तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने कांग्रेस पर ‘एमएलए चोरी’ का गंभीर आरोप लगा दिया है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री केटी रामाराव (KTR) ने कहा—“जो शख़्स देशभर में वोट चोरी पर भाषण देता है, वही तेलंगाना में बेशर्मी से विधायकों की चोरी कर रहा है।
राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से हर मंच पर एक ही नारा गूंजाते रहे हैं—‘वोट चोरी बंद करो’। बीजेपी और चुनाव आयोग पर उनके आरोपों ने उन्हें विपक्षी राजनीति में आक्रामक चेहरा बनाने की कोशिश की। लेकिन अब, तेलंगाना की सियासत ने राहुल गांधी की इसी मुहिम को पलटवार के हथियार में बदल दिया है। तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने कांग्रेस पर ‘एमएलए चोरी’ का गंभीर आरोप लगा दिया है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री केटी रामाराव (KTR) ने कहा—“जो शख़्स देशभर में वोट चोरी पर भाषण देता है, वही तेलंगाना में बेशर्मी से विधायकों की चोरी कर रहा है। इस अलोकतांत्रिक पाखंड पर राहुल गांधी को शर्म आनी चाहिए।”
दलबदल और ‘षड्यंत्रकारी चुप्पी’
बीआरएस के आरोपों के मुताबिक, विधानसभा चुनाव के बाद बीआरएस के कई विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस इसे अपनी स्वीकार्यता और ‘जनता का जनादेश’ बताती है, लेकिन बीआरएस इसे सुनियोजित दलबदल का हिस्सा मानता है। केटीआर का तंज साफ़ था—“राहुल गांधी दिल्ली में पट्टा पहनाकर फोटो खिंचवाते हैं और जब सवाल होता है तो इनकार कर देते हैं। यह दोहरा खेल नहीं तो और क्या है?”
‘वोट चोरी’ बनाम ‘एमएलए चोरी’
राहुल गांधी लगातार आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग की मिलीभगत से कई राज्यों में वोट चोरी हुई। लेकिन तेलंगाना से उठा ‘एमएलए चोरी’ का आरोप उनकी रणनीति को चुनौती देता है। केटीआर ने कहा—“अगर वोट चोरी लोकतंत्र के लिए खतरा है तो विधायकों की चोरी उससे भी बड़ा अपराध है। राहुल गांधी को लोकतंत्र को कमजोर करने में अपनी भूमिका पर जवाब देना होगा।”
बीआरएस का आरोप है कि राहुल गांधी जिस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर हथियार बनाना चाहते हैं, वही मुद्दा उनके खिलाफ भी इस्तेमाल हो रहा है। यह राजनीतिक स्थिति कांग्रेस के नैरेटिव को सवालों के घेरे में डाल रही है।
दोहरे मानदंड का सवाल
बीआरएस नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी की राजनीति ‘चयनात्मक नैतिकता’ पर टिकी है। केंद्र में बीजेपी को कठघरे में खड़ा करना आसान है, लेकिन कांग्रेस की ओर से दलबदल के मामलों में वह चुप रहते हैं। “आप लोकतंत्र बचाने का दावा करते हैं, लेकिन दलबदल को संरक्षण देकर लोकतंत्र को ही चोट पहुंचा रहे हैं।”
बीआरएस का यह हमला न सिर्फ कांग्रेस की साख को चुनौती देता है, बल्कि राहुल गांधी की राष्ट्रीय रणनीति पर भी सवाल उठाता है। दलबदल से लोकतंत्र में विश्वास कम होता है और जनता का भरोसा हिलता है।
बीजेपी और चुनाव आयोग का रुख
बीजेपी ने राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ आरोपों का लगातार राजनीतिक पलटवार किया है। पार्टी का कहना है कि यदि कोई ठोस सबूत है तो चुनाव आयोग को सौंपा जाए। चुनाव आयोग ने भी साफ किया है कि राहुल गांधी को या तो माफी मांगनी होगी या लिखित में साक्ष्यों के साथ शिकायत करनी होगी। लेकिन कांग्रेस नेता अभी तक इन कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करने में अनिच्छुक दिख रहे हैं।
इस बीच बीआरएस का आरोप, कांग्रेस के भीतर बढ़ती दलबदल और राहुल गांधी की चुप्पी, उन्हें दोहरी राजनीतिक चुनौती दे रही है। एक तरफ राष्ट्रीय मंच पर ‘वोट चोरी’, दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर ‘एमएलए चोरी’।
राजनीतिक पाखंड और लोकतंत्र पर असर
केटीआर और बीआरएस का तर्क है कि यह दलबदल कांग्रेस के दोहरे मानदंड का उदाहरण है।“राहुल गांधी लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन विधायकों के राजनीतिक पाखंड पर चुप रहते हैं। यह लोकतंत्र की मूल भावना को चोट पहुंचाता है।” दलबदल के इस सिलसिले से न सिर्फ राज्य में राजनीति अस्थिर होती है, बल्कि जनता के मन में विश्वास की कमी आती है। बीआरएस इसे कांग्रेस की नैतिक गिरावट और राहुल गांधी की रणनीतिक कमजोरी मानती है।
भविष्य की संभावनाएं
तेलंगाना की सियासत में यह मामला राहुल गांधी के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। यदि बीआरएस और स्थानीय जनता का दबाव बढ़ा, तो कांग्रेस के नैरेटिव को नुकसान पहुंच सकता है। वहीं, बीजेपी और चुनाव आयोग का रुख इस स्थिति को और पेचीदा बना देता है। इस राजनीतिक जंग में बीआरएस ने साफ किया है कि वह दलबदल और नैतिकता के सवाल पर कोई समझौता नहीं करेगी। उनका संदेश स्पष्ट है—“लोकतंत्र की रक्षा के लिए किसी भी स्तर पर पाखंड स्वीकार्य नहीं है।”
राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ अभियान अब केवल बीजेपी या चुनाव आयोग पर आरोप लगाने तक सीमित नहीं रह गया। तेलंगाना के घटनाक्रम ने इसे कांग्रेस और राहुल गांधी के अपने नैतिक और राजनीतिक मानदंड पर सवाल उठाने वाला मुद्दा बना दिया है।