SCO समिट में मोदी-शी-पुतिन की एकजुटता से ट्रंप परेशान- अमेरिका-भारत व्यापार को एकतरफ़ा आपदा बताया

तियानजिन में हुए शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की।

SCO समिट में मोदी-शी-पुतिन की एकजुटता से ट्रंप परेशान- अमेरिका-भारत व्यापार को एकतरफ़ा आपदा बताया

तियानजिन में हुए शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। तीनों नेताओं की दोस्ताना मुलाक़ात और एकजुटता ने ये साफ़ दिखा दिया कि अब दुनिया एक से ज़्यादा ताक़तवर देशों पर टिक रही है। इसी दौरान, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप थोड़े परेशान नज़र आए। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर एक हल्की-सी पोस्ट डाली, जिसमें भारत पर “एकतरफ़ा व्यापार आपदा” का आरोप लगाया और कहा कि भारत ने अमेरिकी सामान पर टैरिफ़ पूरी तरह हटाने (ज़ीरो करने) की पेशकश की है। अब सवाल उठता है कि ये सच है या ट्रंप की एक और कहानी?

भारत-चीन नज़दीकी और ट्रंप की टाइमिंग

ट्रंप की पोस्ट ऐसे समय आई जब पूरी दुनिया में मोदी, शी और पुतिन की मुस्कान और हैंडशेक की तस्वीरें छाई हुई थीं। लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्तों के बाद भारत और चीन धीरे-धीरे नज़दीक आ रहे हैं। इसमें बड़ी वजह अमेरिका की टैरिफ़ पॉलिसी है। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी तीन साल बाद दिल्ली आए और मोदी सात साल बाद चीन गए। यह संकेत था कि दोनों देश व्यापार पर नए सिरे से बातचीत करना चाहते हैं।

भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ारों में से हैं। अगर दोनों मिलकर व्यापारिक साझेदारी करते हैं तो अमेरिका की टैरिफ़ दीवार का असर कम किया जा सकता है। इसी पृष्ठभूमि में ट्रंप की पोस्ट धमकी से ज़्यादा शिकायत जैसी लगी।

“ज़ीरो टैरिफ़” का झूठा दावा

ट्रंप ने दावा किया कि भारत ने अमेरिकी सामान पर शुल्क पूरी तरह खत्म करने की पेशकश की है। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है और भारत सरकार की तरफ़ से ऐसा कोई बयान नहीं आया। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल पहले ही कह चुके हैं कि भारत कभी भी अनुचित टैरिफ़ दबाव में नहीं झुकेगा। उन्होंने साफ़ कहा कि भारत न्यायसंगत फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट्स के लिए तैयार है, लेकिन 140 करोड़ भारतीयों की आत्म-सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होगा।

असल में भारत-अमेरिका व्यापार उतना खराब नहीं है जितना ट्रंप बताते हैं। माल के कारोबार में भारत को ज़रूर फायदा होता है, लेकिन दूसरी तरफ़ सर्विसेज़, रॉयल्टी, पढ़ाई और टेक्नॉलजी पर भारत बहुत पैसा अमेरिका को देता है। हर साल भारतीय छात्र अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ को अरबों डॉलर की फीस भरते हैं। भारतीय कंपनियां अमेरिकी सॉफ़्टवेयर और पेटेंट इस्तेमाल करने के लिए बड़ी रॉयल्टी देती हैं। साथ ही भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिकी कंपनियों का बड़ा सहारा हैं। इसलिए ट्रंप की “वन-साइडेड” वाली बात अधूरी और भ्रामक है।

रूस, टैरिफ़ और ट्रंप की कमज़ोरी

अमेरिका ने भारतीय सामान पर 50% तक टैक्स लगाया है और रूस से सस्ता तेल व हथियार लेने पर 25% अतिरिक्त पेनल्टी भी लगा दी है। लेकिन भारत ने साफ़ कहा है कि उसकी प्राथमिकता ऊर्जा सुरक्षा और किसानों का भला है। जब यूरोप खुद रूस से तेल खरीद रहा है, तो सिर्फ़ भारत को निशाना बनाना डबल स्टैंडर्ड है।

ट्रंप का यह कहना कि “भारत हमें बहुत सामान बेचता है और हम उन्हें बहुत कम” भी हकीकत से दूर है। अमेरिका के रक्षा, एयरोस्पेस और टेक्नोलॉजी एक्सपोर्ट्स भारत में लगातार बढ़ रहे हैं। असल में यह मुद्दा अर्थशास्त्र से ज़्यादा ट्रंप की घरेलू राजनीति का है।

ट्रंप की इस पोस्ट में उनकी पुरानी धौंस-धमकी वाली झलक नहीं थी। न कैपिटल लेटर्स, न ज़ोरदार विस्मयादिबोधक चिह्न। बल्कि एक थके और हताश नेता की तरह उन्होंने स्वीकार किया कि भारत शायद उनके नियंत्रण से निकल रहा है।

भारत मज़बूत, ट्रंप बेबस

तियानजिन से आई मोदी-शी-पुतिन की तस्वीरें ट्रंप को शायद ज़्यादा परेशान कर गईं। भारत अब झुकने के बजाय अपना रास्ता खुद बना रहा है। रूस और चीन से संबंध मज़बूत करने के साथ-साथ अमेरिका से बातचीत भी खुली रख रहा है।

पीयूष गोयल ने ठीक कहा कि भारत की इज़्ज़त और आज़ादी बिकने वाली नहीं है। ट्रंप भले ही “वन-साइडेड डिज़ास्टर” कहते रहें, लेकिन हकीकत यह है कि भारत-अमेरिका व्यापार काफ़ी हद तक संतुलित है। ट्रंप की टैक्स वाली राजनीति ने भारत को और देशों के साथ मज़बूत रिश्ते बनाने पर मजबूर किया है।

असल सवाल यह है कि क्या ट्रंप मान पाएंगे कि उनकी धमकी की राजनीति नाकाम हो चुकी है? “आर्ट ऑफ़ द डील” वाले ट्रंप को इस बार भारत ने मात दे दी है।

 

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