानूनी पेचीदगियों के लिए, बल्कि व्यापक राजनीतिक परिणामों के लिए भी सुर्खियों में रहा। कांग्रेस नेताओं ने हिंदुत्व विचारधारा को आतंकवाद के समकक्ष रखने के लिए यूपीए काल के भगवा आतंकवाद के नैरेटिव का इस्तेमाल हथियार के रूप में किया। साध्वी प्रज्ञा के बरी होने और उनके द्वारा यातना दिए जाने के दर्दनाक कहानी के बाद अब तत्कालीन महाराष्ट्र एटीएस और उसके राजनीतिक पर्यवेक्षकों द्वारा इस्तेमाल किए गए तरीकों की तत्काल जांच की आवश्यकता है।
परमबीर सिंह और जांच में शामिल अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की फिर से जांच होनी चाहिए। अदालत पहले ही एक अन्य एटीएस अधिकारी, एसीपी शेखर बागड़े पर आरडीएक्स रखने और रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के आरोप में जांच का आदेश दे चुकी है। साध्वी के ये नए खुलासे इस बात की व्यापक जांच के लिए मामला मज़बूत करते हैं कि कैसे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल किया गया।
सामने आनी चाहिए पूरी सच्चाई
साध्वी प्रज्ञा के ये आरोप केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं हैं, बल्कि अदालत में पेश किए गए उनके लिखित बयान में दर्ज हैं। अगर ये आरोप साबित हो जाते हैं, तो ये न केवल हिरासत में दुर्व्यवहार को उजागर करते हैं, बल्कि भगवा आतंक के राजनीतिक रूप से राष्ट्रवादियों को बदनाम करने के प्रयासों को भी उजागर करते हैं। हाल ही में मालेगांव मामले में आए फैसले ने निर्दोषों को तो बरी कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या अब इस साज़िश को रचने वाले दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा? अब देश और सत्ता के इस दुरुपयोग के शिकार पूरी सच्चाई और न्याय के हकदार हैं।