सीपी राधाकृष्णन की जीत: राष्ट्रवादी संदेश, विपक्षी प्रतिक्रिया और भारतीय राजनीतिक परिदृश्य

राधाकृष्णन को केवल NDA के समर्थन से ही नहीं बल्कि क्रॉस वोट भी मिले, कुल 25 अतिरिक्त वोट। इनमें YSRCP के 11 सांसद शामिल थे। बाकी 14 वोट किस पार्टी से आए, स्पष्ट नहीं।

सीपी राधाकृष्णन की जीत: राष्ट्रवादी संदेश, विपक्षी प्रतिक्रिया और भारतीय राजनीतिक परिदृश्य

विपक्ष ने इस चुनाव में बी. सुदर्शन रेड्डी को 315 सांसदों का समर्थन देने का दावा किया, लेकिन उन्हें केवल 300 वोट मिले।

नौ सितंबर, 2025 को भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव ने देश की राजनीति में एक निर्णायक क्षण बनाया। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को NDA का उम्मीदवार बनाकर उतारा गया, और परिणाम ने भारतीय लोकतंत्र और राजनीतिक ताकतों के संतुलन को स्पष्ट कर दिया। 767 सांसदों के मतदान में राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी केवल 300 वोट हासिल कर पाए। यह अंतर 152 वोट का था, जो इस जीत को निर्णायक बनाता है।

क्रॉस वोटिंग और राजनीतिक रणनीति

राधाकृष्णन को केवल NDA के समर्थन से ही नहीं बल्कि क्रॉस वोट भी मिले, कुल 25 अतिरिक्त वोट। इनमें YSRCP के 11 सांसद शामिल थे। बाकी 14 वोट किस पार्टी से आए, स्पष्ट नहीं। यह दर्शाता है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास बहुमत से परे भी संरक्षित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से रणनीतिक हस्तक्षेप किया। उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था—उपराष्ट्रपति पद केवल राजनीतिक दांव-पेंच का विषय नहीं, बल्कि संवैधानिक स्थिरता और राष्ट्रवादी नेतृत्व का प्रतीक है। मोदी की टीम ने गठबंधन दलों के साथ संवाद कर मत सुनिश्चित करने की योजना बनाई।

विपक्षी प्रतिक्रिया और बहिष्कार

विपक्ष ने इस चुनाव में बी. सुदर्शन रेड्डी को 315 सांसदों का समर्थन देने का दावा किया, लेकिन उन्हें केवल 300 वोट मिले। कांग्रेस और सहयोगी दलों ने बहिष्कार और विरोध के माध्यम से NDA की रणनीति चुनौती देने की कोशिश की। BJD, BRS और शिरोमणि अकाली दल ने चुनाव का बहिष्कार किया। अकाली दल के सांसदों सरबजीत सिंह खालसा और अमृतपाल सिंह ने भी मतदान नहीं किया। कुल मिलाकर 14 सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई।

विपक्ष ने चुनाव के बाद आलोचना करते हुए कहा कि NDA ने “सत्ताधारी गठबंधन का दबदबा” दिखाया। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बहिष्कार और आलोचना केवल प्रतीकात्मक रहा। वास्तविक प्रभाव NDA और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की मजबूत रणनीति और क्रॉस वोटिंग के कारण राधाकृष्णन की जीत पर पड़ा।

राष्ट्रवाद और लोकतंत्र का मिलन

उपराष्ट्रपति चुनाव केवल संवैधानिक पद का चुनाव नहीं था। यह राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और स्थिर नेतृत्व की ताकत को दर्शाने वाला क्षण था। राधाकृष्णन की जीत ने स्पष्ट कर दिया कि भारत में लोकतंत्र केवल बहुमत के आधार पर ही नहीं, बल्कि रणनीति, नेतृत्व और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के आधार पर भी मजबूती हासिल कर सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व इस चुनाव में केंद्रीय भूमिका निभा रहा था। उनके दृष्टिकोण ने केवल NDA सांसदों का समर्थन सुनिश्चित नहीं किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि संवैधानिक पदों पर स्थिर और राष्ट्रवादी नेतृत्व आवश्यक है।

मीडिया विश्लेषण और राजनीतिक संदेश

द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस और द टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस चुनाव को “स्थिरता और राष्ट्रवादी दिशा का प्रतीक” बताया। मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी रेखांकित किया गया कि राधाकृष्णन की जीत ने विपक्षी इंडिया गठबंधन की योजना को चुनौती दी और राष्ट्रीय नेतृत्व की शक्ति को बढ़ावा दिया। विश्लेषकों का कहना है कि यह जीत सिर्फ उपराष्ट्रपति पद की जीत नहीं है। यह एक संदेश है कि भविष्य में भारतीय राजनीति में राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और संगठनात्मक क्षमता निर्णायक रहेगी।

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू प्रभाव

इस चुनाव का प्रभाव केवल देश की राजनीति तक सीमित नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह दिखाता है कि भारत में संवैधानिक संस्थाएँ मजबूत हैं और लोकतांत्रिक निर्णय स्वतंत्र रूप से लिए जाते हैं। NDA और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने यह संदेश दिया कि भारत में लोकतंत्र और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण साथ-साथ चलते हैं।

घरेलू दृष्टि से, यह चुनाव संकेत देता है कि गठबंधन, क्रॉस वोट और नेतृत्व तीनों का समन्वय लोकतंत्र में निर्णायक भूमिका निभाता है। राधाकृष्णन की जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र केवल बहुमत का खेल नहीं, बल्कि रणनीति और नेतृत्व का परिणाम भी है। सीपी राधाकृष्णन की यह जीत सिर्फ उपराष्ट्रपति पद की जीत नहीं, बल्कि NDA और प्रधानमंत्री मोदी की रणनीतिक सफलता का परिणाम है। 152 वोटों के अंतर और 25 क्रॉस वोटों के साथ यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारत में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास मजबूत है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व, रणनीति और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण ने उपराष्ट्रपति चुनाव को निर्णायक बनाया। यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति में राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, संगठनात्मक क्षमता और स्थिर नेतृत्व ही निर्णायक होंगे। भारत ने इस चुनाव के माध्यम से दिखा दिया कि संवैधानिक पदों का चुनाव केवल राजनीतिक दांव-पेंच का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्थिरता, लोकतंत्र की मजबूती और राष्ट्रवाद की दिशा का प्रतीक है। विपक्षी आलोचना और बहिष्कार के बावजूद यह जीत यह संदेश देती है कि स्थिर नेतृत्व और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाले गठबंधन ही भारत में लोकतंत्र और राष्ट्रीय हित की रक्षा कर सकते हैं।

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