1971 का साया : बांग्लादेश ने फिर पाकिस्तान से औपचारिक माफ़ी की रखी मांग

बांग्लादेश ने इशाक डार की यात्रा के दौरान कहा कि 1971 के नरसंहार, जबरन धर्मांतरण और लाखों नागरिकों के विस्थापन को भुलाया नहीं जा सकता।

1971 का साया : बांग्लादेश ने फिर पाकिस्तान से औपचारिक माफ़ी की रखी मांग

माफी मांगने के मुद्दे पर पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री ने साध ली चुप्पी।

पचास से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी 1971 के मुक्ति संग्राम की विरासत बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्तों पर हावी है। ढाका में पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार की यात्रा उस इतिहास की याद दिलाने वाली बन गई, जब बांग्लादेश ने एक बार फिर इस्लामाबाद से औपचारिक माफ़ी की मांग दोहराई। यह केवल ऐतिहासिक न्याय का प्रश्न नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में शक्ति-संतुलन को प्रभावित करने वाला अहम मुद्दा भी है।

ढाका का स्पष्ट रुख

बांग्लादेश ने डार की यात्रा के दौरान साफ़ कहा कि 1971 के नरसंहार, जबरन धर्मांतरण और हिंदुओं समेत लाखों नागरिकों के विस्थापन जैसे अपराधों को भुलाया नहीं जा सकता। मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पाकिस्तान की हठधर्मिता ही मेल-मिलाप में सबसे बड़ी बाधा है। यह रुख आंशिक रूप से घरेलू राजनीति से भी जुड़ा है, क्योंकि बांग्लादेश की सरकार खुद को राष्ट्रीय गौरव और शहीदों की विरासत का संरक्षक बताना चाहती है।

इशाक डार ने साधी चुप्पी

डार ने अपनी यात्रा में माफ़ी की मांग पर चुप्पी साधे रखी और इसके बजाय विपक्षी बीएनपी तथा जमात-ए-इस्लामी नेताओं से मुलाक़ात कर ली। यह वही जमात है जिसने 1971 में पाकिस्तान सेना का समर्थन किया था। ऐसे कदमों ने ढाका के राजनीतिक और सामाजिक माहौल में पुराने ज़ख्मों को हरा कर दिया। पाकिस्तान की यह रणनीति दिखाती है कि वह अभी भी बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करता है।

भारत ने निभाई थी निर्णायक भूमिका

भारत इस पूरे परिदृश्य का एक अहम पक्ष है। 1971 के युद्ध में भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति में निर्णायक भूमिका निभाई थी। आज भी ढाका के पाकिस्तान से माफ़ी मांगने के रुख को भारत एक तरह से नैतिक समर्थन देता है, क्योंकि यह उस ऐतिहासिक हस्तक्षेप को उचित ठहराता है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के लिए माफ़ी मान लेना न केवल घरेलू राजनीतिक असुरक्षा का कारण बनेगा, बल्कि भारत के पक्ष को भी नैतिक बल देगा—यही कारण है कि इस्लामाबाद लगातार टाल-मटोल करता रहा है।

क्षेत्रीय कूटनीति पर असर

बांग्लादेश की यह मांग केवल दो देशों के बीच विवाद नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की स्थिरता और सहयोग के लिए भी चुनौती है। SAARC जैसी क्षेत्रीय संस्थाएं पहले ही निष्क्रिय पड़ी हैं। ऐसे में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच अविश्वास का गहराना क्षेत्रीय आर्थिक व सुरक्षा सहयोग को और कमजोर करता है। दूसरी ओर, चीन बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश और पाकिस्तान में CPEC के जरिये अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। ऐसे में ऐतिहासिक मुद्दे अनसुलझा रहने से चीन को भी ‘बैलेंसिंग पॉइंट’ मिलता है।

1971 का साया अब केवल अतीत की कहानी नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की वर्तमान और भविष्य की राजनीति पर भी असर डालता है। बांग्लादेश की औपचारिक माफ़ी की मांग पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश है, लेकिन पाकिस्तान का इनकार अविश्वास को और गहराता है। जब तक पाकिस्तान अपने अतीत का सामना नहीं करता, तब तक न तो ढाका-इस्लामाबाद रिश्तों में सुधार संभव है और न ही दक्षिण एशिया स्थिर सहयोग की राह पर आगे बढ़ सकता है।

Exit mobile version