हिंदू महिलाओं के खिलाफ जिहाद, मसूद अजहर का नया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत की वैचारिक प्रतिघोषणा

मसूद अजहर अब भारत के खिलाफ नई साजिश बुन रहा है। ऑपरेशन सिंदूर, जिसके निशाने पर हैं भारत की हिंदू महिलाएं, विशेष रूप से वे महिलाएं जो भारतीय सेना का हिस्सा हैं या पत्रकारिता के क्षेत्र में देश की आवाज़ बन चुकी हैं।

हिंदू महिलाओं के खिलाफ जिहाद, मसूद अजहर का नया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत की वैचारिक प्रतिघोषणा

इस युद्ध में गोलियों से ज्यादा शक्तिशाली होंगे शब्द, विचार और संकल्प।

पाकिस्तान के बहावलपुर में बैठे एक विकृत मस्तिष्क ने फिर से भारतीय सीमाओं की ओर ज़हर उगलना शुरू कर दिया है। वह वही शख्स है, जिसने पुलवामा में दर्जनों भारतीय जवानों की जान ली, जिसने संसद पर हमला करवाया और जिसने दशकों से ‘जिहाद’ के नाम पर नफरत को संस्थागत रूप दे दिया, मसूद अजहर। अब यह आतंकी भारत के खिलाफ एक नई साजिश बुन रहा है। ऑपरेशन सिंदूर, जिसके निशाने पर हैं भारत की हिंदू महिलाएं, विशेष रूप से वे महिलाएं जो भारतीय सेना का हिस्सा हैं या पत्रकारिता के क्षेत्र में देश की आवाज़ बन चुकी हैं। मसूद अजहर का यह प्लान न सिर्फ आतंकवाद का एक नया चेहरा प्रस्तुत करता है, बल्कि यह बताता है कि इस्लामी कट्टरवाद अब वैचारिक सीमाओं से आगे जाकर सांस्कृतिक और लैंगिक स्तर पर भारत के विरुद्ध एक व्यापक युद्ध छेड़ चुका है।

इस योजना के पीछे का मकसद सिर्फ हिंसा नहीं है, बल्कि भारत की आत्मा पर वार करना है। उस सभ्यता पर जो नारी को शक्ति, सृजन और सम्मान का प्रतीक मानती है। अजहर जिस महिला ब्रिगेड की स्थापना कर रहा है, उसका मकसद किसी सैन्य जीत से ज्यादा वैचारिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचाना है। यह युद्ध अब बंदूकों से नहीं, बल्कि प्रतीकों और सामाजिक अस्थिरता से लड़ा जाएगा और यही इस पूरी साजिश का सबसे खतरनाक पहलू है।

मसूद अजहर का ‘दौरा-ए-तस्किया’: जिहाद का नया चेहरा

बहावलपुर के मरकज उस्मान-ओ-अली में मसूद अजहर ने हाल ही में दौरा-ए-तस्किया नामक एक कार्यक्रम की घोषणा की है। यह नाम सुनने में तो धार्मिक लगता है, परंतु इसके पीछे की सोच घातक है। इसका अर्थ है आत्मिक शुद्धि, लेकिन इस शुद्धि का अर्थ इन आतंकी संगठनों के लिए आत्मघाती हमलों और नफरत के बीज बोने से है। इस प्रशिक्षण में पाकिस्तानी महिलाएं शामिल की जा रही हैं, जिन्हें अजहर ने कहा है कि वे मृत्यु के बाद सीधे जन्नत जाएंगी।

यह कथन अपने आप में इस्लामी आतंकवाद की सबसे घृणित विचारधारा को उजागर करता है। स्त्री को साधन बना देना, उसे एक ‘मौत के बाद की सौगात’ के रूप में उपयोग करना। अजहर इस पूरी ब्रिगेड को जमात-उल-मोमिनात कह रहा है, यानी ‘आस्थावान महिलाओं का समूह’। लेकिन, वास्तव में यह समूह जिहादी खिलौनों का एक ऐसा दल बनकर उभरेगा जिसे भारत के खिलाफ सोशल मीडिया प्रोपेगैंडा, सायकोलॉजिकल ऑपरेशन और चरमपंथी हिंसा के लिए तैयार किया जा रहा है।

महिला जिहाद का मनोवैज्ञानिक उद्देश्य: भारतीय नारी के प्रतीक को कलंकित करना

भारत में स्त्री सिर्फ जैविक अस्तित्व नहीं है। वह यहां संस्कृति का प्रतीक है। सिंदूर, मंगलसूत्र, करवा चौथ या दुर्गा पूजा जैसे प्रतीक भारतीय मानस में स्त्री को जीवनदायिनी शक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। यही कारण है कि मसूद अजहर ने इस मिशन का नाम रखा है ‘ऑपरेशन सिंदूर’।

यह नाम ही बताता है कि इस युद्ध का लक्ष्य क्या है, भारत की सांस्कृतिक आत्मा। आतंकवाद का यह नया अध्याय सिर्फ गोलियों का नहीं, बल्कि प्रतीकों के विनाश का युद्ध है। इस्लामी कट्टरवाद जानता है कि अगर भारत की नारीशक्ति को वैचारिक रूप से अपमानित या असुरक्षित महसूस कराया गया, तो समाज की स्थिरता हिल जाएगी। सिंदूर भारत में केवल विवाह का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना का भी प्रतिनिधि है और जब कोई आतंकी समूह इसे टारगेट करता है, तो इसका मतलब है कि वह भारत की सभ्यता पर युद्ध की घोषणा कर रहा है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पीछे की रणनीति: पुलवामा से आगे

ऑपरेशन सिंदूर को समझने के लिए यह याद रखना होगा कि मसूद अजहर और उसकी जैश-ए-मोहम्मद को 2019 के पुलवामा हमले में भारत से गहरा झटका लगा था। भारत ने बालाकोट स्ट्राइक के ज़रिए यह स्पष्ट कर दिया था कि अब सीमा पार आतंकवाद की कोई भी साजिश बिना जवाब के नहीं रहेगी। उसी के बाद से अजहर का नेटवर्क बिखरने लगा, कई आतंकी मारे गए, और पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बढ़ा।

अब अजहर ने समझ लिया है कि भारत को पारंपरिक आतंकवादी हमलों से नहीं तोड़ा जा सकता। इसलिए उसने एक वैकल्पिक जिहाद की शुरुआत की है, जिसमें औरतों को हथियार बनाया जाएगा और लक्ष्य होगा भारत की नैतिक और मनोवैज्ञानिक संरचना को तोड़ना। यह डिजिटल आतंकवाद और लैंगिक प्रोपेगैंडा का मिश्रण है, जिसमें भारतीय सोशल मीडिया, पत्रकारिता और महिला सशक्तिकरण के प्रतीकों पर हमले किए जाएंगे।

अजहर का यह प्लान पाकिस्तान की आतंकी अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा देगा। जमात-उल-मोमिनात जैसी इकाइयां फंडिंग के नए रास्ते खोलेंगी। वेलफेयर या वुमन रिलीफ के नाम पर चलने वाले NGO पाकिस्तान में पहले से ही ISI के फ्रंट के तौर पर काम कर रहे हैं। इन्हीं रास्तों से महिला जिहादियों को तैयार किया जाएगा और उन्हें शहीद बहनों के नाम पर प्रचारित किया जाएगा।

विधवा अफीरा फारूक और अजहर की बहनें: जिहाद की नई नायिकाएं

जैश की इस नई योजना में अजहर ने अपनी बहनों को ही नेतृत्व सौंपा है। सादिया अजहर और समायरा अजहर। इसके साथ ही पुलवामा के हमलावर उमर फारूक की विधवा अफीरा फारूक को भी नेतृत्व में रखा गया है। यह कदम सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है। अजहर चाहता है कि आतंक की इस नई खेप में विधवा नायिकाओं की छवि गढ़ी जाए, ताकि मुस्लिम समाज में उन्हें बलिदानी प्रतीक के रूप में पेश किया जा सके।

अफीरा फारूक की कहानी अब जन्नत की दुल्हन के रूप में प्रचारित की जा रही है। यह वही मनोवैज्ञानिक ट्रिक है, जो ISIS और अल-कायदा ने मध्य-पूर्व में अपनाई थी। मसूद अजहर अब उसी फार्मूले को भारतीय उपमहाद्वीप में आज़मा रहा है। पाकिस्तान की मदरसों में और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर अफीरा जैसी महिलाओं को यह सिखाया जा रहा है कि हिंदू महिला पत्रकार भारत की दुश्मन हैं और भारतीय सेना की महिलाएं जिहाद के खिलाफ हथियार हैं, इसलिए उन पर हमला करना पुण्य का काम है।

यह वैचारिक युद्ध जितना खतरनाक है, उतना ही सूक्ष्म भी है, क्योंकि यह धार्मिक कट्टरता को नारी सशक्तिकरण की नकली चादर में लपेटकर पेश किया जा रहा है।

पाकिस्तान की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय मौन

पाकिस्तान इस पूरे प्रकरण में दोहरी भूमिका निभा रहा है। एक तरफ वह संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का ढोंग करता है, दूसरी तरफ उसके आतंकी बहावलपुर के मदरसों में महिला जिहाद का प्रशिक्षण आयोजित कर रहे हैं। इस्लामाबाद की खुफिया एजेंसी ISI इस योजना की मास्टर फंडिंग एजेंसी है।

अमेरिका और यूरोपीय देश, जो कभी पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रजनन केंद्र कहते थे, आज उसकी महिला शिक्षा योजनाओं को फंड कर रहे हैं, जिनमें से कई सीधे जमात-उल-मोमिनात से जुड़ी हैं। इस पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी खामोश है, क्योंकि यह कथा इस्लामोफोबिया के बहाने दबा दी जाती है। BBC या न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे संस्थान जो भारत के भीतर किसी छोटे धार्मिक विवाद पर लंबी रिपोर्टें करते हैं, वे पाकिस्तान के इस महिला जिहाद मॉडल पर चुप हैं। उनका यह मौन सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक दिवालियापन का प्रतीक भी है।

भारत को इसलिए इस लड़ाई में किसी वैश्विक समर्थन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह युद्ध भारत को अपने बलबूते जीतना होगा, कूटनीति, खुफिया नेटवर्क और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के सहारे।

भारत की प्रतिक्रिया: ऑपरेशन सिंदूर और प्रतिघोषणा

जब पहलगाम में हिंदू पुरुषों को नाम पूछकर मारा गया, तब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। पाकिस्तान में जाकर आतंकी ठिकानों को तबाह किया। लेकिन अब समय आ गया है कि भारत इस युद्ध का दूसरा चरण शुरू करे, वैचारिक और साइबर स्तर पर।

भारत को चाहिए कि वह अपनी सांस्कृतिक आत्मरक्षा के तंत्र को सशक्त करे। मसूद अजहर का ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ हथियारबंद खतरा नहीं, बल्कि विचारों का युद्ध है। इस युद्ध का उत्तर भारत को नारी सशक्तिकरण के भारतीय मॉडल से देना होगा, जहां स्त्री सिर्फ भोग की वस्तु नहीं, बल्कि शक्ति की मूर्ति है।

भारतीय पत्रकारिता, सेना और नीति-निर्माण में कार्यरत महिलाओं को अब सिर्फ भागीदार नहीं, बल्कि वैचारिक योद्धा बनना होगा। यह समय है जब भारत अपनी दुर्गा शक्ति को पुनर्जीवित करे, क्योंकि यही शक्ति आतंकवाद के इस नए रूप को कुचल सकती है।

सभ्यता के युद्ध का निर्णायक चरण

मसूद अजहर का ऑपरेशन सिंदूर कोई साधारण आतंकी योजना नहीं है, यह सभ्यताओं के संघर्ष का अगला चरण है। एक ओर भारत की वह परंपरा है जो नारी को देवी, भूमि को माता और जीवन को उत्सव मानती है, दूसरी ओर वह विकृत मानसिकता है जो स्त्री को जिहाद का औजार बना देना चाहती है।

इस युद्ध में गोलियों से ज्यादा शक्तिशाली होंगे शब्द, विचार और संकल्प। भारत को अपने भीतर से यह संकल्प लेना होगा कि वह न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि अपनी संस्कृति की गरिमा की भी रक्षा करेगा। क्योंकि यह युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं, मस्तिष्कों में लड़ा जा रहा है। और इस युद्ध में वही जीतेगा जो अपनी नारी को देवत्व का, न कि शहादत का, प्रतीक बना सके।

भारत के लिए यह क्षण एक वैचारिक पुनर्जागरण का है और यदि भारत ने अपनी शक्ति की परंपरा को फिर से जागृत कर दिया, तो मसूद अजहर जैसे आतंकी इतिहास के कूड़ेदान में वही जगह पाएंगे, जहां उन सभी का अंत हुआ जिन्होंने भारत की स्त्री को चुनौती दी थी।

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