भारत की विकास यात्रा एक बार फिर नई ऊंचाइयों को छू रही है। वर्ल्ड बैंक ने 7 अक्टूबर को जारी अपनी ताज़ा रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाकर 6.5% कर दिया है। यह संशोधन केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उस भरोसे की पुष्टि है जो वैश्विक संस्थान भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिरता और गति पर जता रहे हैं। वर्ल्ड बैंक का कहना है कि देश के भीतर उपभोग (consumption) की सतत मजबूती और बाजार में बढ़ती गतिविधियों के कारण भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखेगा। कर प्रणाली में हुए सुधार, विशेषकर GST में किए गए बदलाव, व्यापार जगत के लिए नई ऊर्जा लेकर आए हैं, जिससे आर्थिक प्रवाह और मजबूत हुआ है।
हालांकि, इसी रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2026-27 के लिए भारत की वृद्धि दर का अनुमान 6.5% से घटाकर 6.3% किया गया है। इसका कारण अमेरिका द्वारा कुछ उत्पादों पर लगाए गए 50% टैरिफ को बताया गया है, जो भारत के निर्यात क्षेत्र को अस्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके बावजूद, रिपोर्ट साफ संकेत देती है कि भारत की आर्थिक बुनियाद इतनी मजबूत है कि वैश्विक दबावों के बीच भी वह स्थिर गति से आगे बढ़ने में सक्षम है।
जीएसटी सुधार बनेंगे विकास की गति के सहायक
दरअसल, विश्व बैंक की ताज़ा दक्षिण एशिया विकास अपडेट रिपोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊँचे टैरिफ और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते प्रभाव से दक्षिण एशिया के आर्थिक परिदृश्य पर अनिश्चितता का माहौल बन रहा है। इसके बावजूद भारत के प्रति बैंक का दृष्टिकोण आशावादी और भरोसे से भरा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया है।
दूसरी ओर, पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए 2025 में अनुमानित 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2026 में विकास दर घटकर 5.8 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई है। इसका अर्थ है कि क्षेत्रीय चुनौतियों के बावजूद भारत की आर्थिक रफ्तार सबसे आगे बनी रहेगी। विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026-27 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान 6.3 प्रतिशत रखा है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ का कुछ असर भारत के निर्यात पर पड़ सकता है। हालांकि, यह प्रभाव अस्थायी बताया गया है और उम्मीद जताई गई है कि आने वाले समय में इसका असर धीरे-धीरे कम हो जाएगा।
विश्व बैंक का आकलन यह भी बताता है कि भारत की विकास गति का प्रमुख आधार उसकी मजबूत घरेलू खपत है। देश के भीतर बढ़ती मांग, बेहतर कृषि उत्पादन और ग्रामीण आय में सुधार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान किया है। इन कारकों ने देश की आर्थिक मजबूती को न केवल बनाए रखा है, बल्कि उसे और सुदृढ़ किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में किए गए सुधारों से आर्थिक गतिविधियों को अतिरिक्त समर्थन मिलेगा। टैक्स ढांचे को सरल बनाना, स्लैब घटाना और अनुपालन को आसान करना जैसे कदम व्यापारिक माहौल को बेहतर बना रहे हैं। इन सुधारों से कारोबारी वर्ग को राहत मिली है और उपभोक्ताओं को भी अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हुआ है, जिससे बाजार में नई ऊर्जा देखने को मिल रही है। विश्व बैंक की यह रिपोर्ट भारत की आर्थिक स्थिरता और नीति-निर्धारण पर वैश्विक भरोसे की अभिव्यक्ति है। तमाम वैश्विक चुनौतियों के बीच भी भारत ने जिस तरह से अपनी आर्थिक दिशा को संतुलित रखा है, वह उसकी आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक दृष्टि का प्रमाण है। बढ़ती खपत, नीति सुधारों और वैश्विक विश्वास के साथ भारत आज भी दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
अमेरिकी टैरिफ से बढ़ सकती हैं चुनौतियां
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊँचे टैरिफ आने वाले महीनों में भारत के निर्यात पर असर डाल सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अप्रैल में भारत को अपने प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम शुल्क का सामना करने की उम्मीद थी, लेकिन अगस्त के अंत तक हालात बदल गए। अब भारत पर अपेक्षा से कहीं अधिक टैरिफ लग चुके हैं, जिससे निर्यात क्षेत्र पर दबाव बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2024 में भारत के कुल निर्यात का लगभग पांचवां हिस्सा अमेरिका को भेजा गया था, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के करीब दो प्रतिशत के बराबर है। यही कारण है कि वित्त वर्ष 2026-27 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान घटाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया गया है, क्योंकि अब अमेरिका को जाने वाले भारत के करीब तीन-चौथाई निर्यात पर 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ लागू है।
अमेरिका ने केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के कई देशों पर आयात शुल्क बढ़ाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश और श्रीलंका पर 20 प्रतिशत, जबकि नेपाल, भूटान और मालदीव पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। इसका असर यह हुआ है कि अब बांग्लादेश से अमेरिका को निर्यात होने वाले अधिकांश माल पर औसतन 35 प्रतिशत, श्रीलंका से जाने वाले उत्पादों पर 30 प्रतिशत और भारत से निर्यात होने वाले माल पर लगभग 52 प्रतिशत तक का टैरिफ देना पड़ रहा है। कुछ उत्पादों पर अलग-अलग श्रेणियों के हिसाब से विशेष (प्रोडक्ट-स्पेसिफिक) टैरिफ लागू हैं, जो फिलहाल कम हैं, लेकिन रिपोर्ट का अनुमान है कि भविष्य में इनमें और वृद्धि हो सकती है।
वर्ल्ड बैंक की दक्षिण एशिया क्षेत्र की मुख्य अर्थशास्त्री फ्रांजिस्का ओन्सॉर्गे ने कहा कि अगर दक्षिण एशियाई देश व्यापार में अधिक खुलेपन को अपनाते हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी नई तकनीकों को तेज़ी से अपने आर्थिक ढांचे में शामिल करते हैं, तो यह पूरा क्षेत्र एक बड़े परिवर्तन का साक्षी बन सकता है। उनके अनुसार, यह बदलाव दक्षिण एशिया के लिए चुनौती भी है और अवसर भी, जो इसकी विकास यात्रा को नई दिशा दे सकता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दक्षिण एशिया की आर्थिक वृद्धि 2024-25 में 6.6 प्रतिशत से घटकर 2025-26 में 5.8 प्रतिशत रह सकती है। हालांकि, यह गिरावट अस्थायी बताई गई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि वैश्विक दबावों के बावजूद दक्षिण एशिया की आर्थिक गति अन्य उभरते और विकासशील बाजारों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत बनी हुई है। महंगाई को लेकर भी रिपोर्ट ने संतुलन का संकेत दिया है और उम्मीद जताई है कि मुद्रास्फीति क्षेत्र के अधिकांश देशों में केंद्रीय बैंकों के लक्ष्यों के भीतर रहेगी।