मोहेंजोदड़ो में मिले चार हजार साल पुराने ‘पुजारी राजा’ की भारत मेंं वापसी: क्यों जोड़ी जा रही नरेंद्र मोदी की छवि

यह मूर्ति बहुत बड़ी नहीं है, सिर्फ 18 सेंटीमीटर की है और एक खास पत्थर (स्टिएटाइट) से बनाई गई है।

मोहेंजोदड़ो में मिले चार हजार साल पुराने ‘पुजारी राजा’ की भारत मेंं वापसी: क्यों जोड़ी जा रही नरेंद्र मोदी की छवि

लगभग चार हजार साल पहले मोहेंजोदड़ो में मिली पत्थर की एक छोटी सी मूर्ति को लोग “पुजारी-राजा” (Priest King) कहते हैं। यह मूर्ति उस समय शांति, आध्यात्मिक शक्ति और सत्ता का प्रतीक मानी जाती थी। आज वही नाम अचानक फिर से चर्चा में है। लेकिन इस बार वजह कोई नई खुदाई या पुराना रहस्य नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। लोग कह रहे हैं कि मोदी की सादगी, उनका मजबूत और शांत स्वभाव, और देश को आगे ले जाने की उनकी क्षमता, उस पुरानी मूर्ति के “पुजारी-राजा” जैसी लगती है। उनका शॉल, उनकी दाढ़ी और उनका आत्मविश्वास लोगों को उसी नेता की याद दिलाता है।

“पुजारी-राजा” की कहानी

यह मूर्ति सिंधु घाटी सभ्यता की है, जो कांस्य युग की सबसे प्राचीन और विकसित सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। इसे 1925 में भारतीय पुरातत्वविद काशीनाथ नारायण दीक्षित ने मोहेंजोदड़ो से खोजा था। यह मूर्ति बहुत बड़ी नहीं है, सिर्फ 18 सेंटीमीटर की है और एक खास पत्थर (स्टिएटाइट) से बनाई गई है। इसमें एक आदमी दिखाया गया है, जिसके कंधे पर शॉल पड़ा है जिस पर खूबसूरत डिज़ाइन बने हुए हैं। उसकी आंखें आधी बंद हैं, जैसे वह ध्यान में हो। दाढ़ी बारीकी से तराशी गई है और सिर पर एक पट्टी बंधी है। इतिहासकार आज तक यह तय नहीं कर पाए कि वह सच में राजा था, पुजारी था या फिर सिर्फ ताकत और प्रतिष्ठा का प्रतीक था। लेकिन सभी मानते हैं कि इस मूर्ति से अनुशासन, शांति, गरिमा और आध्यात्मिक ताकत साफ झलकती है।

क्यों मोदी को कहा जा रहा है आधुनिक “पुजारी राजा”

हजारों साल बाद लोग अब नरेंद्र मोदी को “पुजारी राजा” कहकर बुलाने लगे हैं। इसका कारण सिर्फ उनका पहनावा या रूप-रंग नहीं है, बल्कि उनका पूरा व्यक्तित्व है, जो इस तुलना से मेल खाता है। मोदी का साधारण कपड़ा और शॉल उन्हें एक ऐसे नेता की छवि देता है, जो समय से परे है। उनकी राजनीति को लोग सिर्फ सत्ता की राजनीति नहीं मानते, बल्कि सभ्यता को नई दिशा देने वाली ताकत मानते हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर यह तुलना इतनी तेजी से फैल रही है, क्योंकि लोगों को मोदी में सिर्फ एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि भारत की परंपरा और गौरव का प्रतीक नजर आता है।

उथल-पुथल भरी दुनिया में स्थिर भारत

यह सवाल उठता है कि यह तुलना अभी इतनी चर्चा में क्यों है? वजह साफ है। आज पूरी दुनिया उथल-पुथल में है। नेपाल में हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं और सरकारें बदल रही हैं। पाकिस्तान कंगाली और राजनीतिक झगड़ों में फंसा हुआ है। बांग्लादेश में अंदरूनी तनाव बढ़ रहा है। श्रीलंका दिवालिया होने के बाद भी ठीक से खड़ा नहीं हो पाया। यूक्रेन युद्ध में डूबा है। तुर्की महंगाई से परेशान है। रूस पर पाबंदियां हैं और वह दुनिया से अलग-थलग हो गया है। फिलिस्तीन लगातार हिंसा झेल रहा है।

इन सबके बीच भारत मजबूती से खड़ा है। देश तरक्की कर रहा है और पूरी दुनिया से सम्मान पा रहा है। इस स्थिरता के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व माना जाता है, जिनका तरीका भारत की गहरी सभ्यतागत और धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ है।

पाकिस्तान के पास मूर्ति, भारत के पास विरासत

यह सचमुच विडंबना है कि आज “पुजारी राजा” की मूर्ति पाकिस्तान के कराची संग्रहालय में रखी हुई है। 1972 में शिमला समझौते के बाद भारत ने यह मूर्ति पाकिस्तान को दे दी थी। लेकिन हालात देखिए। आज पाकिस्तान अव्यवस्था, कट्टरपंथ और कर्ज़ में डूबा हुआ है। वहीं दूसरी ओर, भारत मजबूती से खड़ा है और उस पुरानी परंपरा और ताकत का असली उत्तराधिकारी दिखाई देता है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी की तुलना उस “पुजारी राजा” से और भी ज्यादा मायने रखती है।

सभ्यता की निरंतरता का प्रतीक

मोहेंजोदड़ो का “पुजारी राजा” भले ही सिर्फ पत्थर की एक मूर्ति हो, लेकिन उसका संदेश आज भी उतना ही जीवित है। शांत स्वभाव वाला नेतृत्व, आध्यात्मिक ताकत और सभ्यता को सही दिशा देने की क्षमता। लोग मानते हैं कि यही गुण नरेंद्र मोदी में भी दिखाई देते हैं। इसलिए यह तुलना लोगों के दिल को छू रही है। पूरी दुनिया अस्थिर और परेशान है, लेकिन भारत लगातार आगे बढ़ रहा है। और इस सफर की कमान संभाले हुए हैं एक ऐसे नेता, जिन्हें लोग प्राचीन और आधुनिक दोनों भारत का असली “पुजारी राजा” मान रहे हैं।

 

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