भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम हैं, लेकिन उसकी भी एक सीमा होती है। विरोध का स्वर तेज हो सकता है, भाषा तल्ख हो सकती है, लेकिन परिवार के दिवंगत सदस्यों को निशाना बनाना अब तक अकल्पनीय माना जाता था। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने वह रेखा भी पार कर दी है।
एआई वीडियो से शुरू हुआ बवाल
बिहार कांग्रेस की ओर से हाल ही में एक एआई-जनित वीडियो जारी किया गया। उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सपने में उनकी दिवंगत माता, हीराबेन मोदी, राजनीति पर फटकारते हुए दिखाया गया। दिसंबर 2022 में 99 वर्ष की आयु में गुजर चुकीं हीराबेन मोदी को इस तरह राजनीतिक हथियार बनाना, कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम साबित हुआ।
भाजपा ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, “यह कांग्रेस अब गांधी की नहीं, गाली की कांग्रेस बन चुकी है।” सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूटा-“सस्ती राजनीति,” “बीमार मानसिकता” और “असंवेदनशीलता” जैसे शब्द ट्रेंड करने लगे।
बिहार की महिलाओं तक पहुंचा संदेश
बिहार में यह विवाद और भी संवेदनशील है। यहां महिलाएं निर्णायक वोटर हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख महिला उद्यमियों को संबोधित करते हुए कहा था, “मेरी मां पर हुआ हमला सिर्फ मेरा नहीं, करोड़ों मां-बहनों का अपमान है।”
मोदी का यह संदेश महिलाओं के बीच गहराई से गूंजा। उज्ज्वला योजना, जनधन खाते और महिला उद्यमिता कार्यक्रमों से सीधे लाभान्वित महिलाएं इसे अपनी गरिमा से जुड़ा मामला मान रही हैं। राजनीति में मां के सम्मान पर हमला यहां व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक अपमान बन गया है।
कांग्रेस की हताशा और थका हुआ अभियान
कांग्रेस इस समय अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। उसकी “वोट अधिकार यात्रा” बिहार में शुरू तो हुई, लेकिन जनता से जुड़ने में नाकाम रही। कोई ठोस विकास एजेंडा नहीं, न कोई स्पष्ट दृष्टि—नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने अपनी ऊर्जा व्यक्तिगत हमलों और प्रचार स्टंट में झोंक दी।
एआई वीडियो इस हताशा का ताजा उदाहरण है। तकनीक से चुनावी अभियान मज़बूत हो सकते थे, लेकिन कांग्रेस ने इसे नकारात्मक प्रचार का औज़ार बना लिया। इससे उसकी नैतिक साख और भी गिर गई।
गरीब की मां और अपमान का सवाल
प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति उनकी साधारण पृष्ठभूमि से जुड़ी है। वे बार-बार बताते हैं कि कैसे उनकी मां ने गरीबी और संघर्ष में परिवार को पाला। जब कांग्रेस उनकी मां पर हमला करती है, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं बल्कि गरीब परिवारों की अस्मिता पर चोट माना जाता है।
मोदी ने स्पष्ट कहा, “कांग्रेस और आरजेडी ने मेरी मां को इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वह गरीब थीं।” बिहार जैसे राज्य में, जहां बड़ी आबादी अब भी आर्थिक संघर्ष से गुजरती है, यह तर्क गहरी छाप छोड़ रहा है।
भाजपा को मिला मुफ्त का मुद्दा
इस विवाद ने भाजपा को चुनावी वरदान दे दिया। अब पार्टी सिर्फ विकास और राष्ट्रवाद की बात नहीं करेगी, बल्कि “सम्मान की रक्षा” का नैरेटिव भी गढ़ेगी। महिलाओं और गरीब तबकों में यह मुद्दा भावनात्मक रूप से असर डाल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने भाजपा को मुफ्त में हथियार थमा दिया। जहां भाजपा हर सभा में इसे उठाएगी, वहीं कांग्रेस बचाव की मुद्रा में फंस जाएगी।
आत्मघात की राह पर कांग्रेस
कांग्रेस आखिर इस रास्ते पर क्यों चली? विश्लेषक मानते हैं कि यह हताशा का परिणाम है। लगातार चुनावी हार, घटती प्रासंगिकता और गठबंधन की राजनीति में कमजोर पड़ती आवाज ने कांग्रेस को शोर मचाने पर मजबूर किया है। लेकिन यह शोर आत्मघाती साबित हो रहा है। मां के सम्मान पर चोट कांग्रेस के लिए केवल चुनावी नुकसान नहीं, बल्कि नैतिक पतन का भी प्रतीक बन गया है।
बिहार की संस्कृति और नारी सम्मान
बिहार की राजनीति में नारी सम्मान की अवधारणा गहरी है। लालू प्रसाद यादव का महिला आरक्षण अभियान हो या नीतीश कुमार की साइकिल योजना—हर दौर में महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयास वोटों में बदलते रहे हैं। भाजपा ने केंद्र स्तर पर इसे और मजबूती दी है। कांग्रेस ने इस संदर्भ में जो गलती की है, वह यहां की जनता कभी नहीं भूलेगी। महिलाएं इसे अपने अस्तित्व पर चोट मान रही हैं। यही कारण है कि कांग्रेस का आगामी चुनावी प्रदर्शन और कमजोर होने की आशंका जताई जा रही है।
मर्यादा से परे राजनीति
बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने ऐसा कदम उठाया है जिसे आत्मघात कहना गलत नहीं होगा। प्रधानमंत्री मोदी की दिवंगत मां पर हमला कर पार्टी ने राजनीति की मर्यादा लांघ दी है। यह सिर्फ मोदी परिवार का अपमान नहीं, बल्कि भारतीय समाज में मातृसम्मान की अवधारणा का भी अपमान है।
राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं है, यह मूल्यों की भी परीक्षा है। कांग्रेस इस परीक्षा में फेल होती दिख रही है। बिहार की जनता, खासकर महिलाएं, इसे इतनी आसानी से नहीं भूलेंगी। कांग्रेस ने अनजाने में ही अपना “सेल्फ-डिस्ट्रक्शन बटन” दबा दिया है—और अब वापसी की राह पहले से कहीं ज्यादा कठिन हो चुकी है।