रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब ‘डिफेन्स प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2025’ को मंजूरी दी, तो यह केवल कागज़ पर हुआ प्रशासनिक बदलाव नहीं था। यह उस लंबे संघर्ष की परिणति थी जिसमें भारत दशकों से उलझा रहा है-विदेशी हथियारों पर निर्भरता, देरी से खरीद, और विवादों से घिरी सौदेबाज़ी।
भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया का इतिहास अक्सर अनचाही सुर्खियों से भरा रहा है। 1980 के दशक में बोफोर्स तोप सौदे का विवाद भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार कांड बन गया। इसका असर इतना गहरा था कि न केवल तत्कालीन सरकार गिर गई, बल्कि भारतीय जनता के बीच रक्षा सौदों का मतलब ही ‘कमीशन और दलाली’ बन गया। यह छवि दशकों तक बनी रही।
इसके बाद भी हालात बदले नहीं। किसी भी बड़े सौदे में देरी, दलाली या पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे। हाल के वर्षों में राफेल सौदा इसका ताज़ा उदाहरण बना, जिसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों की आँधी चली। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) दोनों ने सरकार को क्लीन चिट दी, लेकिन इस विवाद ने यह दिखा दिया कि भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया अब भी कितनी संवेदनशील और विवादग्रस्त है।
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें नया डिफेन्स प्रोक्योरमेंट मैनुअल सामने आया है। यह केवल फाइलों की गति बढ़ाने या नियमों को सरल करने का मामला नहीं है। यह एक संदेश है कि भारत अपनी पुरानी कमजोरियों को पहचान चुका है और अब उन्हें पीछे छोड़ने को तैयार है।
नए मैनुअल की सबसे बड़ी ताक़त उसकी पारदर्शिता और सरलता है। इसे वित्त मंत्रालय के प्रोक्योरमेंट नियमों से जोड़कर यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी सौदा ‘अपवाद’ की जगह ‘नियम’ पर चले। लंबे समय से रक्षा खरीद में देरी इसलिए होती थी कि मंजूरी की परतें इतनी ज़्यादा थीं कि ज़रूरतें समय पर पूरी नहीं होती थीं। अब प्रक्रिया तेज़ होगी और जवाबदेही तय होगी।
दूसरा पहलू है आत्मनिर्भरता का। भारत ने बोफोर्स विवाद से लेकर राफेल तक यह सीखा है कि विदेशी हथियारों पर अत्यधिक निर्भरता केवल वित्तीय बोझ ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक असुरक्षा भी पैदा करती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर आए संकट ने यह और स्पष्ट कर दिया। ऐसे में मैनुअल 2025 का मकसद है कि घरेलू उद्योगों-खासकर स्टार्टअप्स और एमएसएमई-को बराबरी से मौका मिले।
आज भारत ब्रह्मोस मिसाइल, तेजस लड़ाकू विमान, आकाश वायु रक्षा प्रणाली और कई ड्रोन परियोजनाओं में आत्मनिर्भरता की झलक दिखा चुका है। लेकिन इस यात्रा को गति देने के लिए नीति-स्तर पर मजबूत आधार चाहिए था, जिसे यह नया मैनुअल प्रदान करता है। इसमें न केवल उद्योगों, बल्कि विश्वविद्यालयों और निजी प्रयोगशालाओं को भी शोध और उत्पादन प्रक्रिया में जोड़ा जाएगा।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस सुधार का असर केवल सैन्य ताक़त तक सीमित नहीं रहेगा। यह भारत के औद्योगिक ढाँचे, रोजगार और तकनीकी क्षमता को भी नई दिशा देगा। अमेरिका, इज़राइल और फ्रांस जैसे देशों ने जिस तरह अपने घरेलू रक्षा उद्योग को वैश्विक ताक़त में बदला, भारत भी उसी राह पर आगे बढ़ना चाहता है।
मोदी सरकार के लिए यह एक राजनीतिक संदेश भी है। बोफोर्स और राफेल जैसे विवादों ने दशकों तक भारतीय राजनीति को झकझोरा। अब भाजपा यह दिखाना चाहती है कि उसकी नीति ‘डील और दलाली’ की नहीं, बल्कि ‘डिज़ाइन और डिलीवरी’ की है। यही कारण है कि मैनुअल 2025 को आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियानों की अगली कड़ी माना जा रहा है।
बेशक चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। रक्षा उत्पादन की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बेहद कठिन है और तकनीकी मानकों पर खरा उतरना आसान नहीं। लेकिन यदि यह मैनुअल सही तरह से लागू होता है, तो भारत न केवल विदेशी हथियारों पर निर्भरता घटाएगा, बल्कि आने वाले वर्षों में एक ‘नेट एक्सपोर्टर’ के रूप में भी उभर सकता है।
भारत की धरती ने सदियों तक पराए शासकों के अधीन रहकर यह देखा है कि जब अपनी सुरक्षा किसी और के हाथों में हो, तो स्वतंत्रता अधूरी होती है। बोफोर्स से राफेल तक के विवादों ने हमें यह सिखाया कि बिना आत्मनिर्भरता के ताक़त केवल कागज़ों पर रह जाती है।
डिफेन्स प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2025 केवल एक प्रशासनिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतीक है जिसमें भारत कह रहा है—अब अपनी सुरक्षा, अपनी तकनीक और अपनी ताक़त हम खुद गढ़ेंगे। यह मैनुअल सिर्फ़ हथियार खरीदने की प्रक्रिया को सरल नहीं करता, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह भरोसा भी देता है कि भारत अब अपने दम पर खड़ा है।
आज का यह फैसला प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत के उस सपने को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसमें 21वीं सदी का भारत केवल बाज़ार नहीं, बल्कि निर्माता भी है। आने वाले कल में जब भारतीय सैनिक सीमाओं पर खड़े होंगे, तो उनके हाथों में केवल हथियार नहीं होंगे—बल्कि उस आत्मगौरव की चमक होगी कि यह ताक़त हमारे अपने उद्योग, हमारे अपने वैज्ञानिकों और हमारे अपने परिश्रम से बनी है। यही है नए भारत की पहचान: न झुकने वाला, न थमने वाला और न रुकने वाला भारत।