“सनातन की विजय, झूठे आरोपों की हार”: मालेगांव केस में बरी होने पर बोलीं प्रज्ञा ठाकुर

"17 साल बाद सत्य की जीत": मालेगांव धमाके में प्रज्ञा ठाकुर सहित सभी आरोपी बरी

"सनातन की विजय, झूठे आरोपों की हार": मालेगांव केस में बरी होने पर बोलीं प्रज्ञा ठाकुर

मुंबई की विशेष NIA अदालत ने 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में गुरुवार को सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। बरी किए गए आरोपियों में पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी शामिल थीं, जिन्होंने इस फैसले को “सनातन धर्म की जीत” बताते हुए कहा कि वर्षों से “भगवा आतंकवाद” के नाम पर राष्ट्रभक्तों को बदनाम किया गया।

प्रज्ञा ठाकुर ने इस फैसले को न केवल व्यक्तिगत बल्कि आध्यात्मिक न्याय भी बताया। उनका कहना था कि उन्हें तपस्वी जीवन के बावजूद गिरफ्तार कर यातनाएं दी गईं और आतंकवादी ठहराया गया। अब अंततः “भगवा की जीत हुई और सत्य ने स्वयं बोलना शुरू किया।” प्रज्ञा को स्वास्थ्य कारणों से अदालत में कार्यवाही के दौरान गवाही बॉक्स में बैठने की अनुमति दी गई थी।

विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को पूरी तरह साबित नहीं कर सका। इसके चलते अदालत ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधंकर धर्म द्विवेदी उर्फ शंकराचार्य और समीर कुलकर्णी को भी सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।  इन सभी को UAPA, शस्त्र अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपित किया गया था।

यह मामला 29 सितंबर 2008 को मालेगांव की एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में हुए धमाके से जुड़ा था, जिसमें छह लोगों की जान गई थी और 95 घायल हुए थे। पहले 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से सात पर ही मुकदमा चला।

प्रज्ञा ठाकुर की भावनात्मक प्रतिक्रिया: सभी सनातनियों की जीत

बरी होने के बाद, साध्वी प्रज्ञा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा, “कांग्रेस और सभी नास्तिक, जिन्होंने भगवा आतंकवाद और हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द गढ़े, अब शर्मिंदा हुए हैं। भगवा, हिंदुत्व और सनातन की जीत ने सभी सनातनियों और राष्ट्रभक्तों की विजय सुनिश्चित की है। जय हिंदू राष्ट्र, जय श्रीराम।”

कस्टोडियल टॉर्चर के कारण उत्पन्न हुई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहीं प्रज्ञा ठाकुर ने कोर्ट के फैसले को अपने जीवन का अहम मोड़ बताया। उन्होंने कहा, “मैं एक तपस्विनी जीवन जी रही थी। मुझे गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया और आतंकवादी घोषित किया गया। लेकिन अब भगवा विजयी हुआ है, और सच ने अपना स्वर पाया है।”

नेताओं ने कांग्रेस पर ‘हिंदू आतंक’ के झूठे नैरेटिव को लेकर साधा निशाना

इस फैसले के बाद कई नेताओं ने कांग्रेस पार्टी पर “हिंदू आतंक” का झूठा नैरेटिव फैलाने का आरोप लगाया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “आतंकवाद कभी भगवा नहीं था, न है और न ही कभी होगा। हिंदू समुदाय पर लगाया गया झूठा कलंक अब समाप्त हो गया है। कांग्रेस को राष्ट्रभक्तों को बदनाम करने के लिए माफी मांगनी चाहिए।”

डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा, “हिंदू आतंकवाद जैसा शब्द केवल राजनीतिक लाभ के लिए गढ़ा गया था। 17 वर्षों की पीड़ा के बाद, अब सत्य की जीत हुई है। शिवसेना ने हमेशा कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा का समर्थन किया क्योंकि हम जानते थे कि आरोप झूठे हैं।”

एक राजनीतिक रूप से प्रभावित जांच और मुकदमा

NIA ने 2011 में महाराष्ट्र ATS से जांच अपने हाथ में ली थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों और बचाव पक्ष के 8 गवाहों की गवाही सुनी। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों को घटनास्थल से जोड़ने में विफल रहा और कोई ठोस फॉरेंसिक सबूत भी प्रस्तुत नहीं कर सका। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सुधाकर चतुर्वेदी के आवास पर विस्फोटक पदार्थ लगाए जाने के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।

भारतीय सेना में सेवा देने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने कहा, “यह एक बेहद पीड़ादायक यात्रा रही है। हमने नार्को टेस्ट के लिए स्वेच्छा से सहमति दी, लेकिन जब परिणाम नैरेटिव के खिलाफ आए तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। यह केस संस्थानों के खिलाफ नहीं था, बल्कि उनमें बैठे कुछ लोगों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग था।”

मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय ने कहा, “हमारे परिवारों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ना झेलनी पड़ी। आतंकवादी का टैग हमारे साथ था। आज हमने अपनी गरिमा फिर से हासिल की है।”

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कोर्ट के फैसले पर trप्रतिक्रिया देते हुए भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि साध्वी प्रज्ञा ने जो सहा, वह किसी भी महिला के लिए असहनीय है। उन्होंने कांग्रेस पर “भगवा आतंक” जैसे शब्द का चुनावी लाभ के लिए उपयोग करने का आरोप लगाया।

वकील जेपी मिश्रा, जो कुछ आरोपियों की ओर से पेश हुए, ने ANI को बताया, “यह मामला 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले एक राजनीतिक साजिश का उदाहरण है। यह फैसला साबित करता है कि ‘भगवा आतंक’ एक काल्पनिक नैरेटिव था।” उन्होंने कहा कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि “कोई हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता।”

कानूनी अंत या नई शुरुआत?

हालांकि अदालत का फैसला बरी किए गए लोगों के लिए राहत लेकर आया है, लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। बम धमाके में मारे गए लोगों के परिवारों की ओर से पेश वकील ने कहा है कि वे इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। उनका कहना है, “पीड़ितों को अभी न्याय नहीं मिला है।”

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये की मुआवजा राशि दी जाए।

सत्य की जीत, राजनीतिक एजेंडों की हार

मालेगांव का यह फैसला केवल एक न्यायिक निर्णय नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक चेतना का क्षण है। इसने यह उजागर किया कि किस प्रकार जांच एजेंसियां और राजनीतिक शक्तियाँ मिलकर किसी व्यक्ति या समूह को वैचारिक कारणों से निशाना बना सकती हैं।

कभी एक पूरे धर्म को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया “भगवा आतंक” जैसा शब्द अब स्वयं ही खारिज हो गया है।

यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका की उस भूमिका को पुनः पुष्ट करता है, जिसमें झूठे नैरेटिव्स के विरुद्ध सत्य की रक्षा सर्वोपरि होती है।

साध्वी प्रज्ञा और अन्य आरोपियों के लिए यह वर्षों बाद मिला न्याय है, जबकि जिन्होंने इस झूठे नैरेटिव को राजनीतिक लाभ के लिए गढ़ा था—उनके लिए यह शर्म का क्षण है।

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