नेपाल से पहले इन देशों मे हो चुका है तख्तापलट- जानिए क्या थी वजह और और अब कहां है उन देशों के नेता

तख्तापलट के बाद कहां गए नेता और कैसे बिता रहे जीवन

नेपाल से पहले इन देशों मे हो चुका है तख्तापलट- जानिए क्या थी वजह और और अब कहां है उन देशों के नेता

नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर बैन लगते ही हालात बेकाबू हो गए। लोग, खासकर युवा पीढ़ी, गुस्से में सड़कों पर उतर आए और हर जगह बवाल मच गया। काठमांडू से लेकर छोटे शहरों तक लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, पुलिस स्थिति को काबू में नहीं ला पा रही। इसी बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया और खबरें आ रही हैं कि वे दुबई भागने की तैयारी में हैं। यही वजह है कि देश में हर तरफ अफ़रा-तफ़री मची हुई है। यह ऐसा पहली बार नही हो रहा है जब किसी देश का तख्तापलट हुआ हो या किसी देश के नेता, मंत्री देश छोड़ के भाग रहे हो। पिछले कुछ सालोंं में भारत के पड़ोसी देशों में ऐसा देखने को मिला है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।

पाकिस्तान में तख्तापलट

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी सत्ता संकट देखा है। पाकिस्तान में एक ऐसा कानून है, जिसे तोशखाना नाम से जाना जाता है। जिसके तहत सत्ता में बैठे नेताओं को मिले हर तरह के उपहार का रिकॉर्ड रखना जरूरी होता है। किसी विदेशी अधिकारी से मिले उपहार सीधे सरकारी तोशाखाना में जमा करना होता है। लेकिन इमरान खान ने इस नियम की अनदेखी की और उन उपहारों को कम कीमत में खरीदकर बाद में महंगे दामों पर बेच दिया। इसी वजह से उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। मई 2023 में इमरान खान को इस तोशखाना मामले में गिरफ्तार किया भी किया गया था।

इसके बाद उनके समर्थकों ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। प्रदर्शन इतना भड़क गया कि कई जगहों पर आग लगाई गई और लाहौर से इस्लामाबाद तक सरकारी और सेना की इमारतों को निशाने पर लिया गया। हिंसा के कारण पूरे देश में इंटरनेट बंद कर दिया गया और कई जगहों पर कर्फ्यू जैसे हालात बन गए। यह पहली बार था जब आम जनता ने खुलकर सेना के खिलाफ विरोध जताया और इस दौरान हजारों लोग गिरफ्तार भी किए गए।

इमरान पर 150 से ज़्यादा केस दर्ज हैं। उन्होंने फैसला किया है कि उनकी पार्टी आने वाले उप-चुनावों में नहीं उतरेगी। उनका कहना है कि ये चुनाव ठीक तरीके से नहीं हो रहे और इसमें हिस्सा लेना गलत फैसलों को सही ठहराने जैसा होगा।

बांग्लादेश में तख्तापलट

बांग्लादेश में हालात 2022 से ही तनावपूर्ण थे, और मई 2024 में जनता का गुस्सा अपने चरम पर पहुँच गया। लोग राजधानी ढाका से लेकर पूरे देश में सड़कों पर उतर आए और प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें करीब 300 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि उनकी पार्टी, आवामी लीग, और इसकी छात्र इकाई लंबे समय से विपक्ष को दबा रही थी।

अगस्त 2024 में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर भारत भागना पड़ा। 5 अगस्त 2024 को छात्र आंदोलन और सेना के हस्तक्षेप के बीच वह हेलीकॉप्टर से भारत चली गईं। उनके साथ उनकी बहन शेख रेहाना भी थीं। जनता को संबोधित करने का मौका उन्हें नहीं मिला।

इस वक्त वह नई दिल्ली में निर्वासन का जीवन जी रही हैं। बांग्लादेश में उनकी पार्टी अवामी लीग पर बैन लग चुका है। उन पर मानवता विरोधी अपराधों के आरोप लगे हैं, और जून 2025 से ये मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत में सुनवाई के दौर में है।

अफगानिस्तान में तख्तापलट

2021 में अफगानिस्तान में हालात बहुत खराब थे। तालिबान ने धीरे-धीरे बड़े शहरों पर कब्जा करना शुरू किया और अगस्त 2021 में काबुल तक पहुँच गए। उस समय अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार थी और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश चला रहे थे।

2001 में अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाया था। लेकिन 20 साल बाद 2020 में अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत विदेशी सेना को वापस बुलाने का फैसला हुआ।

तालिबान ने इस दौरान अपनी ताकत बढ़ाई और अप्रैल 2021 तक हमले तेज़ कर दिए। जैसे ही अगस्त 2021 में काबुल तक उनका कब्जा हुआ, राष्ट्रपति अशरफ गनी को जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा। उन्होंने भागते वक्त राष्ट्रपति भवन छोड़ दिया और तालिबान ने तुरंत उस पर कब्जा कर लिया। अमेरिकी दूतावास ने हेलीकॉप्टरों से लोगों को बाहर निकाला, लेकिन काबुल एयरपोर्ट पर भारी भगदड़ मची, जिसमें 170 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे। अशरफ गनी फिलहाल अबू धाबी में सुकून से निर्वासन की ज़िंदगी बिता रहे हैं। उनके ऊपर कोई मामला या केस नहीं चला है।

श्रीलंका में तख्तापलट

भारत का एक और पड़ोसी देश श्रीलंका भी बड़ी मुश्किलों से गुज़रा। 2022 में वहां भारी आर्थिक संकट आया, जिसकी वजह से लोगों ने जबरदस्त प्रदर्शन किए। देश में लगातार बिजली कट रही थी, महंगाई बहुत बढ़ गई थी और पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों ने लोगों को और परेशान कर दिया था।

हालत ऐसे बिगड़े कि गुस्से से भरे हजारों लोग राजधानी कोलंबो में राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गए। दबाव इतना बढ़ गया कि उस समय के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। इस पूरे आंदोलन को ‘अरगलाया आंदोलन’ कहा गया, जिसने श्रीलंका की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया। आज श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीलंका में शांत जीवन बिता रहे हैं

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