अमेरिकी ‘मिशनरी’ या छुपा एजेंट? भीवंडी में गिरफ्तारी और विदेशी कनेक्शन वाली धर्मांतरण की घटना

भिवंडी में हुई गिरफ्तारी महज एक पुलिस मामला नहीं है; यह इस बात की याद दिलाता है कि वैश्वीकरण और मिशनरी आउटरीच की छाया में

अमेरिकी ‘मिशनरी’ या छुपा एजेंट? भीवंडी में गिरफ्तारी और विदेशी कनेक्शन वाली धर्मांतरण की घटना

महाराष्ट्र का भीवंडी गांव, जो कभी बहुत शांत हुआ करता था, अब  वहां से एक गंभीर मामला सामने आया है। 3 अक्टूबर को पुलिस ने वहां से 58 साल के अमेरिकी नागरिक जेम्स वॉटसन को ठाणे से गिरफ्तार किया है, उसके साथ दो और भारतीय लोग भी पकड़े गए। उस पर आरोप है कि वॉटसन गाँव वालों को ईसाई धर्म में बदलने की कोशिश कर रहा था, और इसे “हीलिंग प्रेयर मीटिंग” के नाम से छुपाया जा रहा था।  पहले तो यह सिर्फ अवैध तरह से हो रहे धर्मांतरण का मामला लग रहा था, लेकिन अब इसमें विदेशी दखल, मिशनरी गतिविधियाँ और सीआईए जैसी एजेंसियों की छुपी हरकत सामने आ रही है।

वॉटसन और उसके सहयोगी गिरफ्तार

भीवंडी पुलिस के अनुसार, वॉटसन भारत में बिज़नेस वीज़ा पर आया था, लेकिन वह बिना अनुमति धार्मिक कार्यक्रम चला रहा था। उसके साथ दो स्थानीय लोग पकड़े गए – 42 साल के साईनाथ गणपति सर्पे (वासई) और 35 साल के मनोज गोविंद कोल्हा (चिंबिपाड़ा)। यह तब सामने आया जब 27 साल के गाँव वाले रविंद्र भुर्कुट ने पुलिस में शिकायत की।

भुर्कुट ने बताया कि लगभग 30-35 लोग कोल्हा के घर के बाहर जमा थे। वहां वॉटसन और उसके साथी ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे थे, हिंदू रीति-रिवाजों का मजाक उड़ा रहे थे और कह रहे थे कि केवल धर्म बदलने से ही गाँव वाले खुश और सफल हो सकते हैं।

गवाहों ने बताया कि आरोपियों ने पूछा कि क्या कोई छोटी लड़कियाँ बीमार हैं। फिर उन्होंने चार बच्चों के नाम लिखे और उनके माथे पर हाथ रखकर यह कहकर इलाज करने का दावा किया कि उनके पास “दिव्य ऊर्जा” है। साथ ही, उन्होंने शराब को प्रसाद के रूप में भी दिया, जो वहाँ की परंपरा में नहीं है।

व्यवसायी या मिशनरी?

पुलिस की जांच में पता चला कि वॉटसन ने अपना बिज़नेस वीज़ा धार्मिक कामों के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल किया। उसने खुद कहा कि वह बिज़नेस करता है, लेकिन खुफिया सूत्र मानते हैं कि इसके पीछे कोई छुपी योजना हो सकती है।

पिछले कुछ सालों में वॉटसन अक्सर भारत के कमजोर और संवेदनशील जिलों में गया। इसके पैटर्न देखकर सुरक्षा एजेंसियों को शक हुआ क्योंकि ऐसा लगता है कि कोई विदेशी बिना सही वीज़ा के आकर गुप्त तरीके से धार्मिक प्रचार या खुफिया काम कर सकता है।

नक्सली-मिशनरी कॉरिडोर की चिंता

भीवंडी में जो घटनाएँ हो रही हैं, वे ऐसे इलाकों के पास हो रही हैं जहाँ पहले से ही कट्टरपंथी गतिविधियाँ हो चुकी हैं। इसलिए लोग डर रहे हैं कि धर्म बदलवाने के पीछे कोई छुपा मकसद हो सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि नक्सली इलाके और मिशनरी कामों में अक्सर कनेक्शन देखने को मिलता है। सोशल मीडिया पर इसे “CIA की मिशनरी फ्रंट जैसी गुप्त योजना” कहा जा रहा है। इतिहास में भी पश्चिमी NGOs और मिशनरी समूहों पर ऐसे आरोप लगे हैं, जैसे नेपाल और म्यांमार में। कुछ मामलों में विदेशी मिशनरियों ने स्थानीय विद्रोही समूहों का भी समर्थन किया।

कानूनी कार्रवाई

भुर्कुट की शिकायत के बाद भीवंडी पुलिस ने वॉटसन और उसके साथियों के खिलाफ भारतीय कानून की धारा 299 और 302 के तहत केस दर्ज किया। इसके अलावा, उनके वीज़ा के गलत इस्तेमाल और महाराष्ट्र मानव बलि व काला जादू निवारण अधिनियम, 2013 के तहत भी कार्रवाई की गई।

पुलिस निरीक्षक हर्षवर्धन बर्वे ने कहा कि वॉटसन के पैसे के लेन-देन और उनके पिछले सफर की जांच की जा रही है। साथ ही उनके फोन, लैपटॉप और फंडिंग के स्रोत भी देखे जा रहे हैं।

गाँव वाले हैरान और नाराज हैं कि एक “विदेशी” बिना अनुमति सभाएँ चला सकता था। लोग चाहते हैं कि व्यवसायिक या NGO वीज़ा पर आने वाले विदेशी लोगों की कड़ी जांच हो, खासकर संवेदनशील इलाकों में।

दोहरे मानक और विदेशी नीतियाँ

वॉटसन की गिरफ्तारी ने फिर से यह सवाल उठाया है कि पश्चिमी देश अपने दोहरे मानक क्यों अपनाते हैं। वे खुद धार्मिक स्वतंत्रता की बात करते हैं, लेकिन भारत में अवैध धर्मांतरण और दखलअंदाजी पर अक्सर चुप रहते हैं।

विदेशी एजेंसियां वीज़ा का गलत इस्तेमाल करके, गरीब और कमजोर लोगों को प्रभावित कर सकती हैं, और यह भारत के ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी चिंता का विषय है।

भारत को अपनी सुरक्षा और संस्कृति की रक्षा करनी होगी

जेम्स वॉटसन की गिरफ्तारी दिखाती है कि विदेशी मिशनरी या व्यवसायी आसानी से भारत के गाँवों में आ सकते हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि देश की सुरक्षा, संस्कृति और संप्रभुता का भी मामला है।

सरकार को वीज़ा नियम कड़े करने चाहिए, मिशनरी और NGO पर निगरानी बढ़ानी चाहिए, और विदेशी प्रभाव वाले धर्मांतरण पर सख्त सजा होनी चाहिए। भीवंडी का मामला बताता है कि अब “धर्म प्रचार” और “गुप्त घुसपैठ” के बीच की लाइन बहुत धुंधली हो गई है।

 

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