क्या AI-हेल्थ गैजेट वाकई भरोसेमंद हैं? जानें मंजूरी की प्रक्रिया और सावधानियां

भारत में दवाओं और मेडिकल उपकरणों की निगरानी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन करता है।

क्या AI-हेल्थ गैजेट वाकई भरोसेमंद हैं? जानें मंजूरी की प्रक्रिया और सावधानियां

AI आज हर क्षेत्र में अपना कमाल दिखा रहा है। अब मार्केट में नए-नए हेल्थ गैजेट्स आ रहे हैं, जो लोगों को उनकी हेल्थ से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं।  लेकिन क्या हम इन AI गैजेट्स पर पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं। इनमें शामिल है- AI स्टेथोस्कोप, स्मार्ट घड़ियां जो हार्टबीट दिखाती हैं, ब्लड शुगर सेंसर और ऑक्सीजन लेवल मॉनिटर करती है। यह सभी गैजेट्स कुछ ही समय में बिमारियों का पता लगा लेते है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये गैजेट्स सच में सुरक्षित और भरोसेमंद हैं। क्या ये केवल शुरुआती संकेत दिखाते हैं या गंभीर बीमारियों का सही पता भी लगा सकते हैं?

AI-हेल्थ गैजेट कितने भरोसेमंद हैं?

AI-हेल्थ गैजेट जैसे स्मार्ट वॉच, ECG मॉनिटर और ब्लड शुगर सेंसर हमें हेल्थ अलर्ट तो दे सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ये हमेशा सही बताएं। कई बार ये सिर्फ शुरुआती संकेत दिखाते हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ ECG मॉनिटर हार्ट अटैक के संकेत भी मिस कर चुके हैं। यानी गंभीर बीमारियों में सिर्फ इन गैजेट्स पर भरोसा करना सही नहीं है। इन्हें केवल स्वास्थ्य की जानकारी और अलर्ट दिखाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए , बीमारी का आखिरी फैसला करने के लिए नहीं।

AI-हेल्थ गैजेट सेंसर और एल्गोरिद्म पर काम करते हैं

AI-हेल्थ गैजेट सेंसर और एल्गोरिद्म की मदद से काम करते हैं। सेंसर मरीज की जानकारी इकट्ठा करता है और AI बताता है कि स्वास्थ्य कैसा है। लेकिन हर तकनीक की अपनी सीमाएं होती हैं। उम्र, बीमारी या लाइफस्टाइल में अलग पैटर्न होने पर AI हमेशा सही नतीजा नहीं दे पाता। इसलिए सवाल उठता है कि ये गैजेट सिर्फ डेटा के ट्रेंड दिखा रहे हैं या सच में गंभीर स्वास्थ्य की सही निगरानी कर रहे हैं।

भारत में मंजूरी कौन देता है?

भारत में दवाओं और मेडिकल उपकरणों की निगरानी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) करता है। इसके प्रमुख अधिकारी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) हैं। नए मेडिकल गैजेट्स बाजार में लाने से पहले इनकी मंजूरी लेना जरूरी है, ताकि मरीजों को कोई नुकसान न पहुंचे और गैजेट्स सही और भरोसेमंद रिजल्ट दें।

मंजूरी की प्रक्रिया कैसे चलती है?

भारत में AI-हेल्थ गैजेट्स यानी स्वास्थ्य संबंधी स्मार्ट उपकरणों की मंजूरी का तरीका काफी व्यवस्थित है। सबसे पहले यह देखा जाता है कि यह गैजेट सच में मेडिकल डिवाइस है या नहीं, यानी यह बीमारी का पता लगाने, उसे ट्रैक करने, इलाज करने या रोकने में मदद करता है या नहीं। फिर इसे उसके जोखिम के हिसाब से चार क्लास में बांटा जाता है – Class A कम जोखिम से Class D ज्यादा जोखिम तक।

निर्माता को CDSCO के ऑनलाइन पोर्टल ‘सुगम’ पर आवेदन करना होता है। इसमें कुछ जरूरी दस्तावेज़ जमा करने होते हैं – जैसे कवरिंग लेटर, गैजेट का क्लास, इसमें इस्तेमाल सॉफ्टवेयर का विवरण और क्लिनिकल डेटा। अगर गैजेट विदेश में बना है, तो एक अधिकृत भारतीय एजेंट भी रखना होता है, जो CDSCO से संपर्क करने और प्रक्रिया में मदद करता है।

इसके बाद CDSCO दस्तावेज़ों को चेक करता है, परीक्षणों का मूल्यांकन करता है और कभी-कभी फैक्ट्री का निरीक्षण भी करता है। हाई-रिस्क वाले गैजेट्स के लिए यह प्रक्रिया और भी कड़ी होती है। सभी जांच पूरी होने के बाद ही गैजेट को भारत में बेचने की मंजूरी मिलती है।

AI-हेल्थ गैजेट का इस्तेमाल धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। भविष्य में ये गैजेट शायद ज्यादा भरोसेमंद रिजल्ट भी दे सकें। लेकिन तब भी डॉक्टर की सलाह और मरीज का सर्तक होना जरूरी है। फिलहाल, ये गैजेट हेल्थ मॉनिटरिंग में मदद कर सकते हैं, लेकिन बीमारी का अंतिम फैसला या इलाज के लिए इन्हें पूरी तरह भरोसेमंद नहीं माना जा सकता।

 

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