भारत ने दिखाई दोस्ती, अब ट्रंप की बारी, गाजा प्लान से बदलेगा समीकरण?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में पेश की गई गाजा शांति योजना का समर्थन कर दिया है। भारत का यह कदम सिर्फ एक औपचारिक बयान नहीं है, बल्कि यह संदेश है कि भारत वैश्विक शांति और स्थिरता का जिम्मेदार ध्वजवाहक बन चुका है।

भारत ने दिखाई दोस्ती, अब ट्रंप की बारी, गाजा प्लान से बदलेगा समीकरण?

भारत की इस रणनीतिक चाल के बाद वैश्विक समीकरण बदल सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के शतरंज में भारत ने एक बार फिर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में पेश की गई गाजा शांति योजना का समर्थन कर दिया है। भारत का यह कदम सिर्फ एक औपचारिक बयान नहीं है, बल्कि यह संदेश है कि भारत वैश्विक शांति और स्थिरता का जिम्मेदार ध्वजवाहक बन चुका है। सवाल यह है कि क्या अब ट्रंप भी वही राजनीतिक परिपक्वता दिखाएंगे, जिसकी उम्मीद भारत उनसे करता है, या फिर उनकी पुरानी ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाली जिद रिश्तों को और कसौटी पर डालेगी?

शांति की पहल और भारत का दृष्टिकोण

भारत लंबे समय से आतंकवाद और अस्थिरता के खिलाफ एक साफ नीति रखता आया है। गाजा संकट पर मोदी का समर्थन इस नीति की निरंतरता है। यह समर्थन सिर्फ इजरायल या अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए नहीं है, बल्कि इस पूरे पश्चिम एशिया में भारत की बढ़ती रणनीतिक उपस्थिति को दिखाता है। अरब देशों से लेकर इजरायल तक, भारत एक भरोसेमंद साझेदार की तरह उभरा है।

मोदी सरकार ने साफ संदेश दिया है कि भारत किसी भी शांति प्रयास के पक्ष में खड़ा है, बशर्ते वह आतंकवाद को वैधता न दे और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यही कारण है कि भारत का समर्थन इस योजना को अतिरिक्त वजन देता है। अमेरिका को भी पता है कि आज एशिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत भारत की स्वीकृति किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रयास को वैश्विक वैधता प्रदान करती है।

अरब समर्थन और नई दिल्ली का महत्व

इस शांति योजना को पहले ही अरब देशों का समर्थन मिल चुका है। लेकिन मोदी की सहमति ने इस पहल को और व्यापक बना दिया। कारण साफ है-भारत के अरब देशों से ऊर्जा और प्रवासी भारतीयों के माध्यम से गहरे रिश्ते हैं। खाड़ी देशों के लिए भारत केवल एक बड़ा बाजार नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्थिरता का भरोसेमंद साथी भी है। यही वजह है कि भारत का रुख पश्चिम एशिया की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

ट्रंप की परीक्षा: टैरिफ की तलवार

यहां असली कसौटी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की है। भारत ने दोस्ती निभाई, लेकिन ट्रंप ने हाल के दिनों में भारत पर आर्थिक चोट की है। पहले 50% सख्त टैरिफ और फिर भारतीय फार्मा कंपनियों पर 100% टैरिफ की घोषणा-यह सब ऐसे समय में जब भारत अमेरिका की दवाइयों की जरूरतों को पूरा करने वाला सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।

भारत ने साफ किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगा, चाहे तेल रूस से खरीदा जाए या व्यापारिक संबंध किसी भी देश से रखे जाएं। सवाल है-क्या अब ट्रंप भी भारत के इस बड़े कूटनीतिक समर्थन का जवाब देंगे? या फिर उनकी नजर केवल अपने घरेलू चुनावी समीकरण पर टिकी रहेगी?

इजरायल के लिए सुरक्षा, भारत के लिए संतुलन

इस योजना में इजरायल की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। पूर्ण विसैन्यीकरण, चरमपंथी गतिविधियों पर रोक और पारदर्शी शासन की शर्तें इसका हिस्सा हैं। भारत जानता है कि इजरायल का अस्तित्व मध्यपूर्व की स्थिरता के लिए केंद्रीय है। लेकिन भारत ने हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की भी बात की है। यही संतुलन भारत की विदेश नीति की असली ताकत है।

मोदी का समर्थन इस संदेश के साथ आया है कि भारत किसी भी एकतरफा एजेंडे का हिस्सा नहीं, बल्कि शांति के टिकाऊ रास्ते का पक्षधर है। यह रुख भारत को पश्चिमी ब्लॉक और अरब दोनों खेमों में स्वीकार्य बनाता है।

समीकरण बदलने की संभावना

भारत की इस रणनीतिक चाल के बाद वैश्विक समीकरण बदल सकते हैं। अमेरिका पर दबाव होगा कि वह भारत को केवल एक ‘बड़ा बाजार’ न समझे, बल्कि रणनीतिक साझेदार की तरह व्यवहार करे। इजरायल और अरब देशों के बीच जो संवाद की छोटी खिड़की खुली है, उसमें भारत एक सेतु की भूमिका निभा सकता है।

पाकिस्तान और चीन, दोनों को इस पर चिंता होगी। पाकिस्तान इसलिए कि भारत की मध्यपूर्वी पकड़ और मजबूत होगी। चीन इसलिए कि भारत का पश्चिमी ताकतों के साथ सहयोग उसकी बेल्ट एंड रोड महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करेगा। भारत ने दोस्ती निभा दी है। अब बारी ट्रंप की है। क्या वे टैरिफ की तलवार हटाकर भारत के कूटनीतिक समर्थन का सम्मान करेंगे, या फिर आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए भारत को दबाने की अपनी पुरानी चाल ही दोहराएंगे?

इतिहास गवाह है कि भारत जब भी वैश्विक शांति प्रयासों में आगे आया है, उसने संतुलन और विश्वसनीयता की मिसाल पेश की है। पीएम मोदी का यह कदम भी उसी परंपरा का हिस्सा है। लेकिन अमेरिका और ट्रंप की राजनीति अक्सर अल्पकालिक घरेलू लाभों में उलझ जाती है। यही वजह है कि दुनिया अब टकटकी लगाए देख रही है-क्या ट्रंप भारत की इस दोस्ती का जवाब देंगे, या फिर यह मौका भी उनके चुनावी नारों में कहीं गुम हो जाएगा? टैरिफ की दीवारें खड़ी करके दोस्ती नहीं निभाई जाती-भारत अब झुकने वाला नहीं, बल्कि झुकाने वाला है।

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