क्या है सरना धर्म कोड? जातिगत जनगणना के बीच चर्चा में क्यों है?

यह आंदोलन भारतीय आदिवासी कर रहे हैं, जो खुद को हिंदू, ईसाई या किसी दूसरे बड़े धर्म से अलग मानते हैं।

क्या है सरना धर्म कोड? जातिगत जनगणना के बीच चर्चा में क्यों है?

इस बार झारखंड की जनगणना सरना धर्म कोड के बिना होगी। भू-राजस्व विभाग एक हफ्ते में इसकी अधिसूचना जारी करेगा। 1931 के बाद पहली बार पूरे देश में जातियों की जनगणना होगी। पहले केवल अनुसूचित जाति और जनजाति की गिनती होती थी, अब सभी जातियों का डेटा जमा किया जाएगा।

क्या है सरना धर्म?

सरना धर्म एक ऐसा धर्म है जिसे अभी सरकारी तौर पर आधिकारिक मान्यता नहीं मिली है। यह आदिवासी धर्मों में सबसे बड़ा माना जाता है। इसमें लोग पेड़-पौधे, पानी, जमीन और अपने गाँव के देवता की पूजा करते हैं। पूजा के लिए गाँव में ‘सरना’ नामक पवित्र स्थल भी बनाए जाते हैं। आदिवासी समुदाय चाहते हैं कि उनकी धार्मिक पहचान को जनगणना में अलग दिखाया जाए।
जनगणना के फार्म में हर धर्म के लिए अलग-अलग कोड होते हैं, जैसे हिंदू का 1, मुस्लिम का 2 और ईसाई का 3। इसलिए अब आदिवासी समुदाय चाहते हैं कि सरना धर्म के लिए भी अलग कोड दिया जाए।
सरना धर्म को जनगणना में अलग धर्म के रूप में मान्यता दिलाने की मांग के कारण यह मुद्दा लोगों की चर्चा में है। यह आंदोलन भारतीय आदिवासी कर रहे हैं, जो खुद को हिंदू, ईसाई या किसी दूसरे बड़े धर्म से अलग मानते हैं। अगर केंद्र सरकार उनकी मांग मान लेती है, तो सरना धर्म भी हिंदू, मुस्लिम की तरह आधिकारिक तौर पर एक अलग धर्म माना जाएगा।

कब से हो रही है सरना धर्म कोड की मांग

सरना धर्म कोड की मांग 2011 की जनगणना से हो रही है। आदिवासी समुदाय चाहते हैं कि उनकी धार्मिक पहचान को जनगणना में अलग दिखाया जाए। पहले, 1951 की जनगणना में उनके लिए अलग धर्म का विकल्प था, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया। अब आदिवासी लोग अपनी धर्म की पहचान “अन्य” में दर्ज कराते हैं, जिससे उनकी असली पहचान साफ़ नहीं दिखती। इसलिए सरना धर्म कोड की मांग उनकी पहचान को मान्यता देने के लिए की जा रही है।

नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा ने सभी पार्टियों की सहमति से सरना धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव पास किया और इसे केंद्र सरकार को भेजा। लेकिन अब तक केंद्र सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। इस कारण राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस का कहना है कि यह आदिवासी समुदाय की धार्मिक पहचान का मामला है और उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह जानबूझकर इस मुद्दे को अनदेखा कर रही है।

इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस की राय

बीजेपी और आरएसएस का मानना  है कि आदिवासी लोगों की आस्था हिंदू धर्म का हिस्सा है। उनका कहना है कि सरना केवल पूजा का तरीका है, इसे अलग धर्म मानने से आदिवासी हिंदू समाज से अलग दिखेंगे। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नवंबर 2024 में कहा था कि अगर बीजेपी सरकार में आती है तो आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड पर विचार करेगी।

कांग्रेस और झामुमो का कहना है कि सरना धर्म आदिवासी लोगों की अलग पहचान दिखाता है और इसे उनके अधिकार के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। उनका मानना है कि अगर जनगणना में सरना धर्म के लिए कॉलम नहीं है, तो इससे केंद्र सरकार की नियत पर सवाल उठते हैं।

 

 

 

 

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