पंजाब की बाढ़: खेतों में उतरे केंद्रीय कृषि मंत्री, उम्मीद की डोर थामे किसान

भाजपा को भले ही चुनावी लाभ तुरंत न मिले, लेकिन गांवों में अब यह फुसफुसाहट जरूर सुनाई दे रही है— "वोट चाहे किसी नूं भी दिते होण, पर जेड़ा मुश्किल वक़्त विच साथ खड़ा रहे, वही असली अपना है।

पंजाब की बाढ़: खेतों में उतरे केंद्रीय कृषि मंत्री, उम्मीद की डोर थामे किसान

पानी भरे खेतों में किसानों के बीच जाना शिवराज सिंह चौहान का मास्टर स्ट्रोक है।

सुबह की हल्की धूप गांव की गलियों में उतर रही थी, लेकिन पानी अभी भी घरों की चौखट तक भरा था। भैंसें कीचड़ में आधी डूबी खड़ी थीं और बच्चे छतों पर बैठकर दूर तक फैले पानी को निहार रहे थे। यह किसी गांव का साधारण दृश्य नहीं था, बल्कि बाढ़ से जूझते पंजाब की असल तस्वीर थी।

बुट्टर कलां के 70 वर्षीय किसान गुरदेव सिंह डूबे हुए धान के खेत की ओर इशारा करते हुए कहते हैं- “देख लओ पुत्तर… एही साडा सोना सी, सब लुट गया। करजा तां सिर ते सी ही, हुण एहो वी किवें चुकांगे?” उनकी आंखें नम थीं और आवाज़ में टूटा हुआ विश्वास साफ झलक रहा था।

शिवराज चौहान का कीचड़ में उतरना

इसी माहौल में गांव में हलचल हुई। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पहुंचे। आमतौर पर नेता खेतों को दूर से देखते हैं, लेकिन चौहान ने अपने जूते उतारे और सीधे पानी में उतर गए। धान की लहराती पौधों को हाथ से छुआ और किसानों की बातें सुनीं।

गांव के किसान बलविंदर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा-“साहब, वोट तां हर कोई मांगदा है, पर आज पहली वार देख रहे आ कि कोई साडे खेतां विच उतर के सानूं सुन रहा है।”

चौहान ने जवाब दिया—”मैं कागजों से रिपोर्ट नहीं पढ़ना चाहता। मुझे जानना है कि किसान किस हाल में है। आपके हर नुकसान का हिसाब बनेगा।” किसानों की भीड़ में एक अलग सा सन्नाटा छा गया। उन्हें लगा कि शायद इस बार कोई उनकी बात सुनने भी आया है।

प्रधानमंत्री मोदी का दौरा

आज ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पंजाब पहुंचे। राहत शिविर में खड़ी महिलाओं ने छतों से हाथ हिलाकर उनका स्वागत किया। मोदी ने एक वृद्धा से पूछा—”माता जी, आपको सबसे बड़ी जरूरत किस चीज की है?” वृद्धा ने भर्राई आवाज़ में कहा- “साहब, बच्चे सिर छांव विच सुत पावण… बस घर दी दीवार उठ जावे।”

मोदी ने अधिकारियों की ओर मुड़कर कहा-“इनका मुआवजा तुरंत मिले। राहत केवल फाइलों में नहीं, जमीन पर दिखनी चाहिए।” यह पल किसानों के लिए उम्मीद की किरण जैसा था। मानों उन्हें नई जान मिल गई हो।

किसानों की दिनचर्या

गांव बहादुरपुर की अमरजीत कौर हर रात अपने बच्चों के साथ भूसे के ढेर पर सोती हैं। घर पानी में डूबा है, चारपाई भीग चुकी है। सुबह होते ही उसका बेटा मनप्रीत छत पर चढ़कर देखता है कि पानी कितना और चढ़ा। अमरजीत का पति हरबंस सिंह अपनी भैंस को ऊंचे चबूतरे पर बांधे खड़ा रहता है। वह कहता है—”एही भैंस साडा सहारा है। दूध बेचके घर चलदा है। जे ए वी डूब गई तां सब खतम।”

बच्चों के लिए सूखी रोटियां और गुड़ ही एकमात्र खाना बचा है। चूल्हा पानी में डूब चुका है, इसलिए राहत से मिले चावल और दाल अभी तक पक नहीं पाए। यह दिनचर्या अब हर किसान परिवार की कहानी बन चुकी है।

राजनीति की पृष्ठभूमि

यह वही पंजाब है जिसने भाजपा को विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नकार दिया था। किसान आंदोलन के बाद तो हालात और भी बिगड़े। 2022 के चुनाव में भाजपा 6% वोट और सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई। 2024 लोकसभा चुनाव में भी कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। लेकिन बाढ़ के बीच भाजपा का यह सक्रिय सहयोग महज़ प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। यह दिखाने की कोशिश कि चुनावी हार के बावजूद भाजपा किसानों को अकेला नहीं छोड़ रही।

स्थाई समाधान की तलाश

केंद्र सरकार अब केवल मुआवजे की बात नहीं कर रही, बल्कि स्थाई समाधान की योजना बना रही है। नदी प्रबंधन, बांधों की मजबूती और बाढ़ पूर्व चेतावनी तंत्र जैसे उपायों का जिक्र प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री दोनों कर चुके हैं। किसानों को लगता है कि अगर यह सच में हो गया, तो उनकी पीढ़ियों का दर्द कम हो सकता है।

किसान समाज की कसौटी

गांव की चौपाल में बैठे जसबीर सिंह कहते हैं— “देखो जी, वोट आप पार्टी नूं दिते सी, कांग्रेस नाल वी गुस्सा सी। पर अज्ज बीजेपी दे मंत्री खेतां विच आ गए। एहो जेहा काम होर पार्टी नहीं करदी।” उनके साथ खड़ा नौजवान किसान हरप्रीत जोड़ता है— “सही है चाचा, पर देखना है वाकई मदद मिलदी है कि सिर्फ फोटो खिंचवाण आयी सी।” यह वाक्य ही भाजपा की असली परीक्षा है—क्या वह किसानों के भरोसे को दोबारा जीत पाएगी?

पंजाब की बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि राजनीति में नया मोड़ है। शिवराज चौहान का कीचड़ में उतरना और प्रधानमंत्री मोदी का बाढ़ पीड़ितों के घर जाना, किसानों को यह एहसास दिलाता है कि भाजपा सिर्फ वोट मांगने वाली पार्टी नहीं, बल्कि मुश्किल वक्त में साथ खड़ी होने वाली ताकत है।

भले ही चुनावी लाभ तुरंत न मिले, लेकिन गांवों में अब यह फुसफुसाहट जरूर सुनाई दे रही है—”वोट चाहे किसी नूं भी दिते होण, पर जेड़ा मुश्किल वक़्त विच साथ खड़ा रहे, वही असली अपना है।

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