पाकिस्तान की ‘हंगोर सबमरीन’ डील: चीन की कमाई, फौज की मलाई और जनता पर बोझ

यही पैटर्न पाकिस्तान ने पहले फ्रांस के साथ हुए अगस्ता-90B पनडुब्बी सौदे में देखा था, जब घोटाले और कमीशन का गहरा खेल सामने आया था।फर्क बस इतना है कि अब खेल के पीछे चीन है और पकड़े जाने का कोई डर नहीं, क्योंकि अब सब कुछ “राष्ट्रीय सुरक्षा” की आड़ में छिपा दिया जाता है।

पाकिस्तान की हैंगोर डील: चीन की कमाई, फौज की मलाई और जनता पर बोझ

1990 के दशक में अगोस्ता घोटाला इस्लामाबाद की राजनीति को हिला गया था।

पाकिस्तान इन दिनों अपनी आठ नए हंगोर-क्लास सबरीन्स की डील को अपनी नौसेना की ऐतिहासिक उपलब्धि की तरह पेश कर रहा है। हजारों करोड़ रुपये की इस भारी-भरकम डील को पाकिस्तान की “समुद्री ताक़त के पुनर्जागरण” का प्रतीक बताया जा रहा है। लेकिन असलियत बेहद कड़वी है। यह डील पाकिस्तान की रक्षा क्षमता से ज्यादा उसकी सेना (जो वर्दी की आड़ में कारोबार पर ज्यादा फोकस करती है) की भूख और चीन की पकड़ को मज़बूत करती है।

2015 में पाकिस्तान ने चाइना शिपबिल्डिंग एंड ऑफशोर इंटरनेशनल कंपनी (CSOC) से 4–5 अरब डॉलर का समझौता किया। तय हुआ कि चार पनडुब्बियां चीन के वुहान शिपयार्ड में बनेंगी और बाकी चार कराची शिपयार्ड (KS&EW) में तथाकथित “टेक्नोलॉजी ट्रांसफर ” के तहत बनाई जाएंगी। अगस्त 2025 में चीन ने तीसरी पनडुब्बी लांन्च भी कर दी। लेकिन पाकिस्तान की नेवी की इस ‘कथित’ कामयाबी के अंदर झांकने पर पता चलता है कि ये पूरी डील सीक्रेट फाइनेंशियल क्लॉज़, बिचौलियों की कमाई, और दशकों तक चलने वाले खर्चीले मेंटेनेंस का खेल है।

सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर पाकिस्तान ने इस डील के लिए कितनी कीमत तय की और किन शर्तों पर चीन से कर्ज़ लिया? संसद को इसका कोई ब्यौरा नहीं दिया गया। इस लोन की ब्याज दर क्या है? इसकी भुगतान अवधि और गारंटी क्या है? —कुछ भी पब्लिक डोमेन में नहीं है, इसे लेकर सिर्फ साइलेंस है। यह चुप्पी महज़ लापरवाही नहीं बल्कि रणनीतिक औवनिवेशवाद बनाने का ही औज़ार है। जब वित्तीय शर्तें सीक्रेट रखी जाती हैं, इसका पूरा leverage बीजिंग को मिलता है- जैसे कब बिल भेजना है?  कैसे स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई रोकनी है और किस तरह तकनीकी निर्भरता को दबाव के हथियार में बदलना है?

याद रहे, यही पैटर्न पाकिस्तान ने पहले फ्रांस के साथ हुई अगस्ता-90B पनडुब्बी सौदे में देखा था, जब घोटाले और कमीशन की परतें सामने आईं। फर्क बस इतना है कि अब खेल के पीछे चीन है और पकड़े जाने का कोई डर नहीं क्योंकि सब कुछ “राष्ट्रीय सुरक्षा” की आड़ में छिपा दिया जाता है।

असली फ़ायदा किसका?

जाहिर है पाकिस्तानी जनता को तो इस डील से कोई फायदा नहीं हुआ है। हर बड़े हथियार सौदे की तरह इस बार भी फौज की अपनी कंपनियां मुनाफा काटने में सबसे आगे हैं। कराची शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग वर्क्स (KS&EW) को पनडुब्बी असेंबली का ठेका मिलता है।  नेशनल लॉजिस्टिक्स सेल (NLC) परिवहन और सप्लाई संभालता है। बहरिया फाउंडेशन—जो नौसेना का कॉरपोरेट चेहरा है-मैरिटाइम सर्विस से लेकर रियल एस्टेट, शिक्षा और यहां तक कि बेकरी तक चलाता है, और सैकड़ों करोड़ कमाने के बावजूद ट्रस्ट के नाम पर टैक्स से छूट का फायदा उठाता है।
यानी पनडुब्बियां भले पाकिस्तान की नौसेना के लिए ली गई हों, लेकिन वास्तविक लाभ फौज के कारोबारी नेटवर्क को मिलता है। यह वही पैटर्न है जिसे पाकिस्तान में “मिलबस” (military business) कहा जाता है-जहां सेना खुद ही खरीदार भी है और खुद ही सप्लायर भी।

कर्ज़ और निर्भरता का दलदल

मार्च 2025 तक पाकिस्तान का कुल कर्ज़ 76 ट्रिलियन रुपये पहुंच चुका था, जिसमें 87.4 अरब डॉलर विदेशी कर्ज़ है। आईएमएफ़ की बेलआउट स्कीम बार-बार अर्थव्यवस्था को कृत्रिम सांस जरूर देती हैं, लेकिन उनके बदले होने वाली सब्सिडी में कटौती और भारी भरकम टैक्स का बोझ आम आदमी ही झेलता है। इसी बीच हंगोर डील पाकिस्तान के लिए एक नई डॉलर चूसने वाली पाइपलाइन बन गई है। पनडुब्बियों के साथ आने वाले स्पेयर पार्ट्स, सॉफ़्टवेयर अपडेट्स, और refits सभी चीन से होंगे, और सभी का भुगतान डॉलर में करना होगा। थाईलैंड का S26T पनडुब्बी सौदा, जो चीनी इंजन विवाद के चलते सालों लटका रहा, इसका ताज़ा उदाहरण है। याद रहे कि पाकिस्तान की हंगोर सबमरीन्स भी उसी फैमली के इंजन पर निर्भर हैं।

भारत के लिए क्या मायने?

जहां पाकिस्तान इस डील को सामरिक बढ़त के रूप में पेश कर रहा है, वहीं भारत के लिए यह रणनीतिक चिंता से ज्यादा रणनीतिक अवसर है। भारतीय नौसेना पहले ही P-8I Poseidon समुद्री गश्ती विमान, उन्नत सोनार नेटवर्क, और हंटर-किलर पनडुब्बियों से लैस है। भारतीय ASW (anti-submarine warfare) क्षमता पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान दोनों पर भारी है।

हंगोर जैसी “एक्सपोर्ट-स्टैंडर्ड” पनडुब्बियां, भले ही AIP सिस्टम के साथ लैस हों, लेकिन वो तब भी अरब सागर में शक्ति संतुलन नहीं बदल पाएंगी। बल्कि इन्हें पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल करने के लिए भी पाकिस्तान को बार-बार चीन की तरफ ही देखना पड़ेगा। भारत के लिए यह डील बस इतना बताती है कि पाकिस्तान अपनी जनता का भविष्य गिरवी रखकर भी बीजिंग की हथियार फ़ैक्ट्रियों को ज़िंदा रखना चाहता है।

इतिहास की गूंज

1990 के दशक में हुए अगस्ता घोटाले ने इस्लामाबाद की राजनीति को हिला कर रख दिया था। अब वही इतिहास एक बार फिर दोहराया जा रहा है, बस फर्क इतना है कि अब सौदे की रकम कहीं बड़ी है और इसकी परतें कहीं ज्यादा गहरी। पाकिस्तान की हर नई पीढ़ी इस “सुरक्षा के नाम पर व्यापार” का कर्ज़ चुकाती है, लेकिन असल खिलाड़ी फौजी जनरल और ठेकेदार मुनाफा खाते हैं।

लोकतंत्र या सैन्य साम्राज्य?

सवाल यही है कि पाकिस्तान का लोकतंत्र आखिर किसलिए है? कोई भी नागरिक सरकार इतने बड़े सौदे की शर्तों पर सवाल क्यों नहीं उठा पाती? संसद को इसकी जानकारी क्यों नहीं मिलती? जवाब साफ़ है—पाकिस्तान में लोकतंत्र अभी भी “आभासी” है और असली सत्ता सेना और उसके कॉरपोरेट साम्राज्य के हाथ में है।

हंगोर की ‘डीप डाइव’ क्षमता से ज्यादा गहरे हैं पाकिस्तानी गड्ढे

हंगोर पनडुब्बियां ज़रूर समुद्र में उतरेंगी। लेकिन असल सवाल यह नहीं है कि वे कितनी गहराई तक जाएंगी, बल्कि यह है कि पाकिस्तान कितनी गहरी आर्थिक और रणनीतिक निर्भरता में डूबेगा। हर बार की तरह इस बार भी सौदा रक्षा संपत्ति से ज्यादा एक आर्थिक बोझ है। चीन को गारंटीशुदा बाजार, पाकिस्तान की फौज को कारपोरेट मलाई, और जनता को सिर्फ़ महंगाई और कर्ज़। भारत के लिए यह सौदा किसी रणनीतिक चुनौती से ज्यादा पाकिस्तान की कमजोरी का प्रतीक है—एक ऐसा देश जो खुद को सुरक्षा देने के नाम पर लगातार अपने भविष्य को विदेशी कर्ज़ और सैन्य-व्यापारिक लालच की भेंट चढ़ा रहा है।

ये लेख tfipost.com के लिए अरित्रा बनर्जी ने लिखा है।

अरित्रा रक्षा, विदेश और विमानन क्षेत्र से जुड़े जर्नलिस्ट हैं; साथ ही वो The Indian Navy @75: Reminiscing the Voyage के co-author और मिशन विक्ट्री इंडिया (MVI) नाम के military-reforms think-tank के Co-Founder हैं। उन्होंने टीवी, प्रिंट और डिजिटल मीडिया में काम करते हुए कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के लिए लेखन किया है। उनसे उनके X एकाउंट @Aritrabanned. पर संपर्क किया जा सकता है।

अंग्रेजी में मूल लेख लिखने के लिए यहां क्लिक करें।

Exit mobile version