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सीमांचल की नई सुबह: विकास, सुरक्षा और अस्मिता संग भाजपा की बढ़त की कहानी

पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के जब सीमांचल में घुसपैठ रोकने की बात कही, तो यह केवल सुरक्षा का प्रश्न नहीं था। यह बिहार की अस्मिता से जुड़ा हुआ भावनात्मक आह्वान था।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
6 October 2025
in चर्चित, भारत, राजनीति, समीक्षा
ट्रंप से फेस टू फेस होने से बचना चाहते हैं पीएम मोदी, जानें कांग्रेस के इस आरोप में कितना है दम

महागठबंधन का सबसे बड़ा संकट यह है कि उसके पास नकारात्मक नैरेटिव तो है, लेकिन सकारात्मक एजेंडा नहीं।

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बिहार का सीमांचल यानी पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज एक ऐसा भूभाग, जो भौगोलिक रूप से जितना संवेदनशील है, राजनीतिक रूप से भी उतना ही निर्णायक भी। नेपाल और बंगाल से सटी यह ज़मीन सदियों से सीमाओं और सभ्यताओं के बीच सेतु रही है। लेकिन, लंबे समय तक यही भूगोल उसकी नियति बन गया। घुसपैठ, पिछड़ापन, तुष्टिकरण और जनसंख्या असंतुलन जैसी समस्याओं ने सीमांचल को बिहार की राजनीति का सबसे जटिल अध्याय बना दिया। आज वही सीमांचल बदलते भारत की नई तस्वीर लिखने को आतुर है और इस परिवर्तन के केंद्र में है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की वह नीति, जिसने सीमांचल को हाशिये से उठाकर मुख्यधारा में लाने का संकल्प लिया है।

अस्मिता के लिए घुसपैठ रोकना जरूरी

पिछले कुछ वर्षों में सीमांचल को जो सबसे बड़ा संदेश मिला, वह यह कि अब उसे वोट बैंक के रूप में नहीं, बल्कि विकास के इंजन के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जब सीमांचल में घुसपैठ रोकने की बात कही, तो यह केवल सुरक्षा का प्रश्न नहीं था। यह बिहार की अस्मिता से जुड़ा हुआ भावनात्मक आह्वान था। शाह का यह कथन कि जब तक सीमाएं सुरक्षित नहीं, तब तक बिहार सुरक्षित नहीं। उनका यह बयान सीमांचल की जनता के दिल में गूंज उठा। वर्षों से इस क्षेत्र के लोगों ने देखा है कि बांग्लादेशी घुसपैठ कैसे उनकी भूमि, नौकरियों और सामाजिक संतुलन पर असर डालती रही है। स्थानीय लोगों में यह भावना गहराई से जड़ जमा चुकी है कि घुसपैठ रोकना केवल कानून का नहीं, उनकी अस्मिता का प्रश्न है। एनडीए ने इस भावना को समझा, उसे राष्ट्रहित से जोड़ा और इसे राजनीतिक विमर्श के केंद्र में रखा।

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पूर्णिया एयरपोर्ट और पीएम मोदी की यात्रा

सीमांचल में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा और हाल ही में पूर्णिया एयरपोर्ट के उद्घाटन ने भाजपा की इस नीति को जमीन पर आकार दिया। 40 हजार करोड़ की विकास योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि सीमांचल अब ‘सीमा क्षेत्र’ नहीं, बल्कि ‘संभावना क्षेत्र’ है। मखाना बोर्ड की स्थापना, कृषि-उद्योगों को प्रोत्साहन, हाइवे और रेल नेटवर्क का विस्तार, ये सब एनडीए की उस सोच का हिस्सा हैं जिसमें विकास को सुरक्षा की तरह ही रणनीतिक माना गया है। भाजपा ने यह समझ लिया है कि सीमांचल को जोड़ने का सबसे सशक्त माध्यम न तो जातीय गोलबंदी है, न ही धार्मिक तुष्टिकरण, बल्कि विकास और राष्ट्र की सुरक्षा का संयोजन है।

निर्णायक भूमिका निभाएगा सीमांचल

सीमांचल की 24 सीटें इस बार बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में निर्णायक भूमिका निभाने जा रही हैं। पिछली बार भाजपा ने पूर्णिया, बनमनखी, कटिहार, कोढ़ा और फारबिसगंज जैसी सीटों पर मजबूती दिखाई थी। इस बार परिदृश्य और भी स्पष्ट है, जनता अब विकास की निरंतरता चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और केंद्र की योजनाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव गांव-गांव तक पहुंचा है। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, जल जीवन मिशन, इन योजनाओं ने सीमांचल की सामाजिक संरचना में गहरा बदलाव लाया है। जो परिवार पहले सरकारी योजनाओं से कटे रहते थे, वे अब केंद्र की नीतियों को अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं। यही वह आधार है जिसने भाजपा को सीमांचल के ग्रामीण इलाकों तक पैठ बनाने का अवसर दिया है।

दूसरी ओर, विपक्ष की स्थिति विरोधाभासी है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा अपने उद्देश्य से अधिक भ्रम पैदा कर रही है। वोट चोरी और मतदाता सूची की गड़बड़ी जैसे मुद्दे जनता के लिए उतने प्रासंगिक नहीं रह गए, जितना रोज़गार, सड़क, शिक्षा और सुरक्षा का प्रश्न है। सीमांचल की जनता अब यह भली-भांति समझती है कि जो दल वर्षों तक सत्ता में रहे, उन्होंने यहां के बुनियादी ढांचे को सुधारने के बजाय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को ही राजनीति का आधार बनाया। कांग्रेस, राजद और एआईएमआईएम जैसी पार्टियों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भय और भ्रम की राजनीति से लाभ उठाया, लेकिन न सड़कें बनीं, न उद्योग आए, न युवाओं को अवसर मिला। भाजपा ने इस शून्य को विकास के विमर्श से भरा।

अररिया और किशनगंज जैसे जिलों में जहां पहले विकास योजनाओं का नाम तक नहीं था, आज वहां नये स्कूल, अस्पताल और सड़कें बन रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं किशनगंज की सभा में कहा था कि सीमांचल अब भारत की नई उड़ान का आधार बनेगा। उनका यह वाक्य महज भाषण नहीं, एक दृष्टि है। वह दृष्टि जो सीमांचल को आत्मनिर्भरता और सुरक्षा दोनों का प्रतीक बनाना चाहती है। भाजपा के लिए सीमांचल की राजनीति केवल सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा की जीत है। यहां घुसपैठ का विरोध केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि उस राष्ट्रवादी भावना का विस्तार है, जो यह कहती है कि भारत की सीमाएं केवल भौगोलिक रेखाएं नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षक हैं।

पूर्णिया और कटिहार जैसे इलाकों में भाजपा-जदयू गठबंधन के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर यह संदेश फैलाया है कि मोदी सरकार ने सीमांचल को योजनाओं से जोड़ा, जबकि पिछली सरकारों ने इसे वोट की थाली से आगे कभी नहीं देखा। मनिहारी और कदवा जैसे क्षेत्रों में महिलाओं ने उज्ज्वला योजना के लाभ से अपनी ज़िंदगी बदली है, जबकि किसान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से लाभान्वित हुए हैं। एनडीए ने यहां के युवाओं के लिए ‘स्किल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं को स्थानीय प्रशिक्षण केंद्रों से जोड़ा है। इससे युवाओं में यह विश्वास बढ़ा है कि उन्हें अब अपने क्षेत्र में ही अवसर मिल सकते हैं।

भ्रम फैलाने की कोशिश में एआईएमआईएम और पप्पू यादव

एआईएमआईएम और पप्पू यादव जैसे नेता सीमांचल की राजनीति में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जनता अब पहचान चुकी है कि ये दल सीमांचल के स्थायी समाधान नहीं, बल्कि क्षणिक नारों की राजनीति करते हैं। पप्पू यादव का “स्वतंत्र” तेवर जनता को आकर्षित नहीं कर पा रहा, क्योंकि लोग अब जानते हैं कि विकास योजनाओं के लिए स्थिर सरकार चाहिए, न कि सड़कों पर विरोध का शोर। ओवैसी की राजनीति अब सीमांचल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एक सीमित प्रयास से आगे नहीं बढ़ पा रही। मुस्लिम समुदाय के भीतर भी यह चेतना बढ़ी है कि केंद्र की योजनाएं धर्म नहीं, नागरिकता देखकर लाभ देती हैं। यही भाजपा की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है। उसने सीमांचल में धर्मनिरपेक्षता को ‘समान विकास’ के रूप में व्याख्यायित किया।

2020 के बाद से भाजपा ने जिस संगठित ढंग से सीमांचल में अपने संगठन का विस्तार किया है, वह उल्लेखनीय है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का नेटवर्क, महिला मोर्चा की सक्रियता और स्थानीय नेतृत्व की भागीदारी ने पार्टी को उस स्तर पर पहुंचा दिया है, जहां वह अब इस क्षेत्र में निर्णायक शक्ति बन सकती है। किशनगंज और अररिया की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। कारण स्पष्ट है, जनता ने देखा है कि भाजपा की राजनीति ‘कथनी’ नहीं, ‘करनी’ पर आधारित है।

इस बार सीमांचल की हवा में स्पष्ट बदलाव महसूस किया जा सकता है। लोग कह रहे हैं कि अब वे घुसपैठ बनाम वोट चोरी के बीच नहीं, बल्कि सुरक्षा और विकास के बीच चुनाव करेंगे। यह बदलाव केवल एक चुनावी रुझान नहीं, बल्कि जनचेतना का संकेत है। सीमांचल की नई पीढ़ी अब पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर संभावनाओं की राजनीति चाहती है। यही वह धरातल है, जिस पर भाजपा ने अपनी पैठ बनाई है।

सीमांचल अब केवल बिहार की सीमा नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास का प्रतीक बन रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने यहां जो विकास और सुरक्षा का संतुलन साधा है, वह आने वाले वर्षों में न केवल बिहार बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए प्रेरणा बनेगा। यह कहा जा सकता है कि सीमांचल की राजनीति अब नई उड़ान भर रही है, उस उड़ान की जो राष्ट्रवाद, विकास और अस्मिता के पंखों पर सवार है। भाजपा ने इस बार केवल चुनाव नहीं, बल्कि एक विचार जीता है, वह विचार जो कहता है कि सीमाओं की रक्षा और जनता की समृद्धि, दोनों साथ-साथ चल सकती हैं। यही सीमांचल का नया युग है, जहां सीमा अब बाधा नहीं, बल्कि भारत के स्वाभिमान की पहली पंक्ति बन चुकी है।

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