सीजफायर पर ट्रंप की किरकिरी, पाकिस्तान ने भी माना भारत का पक्ष

हाल ही में पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने अलजज़ीरा को दिए एक इंटरव्यू में स्वीकार किया कि भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पूरी तरह द्विपक्षीय था।

सीजफायर पर ट्रंप की किरकिरी, पाकिस्तान ने भी माना भारत का पक्ष

भारत-पाक रिश्तों में यह विवाद भले ही छोटा एपिसोड लगे, लेकिन इसका असर गहरा है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अक्सर सच से ज़्यादा ज़ोर उस पर होता है कि किसका नैरेटिव दुनिया भर में सुना जाए। लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं कि सच अपने आप सामने आ जाता है। हाल ही में पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने अलजज़ीरा को दिए एक इंटरव्यू में स्वीकार किया कि भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पूरी तरह द्विपक्षीय था। यह बयान अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को झुठलाता है जिसमें उन्होंने खुद को “मध्यस्थ” के तौर पर पेश किया था।

यह घटना केवल एक बयानबाज़ी भर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उस स्थायी भारतीय रुख़ की पुष्टि है, जिसे दशकों से बार-बार दोहराया जाता रहा है—भारत और पाकिस्तान के बीच के मसले केवल द्विपक्षीय हैं, किसी तीसरे देश की इसमें कोई भूमिका नहीं।

ट्रंप का दावा और भारत का कड़ा जवाब

डोनाल्ड ट्रंप राजनीति में हमेशा से अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं। राष्ट्रपति रहते हुए भी उन्होंने कई बार यह कहा कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं। लेकिन जब उन्होंने हाल ही में यह दावा किया कि युद्धविराम में उनकी भूमिका रही, तो भारत ने इसे तुरंत खारिज कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में साफ कहा—“दुनिया के किसी भी देश ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोका। पाकिस्तान के गिड़गिड़ाने के बाद ही हम सीजफायर पर सहमत हुए।” यह बयान सिर्फ ट्रंप को कटघरे में खड़ा करने वाला नहीं था, बल्कि उस संदेश को भी मज़बूत करने वाला था कि भारत अपने फैसलों का मालिक खुद है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा—“मैं फिर से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, सीजफायर में किसी तीसरे देश का कोई हस्तक्षेप नहीं था। यह हमारा निर्णय था, पाकिस्तान की गुहार और हमारे सैन्य उद्देश्यों की प्राप्ति के बाद।” विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका में इंटरव्यू देते हुए इसी लाइन को दोहराया। उन्होंने कहा, युद्धविराम पूरी तरह द्विपक्षीय था, किसी और देश की कोई भूमिका नहीं थी।

पाकिस्तान से आई पुष्टि

भारत के इन बयानों के बीच जब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार का बयान सामने आया, तो पूरी बहस ही खत्म हो गई। अलजज़ीरा के एंकर ने उनसे पूछा: “क्या आप संघर्ष के दौरान तीसरे पक्ष को मध्यस्थता के लिए बुलाने को तैयार थे?”

इशाक डार ने जवाब दिया: “हमें कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन भारत ने साफ तौर पर कहा कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है। हमने शांति वार्ता की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया।” यानी पाकिस्तान ने खुद मान लिया कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष को बीच में आने का मौका नहीं दिया। और यही वह क्षण था जिसने ट्रंप के दावे को पूरी तरह ढहा दिया।

ऐतिहासिक संदर्भ – क्यों भारत तीसरे पक्ष को नहीं चाहता?

भारत की यह नीति नई नहीं है। 1972 के शिमला समझौते में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने तय किया था कि भारत-पाकिस्तान के सभी मुद्दे द्विपक्षीय होंगे। उस समझौते के बाद भारत ने बार-बार यह रेखा खींची है कि चाहे कश्मीर हो या सीमा विवाद, किसी तीसरे देश को इसमें जगह नहीं मिलेगी।

1999 में कारगिल युद्ध के समय भी जब अमेरिकी दबाव बढ़ा, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साफ किया कि भारत केवल पाकिस्तान से सीधे बातचीत करेगा। कारगिल का युद्ध भी भारत ने अपने सैन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के बाद समाप्त किया, न कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता पर। 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी यही स्थिति रही। अमेरिका, चीन और कई अन्य देशों ने शांति बनाए रखने की अपील की, लेकिन भारत ने यह साफ कर दिया कि कार्रवाई उसकी सुरक्षा ज़रूरतों के अनुसार होगी और किसी भी तीसरे देश के कहने पर नहीं।

ऑपरेशन सिंदूर और भारत की रणनीति

भारतीय वायुसेना प्रमुख एपी सिंह ने हाल ही में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान युद्धविराम का निर्णय भारत द्वारा लिया गया एकतरफा निर्णय था। यह उसी सैन्य सिद्धांत का हिस्सा था जो भारत पहले भी अपनाता आया है—यानी, जब तक लक्ष्य हासिल न हो, संघर्ष जारी रहेगा; और लक्ष्य पूरा होते ही भारत खुद निर्णय लेगा कि कब और कैसे संघर्ष रोका जाए। यह वही रणनीति है जो कारगिल और बालाकोट में अपनाई गई थी। भारत किसी तीसरे देश को यह अधिकार नहीं देता कि वह तय करे कि युद्ध कब रुकेगा।

ट्रंप की फजीहत क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति अक्सर “दावे” और “ड्रामा” पर टिकी रहती है। वे खुद को एक डील मेकर और संकट सुलझाने वाला नेता दिखाना पसंद करते हैं। भारत-पाकिस्तान जैसे मसले पर भी उन्होंने यही कोशिश की। लेकिन पाकिस्तान से आए इशाक डार के बयान ने उनकी पूरी कहानी को ध्वस्त कर दिया।

अब यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान भी कह रहा है कि युद्धविराम भारत की शर्तों पर और भारत के निर्णय से हुआ। ऐसे में ट्रंप का दावा केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा या राजनीतिक बयानबाज़ी भर लगता है।

कूटनीति का बड़ा संदेश

इस पूरे विवाद से भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा संदेश दिया है—भारत अब “मध्यस्थता की तलाश में कमजोर राष्ट्र” नहीं है, बल्कि “निर्णय लेने वाला आत्मविश्वासी राष्ट्र” है। आतंकवाद और सुरक्षा मामलों पर भारत किसी भी तरह का अंतरराष्ट्रीय दबाव स्वीकार नहीं करेगा। पाकिस्तान की गुहार और कमजोर स्थिति ने दिखा दिया कि युद्धविराम भारत की शर्तों पर ही संभव है। यह नीति न केवल पाकिस्तान के लिए चेतावनी है, बल्कि अमेरिका जैसे बड़े देशों के लिए भी सबक है कि भारत को किसी “पठाने” की ज़रूरत नहीं।

विपक्ष और घरेलू राजनीति

हालांकि, भारत के भीतर विपक्ष ने भी सवाल उठाए थे। उनका आरोप था कि मोदी सरकार अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में नाकाम रही और युद्धविराम इसलिए हुआ क्योंकि भारत पर दबाव था। लेकिन संसद में प्रधानमंत्री मोदी का जवाब और अब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री का बयान विपक्ष के आरोपों को कमजोर करता है।

पीएम मोदी ने कहा था: “संयुक्त राष्ट्र में केवल तीन देशों ने पाकिस्तान का पक्ष लिया। दुनिया भारत के साथ है, और हमारी नीति स्पष्ट है।”

भविष्य की तस्वीर

भारत-पाक रिश्तों में यह विवाद भले ही छोटा एपिसोड लगे, लेकिन इसका असर गहरा है। यह भारत की स्थायी नीति को और मजबूत करता है। आने वाले समय में भी भारत यही लाइन लेगा—कोई तीसरा देश हमारे विवादों में दखल नहीं देगा। अमेरिका और पश्चिमी ताक़तें चाहे जितना प्रयास करें, भारत अब अपनी रणनीति खुद तय करेगा। यही बदलाव भारत की नई वैश्विक छवि का आधार है—एक ऐसा राष्ट्र जो दूसरों से उपदेश नहीं लेता, बल्कि अपनी शर्तों पर फैसले करता है।

डोनाल्ड ट्रंप का दावा केवल एक राजनीतिक बयान था। लेकिन भारत की सरकार, सेना, विदेश मंत्रालय और अब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री के बयान ने यह साफ कर दिया है कि युद्धविराम पूरी तरह द्विपक्षीय था। मोदी सरकार के लिए यह केवल एक कूटनीतिक जीत नहीं है, बल्कि एक नैरेटिव की मजबूती भी है। दशकों से भारत यही कहता रहा कि पाकिस्तान के साथ सारे मसले द्विपक्षीय हैं। अब पाकिस्तान ने खुद इस पर मुहर लगाकर ट्रंप को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला छोड़ दिया है।

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