जब हम भारत की सुरक्षा और सेना की ताक़त की बात करते हैं तो सबसे पहले दिमाग में आता है – डीआरडीओ यानी Defence Research and Development Organisation। ये संस्था हमारे देश की रक्षा तकनीक की रीढ़ है। इसका काम है सेना के लिए नई-नई तकनीक, हथियार, मिसाइल, रडार, ड्रोन और अब तो रोबोटिक सिस्टम तक तैयार करना।
आज युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। पहले लड़ाई तलवारों और बंदूकों से होती थी, फिर बड़े-बड़े टैंक और मिसाइलों से। लेकिन अब दौर है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और रोबोट्स का। इसी को ध्यान में रखते हुए डीआरडीओ अब रोबोटिक सैनिक बनाने की दिशा में तेज़ी से काम कर रहा है। इसका मक़सद है कि इंसानी सैनिकों की जगह मशीनें सबसे पहले खतरनाक मोर्चे पर जाएँ और जान का ख़तरा कम हो।
डीआरडीओ के प्रमुख रोबोटिक प्रोजेक्ट्स
डीआरडीओ ने इसके लिए कई परियोजनाएँ शुरू की हैं। जैसे कि ह्यूमनोइड रोबोट – यह इंसानों जैसा दिखने वाला रोबोट है, जो दरवाज़े खोल सकता है, बाधाएँ हटा सकता है, बम जैसी खतरनाक चीज़ों को संभाल सकता है और दिन-रात हर हालात में काम कर सकता है। योजना है कि अगले कुछ सालों में इसे पूरी तरह तैयार कर लिया जाएगा। इसके अलावा, डीआरडीओ ने पहले ही “दक्ष” नाम का रोबोट बना लिया है, जो रिमोट से कंट्रोल होता है और बम या आईईडी को सुरक्षित तरीके से बंद कर सकता है।
इसी कड़ी में ड्रोन पर गन लगाने का काम भी हो रहा है। सोचिए, आसमान में उड़ते ड्रोन पर एआई से लैस गन लगी होगी, जो दुश्मन को पहचानकर तुरंत कमांड सेंटर से मिले आदेश पर गोली दाग सकेगी। इसके अलावा एक्सो-स्केलेटन सूट भी बनाए जा रहे हैं, जो सैनिकों को और ज्यादा ताक़त देंगे, ताकि वे भारी सामान उठाकर लंबे समय तक ऑपरेशन कर सकें।
कब तक तैयार हो सकती है यह तकनीक?
सभी के मन में ये सवाल ज़रूर होगा कि ये नई तकनीक आखिर कब पूरी तरह तैयार होगी और भारतीय सेना इसे कब इस्तेमाल कर पाएगी। डीआरडीओ की योजना है कि ह्यूमनोइड रोबोट प्रोजेक्ट 2027 तक अपने मुख्य परीक्षण और विकास के सभी चरण पूरे कर ले। इसका मतलब यह है कि रोबोट को हर तरह की परिस्थितियों में भरोसेमंद और सुरक्षित तरीके से काम करने लायक बनाने के लिए अभी भी काफी मेहनत और टेस्टिंग बाकी है।
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि रोबोट को इतना मजबूत बनाया जाए कि यह खतरनाक और मुश्किल परिस्थितियों में भी सही तरीके से काम करे। इसके अलावा, इसे कैसे कंट्रोल किया जाए और फैसले लेने की क्षमता दी जाए, और सिर्फ यही नहीं, कानूनी नियमों का पालन करना भी जरूरी है। उदाहरण के लिए, अगर कोई गलती हो जाए तो जिम्मेदारी किसकी होगी?
इसलिए, भले ही रोबोट अब तैयार हो रहा है और टेस्टिंग चल रही है, लेकिन इसे तुरंत सेना में शामिल करना अभी संभव नहीं है। पहले इसे पूरी तरह भरोसेमंद, सुरक्षित और नियमों के अनुसार काम करने लायक बनाना होगा। जब ये सब पूरा हो जाएगा, तभी यह हमारे जवानों के लिए एक भरोसेमंद साथी बनकर मोर्चे पर भेजा जाएगा।
रोबोटिक सैनिक से क्या फायदा होगा?
अब सवाल उठता है कि इन सबका फ़ायदा क्या होगा? सबसे बड़ा लाभ यही है कि हमारे जवानों की ज़िंदगी सुरक्षित होगी। बम बंद करना हो, आतंकियों से लड़ना हो या सीमा पर जंग करनी हो – ऐसे कई काम रोबोट और मशीनें कर लेंगे। इससे सैनिक कम थकेंगे, ज़्यादा देर तक सतर्क रह पाएँगे और कमांडरों को भी तेज़ और सही जानकारी मिलती रहेगी।
इन रोबोट्स का इस्तेमाल सिर्फ युद्ध में ही नहीं होगा। भूकंप, बाढ़ या किसी दुर्घटना जैसी आपदाओं में भी ये मदद कर सकते हैं। मशीनें बिना डरे, बिना थके मलबे में जाकर लोगों को निकाल सकती हैं।
क्या है चुनौती ?
लेकिन हर नई तकनीक के साथ चुनौतियाँ भी आती हैं। रोबोट को हर तरह के मौसम और ज़मीन पर चलाना आसान नहीं है। अगर कोई तकनीकी गड़बड़ी हो गई तो नुकसान बड़ा हो सकता है। इसके अलावा, अगर रोबोट गलती से किसी निर्दोष को नुकसान पहुँचा दे तो जिम्मेदारी तय करना भी मुश्किल होगा। और हाँ, ऐसे प्रोजेक्ट्स की लागत बहुत ज़्यादा होती है, जिन्हें संभालना और चलाना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है।
फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि डीआरडीओ का ये कदम भारत की सुरक्षा में एक नई क्रांति लाने वाला है। इससे देश न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि दुनिया को यह संदेश भी देगा कि भारत तकनीक में किसी से पीछे नहीं है। आने वाले समय में हमारी सीमाएँ सिर्फ जवानों पर नहीं बल्कि इंसान और मशीन की साझेदारी पर सुरक्षित होंगी।