मां काली का अपमान और ममता का मौन: बंगाल में तुष्टीकरण राज की भयावह सच्चाई

काली पूजा, जिसे बंगाल की आत्मा कहा जाता है, उसी भूमि पर देवी का सिर कलम होना और फिर पुलिस द्वारा मूर्ति को ‘प्रिजन वैन’ में ले जाया जाना, यह दिखाता है कि शासन की संवेदनशीलता अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है।

मां काली का अपमान और ममता का मौन: बंगाल में तुष्टीकरण राज की भयावह सच्चाई

आज बंगाल पूछ रहा है कि क्या मां काली की भूमि में अब भक्ति अपराध बन गई है?

जब मां काली की मूर्ति का सिर काट दिया जाए और सत्ता मौन रह जाए, तो यह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि सभ्यता और श्रद्धा के खिलाफ युद्ध बन जाता है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के काकद्वीप में काली पूजा के दौरान घटित यह घटना केवल एक धार्मिक अपमान नहीं, बल्कि ममता बनर्जी की तुष्टीकरण-प्रधान राजनीति के पतन का प्रतीक बन गई है।

काली पूजा, जिसे बंगाल की आत्मा कहा जाता है, उसी भूमि पर देवी का सिर कलम होना और फिर पुलिस द्वारा मूर्ति को ‘प्रिजन वैन’ में ले जाया जाना, यह दिखाता है कि शासन की संवेदनशीलता अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है।

भक्ति की भूमि पर भय का साया

काकद्वीप के उत्तर चंदनपुर गांव में जब काली पूजा के दौरान देवी की मूर्ति को अराजक तत्वों ने क्षतिग्रस्त किया, तो ग्रामीणों के लिए यह खबर बिजली की तरह गिरी। यह कोई छोटी बात नहीं थी। यह उस प्रदेश की आत्मा पर चोट थी, जिसने सदियों तक मां काली को मातृशक्ति, स्वतंत्रता और चेतना का प्रतीक माना है। बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने हमलावरों को “जिहादी” करार दिया, जिन्होंने पूजा स्थल में घुसकर मूर्ति का सिर काट दिया और फरार हो गए।

लेकिन इससे भी भयावह था प्रशासन का व्यवहार। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने मंदिर के दरवाज़े बंद कर दिए, ताकि घटना की तस्वीरें या वीडियो बाहर न जा सकें। जब भक्तों ने इसका सामूहिक रूप से विरोध किया, तब जाकर दरवाज़े खोले गए और सच्चाई सामने आई। सिरविहीन देवी, मौन प्रशासन और स्तब्ध समाज।

प्रिजन वैन में मां काली: श्रद्धा का अपमान, व्यवस्था की विफलता

अगली सुबह पुलिस ने जो किया, उसने आग में घी डालने का काम किया। देवी की मूर्ति को एक कैदी वैन में ले जाया गया, ठीक वैसे जैसे अपराधी ले जाए जाते हैं। भक्तों ने इसे एक गहरी धार्मिक चोट बताया। सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने मूर्ति को सबूत छिपाने के लिए हटाया, न कि सम्मानपूर्वक विसर्जन के लिए। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में भक्त ‘जय माँ काली’ के नारे लगा रहे हैं और पुलिस बल के बीच देवी की खंडित मूर्ति वैन में ले जाई जा रही है।

यह दृश्य किसी साधारण प्रशासनिक कार्रवाई का नहीं था। यह उस राज्य की मानसिकता का प्रतीक था, जो अपनी सभ्यता से कट चुका है, अपनी जड़ों से दूर हो चुका है।

केवल काकद्वीप नहीं, पूरे बंगाल में एक ही पैटर्न

काली पूजा और दीपावली की रातें, जो सामान्यतः उत्सव और प्रकाश का प्रतीक होती हैं, इस बार बंगाल में भय और हिंसा के प्रतीक बन गईं। कूचबिहार के तुफानगंज में पूजा कमेटी के सदस्यों पर हमला हुआ, रेलघुमटी क्षेत्र में बच्चों और महिलाओं को पुलिस ने पीटा और उलूबेरिया में पुलिस ने झूठी शिकायत के आधार पर लाठीचार्ज किया।

हर घटना के पीछे एक ही पैटर्न है। हिंदू त्योहारों के खिलाफ असहिष्णुता, पुलिस की कठोरता और सरकार की चुप्पी। बीजेपी ने इसे राज्य-प्रायोजित दमन बताया और ट्वीट किया “पुलिस मंत्री ममता ने अपनी पुलिस को हिंदुओं पर छोड़ दिया है। यही है उनका ‘वेस्ट बांग्लादेश विज़न।’

सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “ममता बनर्जी के राज में हिंदू पूजा नहीं कर सकते। या तो जिहादी हमला करते हैं या पुलिस आतंक मचाती है। यही है तुष्टीकरण की असली कीमत।

https://x.com/SuvenduWB/status/1981275800117924009

बंगाल की आत्मा पर चोट

यह घटना केवल धार्मिक असहिष्णुता नहीं, बल्कि प्रशासनिक पतन का दस्तावेज़ है। मां काली की मूर्ति का सिर काटना और फिर उसे वैन में डालकर ले जाना, उस बंगाल के लिए गहरा अपमान है, जिसने रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद जैसे संतों की भूमि के रूप में आध्यात्मिक गौरव कमाया था। आज वही भूमि ऐसी घटनाओं की गवाह बन रही है, जहां देवी की मूर्ति सुरक्षित नहीं, जहां पुलिस श्रद्धालुओं से भिड़ रही है और जहां शासन तुष्टीकरण की राजनीति में इतना डूब चुका है कि ‘न्याय’ और ‘नजरंदाजी’ में फर्क ही मिट गया है।

ममता बनर्जी की राजनीति का अंधकार

ममता बनर्जी का शासन अब उस स्थिति में पहुंच गया है, जहां अल्पसंख्यक तुष्टीकरण ने कानून-व्यवस्था को बंधक बना कर रख लिया है। हर चुनाव से पहले धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू भावनाओं को कुचला जाता है और हर बार प्रशासनिक चुप्पी इसे और वैधता देती है।

बंगाल की यह स्थिति केवल स्थानीय प्रशासन की विफलता नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का परिणाम है। जो मुख्यमंत्री हर मुद्दे पर ट्वीट कर देती हैं, वे मां काली के अपमान पर मौन क्यों हैं? क्या इसलिए कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना उनके वोट बैंक को नाराज़ कर सकता है?

काली की भूमि से उठती पुकार

काली पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि बंगाल की आत्मा का उत्सव है। मां काली यहां सृजन और संहार, न्याय और ऊर्जा की प्रतीक हैं। उनकी मूर्ति का सिर काटना और सरकार का मौन रहना, यह बताता है कि बंगाल अब केवल राजनीतिक रूप से नहीं, आध्यात्मिक रूप से भी विभाजित हो चुका है।

जो राज्य कभी “जय माँ काली, जय भारत” के नारे से गूंजता था, वहां अब भक्तों की आवाज़ पुलिस की लाठियों में दबा दी जाती है। ममता का ‘अपनापन’ अब एक “एपिज़मेंट एजेंडा” बन चुका है, जहां अपराधियों को बचाया जाता है और श्रद्धालुओं को सज़ा दी जाती है।

काकद्वीप की घटना केवल एक धार्मिक अपमान नहीं, बल्कि राज्य की आत्मा पर हमला है। मां काली की खंडित मूर्ति, पुलिस की वैन और भक्तों का रोष ये सब मिलकर बंगाल के शासन की भयावह सच्चाई उजागर करते हैं।

आज बंगाल पूछ रहा है कि क्या मां काली की भूमि में अब भक्ति अपराध बन गई है? क्या तुष्टीकरण की राजनीति इतनी गहरी हो चुकी है कि न्याय की आवाज़ भी ‘सांप्रदायिक’ कहलाने लगी है? इन सबके इतर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मामले पर चुप हैं। क्या तुष्टिकरण की राजनीति में वे इस कदर डूब चुकी हैं कि उन्हें भक्तों और अपराधियों में कोई फर्क ही नहीं समझ में आ रहा है।

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