पाकिस्तान एक बार फिर अपने ही घर में जल रहा है। बलूचिस्तान में आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे बलूच विद्रोहियों ने मंगलवार को एक बार फिर जाफर एक्सप्रेस को निशाना बनाकर देश की सैन्य सत्ता को झटका दे दिया। बलूचिस्तान रिपब्लिकन गार्ड्स (BRG) ने दावा किया कि उन्होंने सिंध के सुल्तान कोट इलाके में आईईडी विस्फोट कर ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतार दिए। उनके मुताबिक, ट्रेन में कई पाकिस्तानी सैनिक यात्रा कर रहे थे, जिन्हें निशाना बनाकर हमला किया गया। पाकिस्तानी मीडिया हालांकि हमेशा की तरह सच्चाई छिपाने की कोशिश कर रही है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस घटना में कई सैनिक घायल हुए हैं।
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, जाफर एक्सप्रेस पर हमला उस वक्त हुआ, जब ट्रेन शिकारपुर और जैकबाबाद के बीच गुजर रही थी। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि ट्रेन के छह डिब्बे पटरी से उतर गए और यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई। रेलवे अधिकारियों ने फिलहाल चार नागरिकों के घायल होने की बात कही है। लेकिन, BRG के प्रवक्ता ने वीडियो बयान जारी कर कहा कि हमने पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाया और यह कार्रवाई तब तक जारी रहेगी जब तक बलूचिस्तान को आज़ादी नहीं मिलती।
क्यों बार-बार जाफर एक्सप्रेस ही निशाने पर?
यह पहली बार नहीं है जब जाफर एक्सप्रेस पर हमला हुआ हो। दरअसल, यह ट्रेन पाकिस्तानी पंजाब से क्वेटा तक जाती है, और इसी मार्ग से अक्सर सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों की आवाजाही होती है। बलूच विद्रोही संगठनों का मानना है कि यह ट्रेन पाकिस्तान की दमनकारी मशीनरी का हिस्सा है, जो बलूचिस्तान में औपनिवेशिक कब्ज़ा बनाए रखने का माध्यम है।
बता दें कि मार्च 2024 में भी इसी ट्रेन को हाइजैक किया गया था, जिसमें 26 लोगों की मौत और 354 यात्रियों की रिहाई के लिए लंबा ऑपरेशन चला। इससे पहले 2023 और 2016 में भी इसी रूट पर ट्रेनों में विस्फोट हुए थे। यह लगातार जारी हमले पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की पोल खोलते हैं, खासकर उस सेना की, जो दशकों से कश्मीर के नाम पर आतंक फैलाने में व्यस्त रही, लेकिन अपने ही देश के अंदर उठ रही आज़ादी की ज्वाला को बुझा नहीं सकी।
बलूचिस्तान: पाकिस्तान की ‘भीतर की जंग’
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे गरीब प्रांत है, जहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। गैस, सोना, तांबा से लेकर यूरेनियम तक यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। लेकिन इन संसाधनों का दोहन हमेशा इस्लामाबाद और लाहौर के हुक्मरानों ने किया, जबकि स्थानीय जनता को गरीबी, बेरोज़गारी और सैन्य दमन के सिवा कुछ नहीं मिला।
बलूचिस्तान में सेना के अत्याचार, जबरन गुमशुदगियां और फर्जी एनकाउंटर अब आम बात हैं।
यही कारण है कि वहां की जनता पाकिस्तान को कब्ज़ेदार मानती है और आज़ादी की मांग को लेकर अब केवल गुट नहीं, बल्कि यहां की पूरी पीढ़ियां आगे बढ़ा रही हैं।
BRG, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन पाकिस्तान की सेना को खुले तौर पर कब्ज़े की फौज कहते हैं। इनके हमलों की रफ्तार पिछले दो सालों में तीन गुना बढ़ी है। सीपेक (चीन-पाक आर्थिक गलियारा) पर भी इनका सीधा विरोध है, क्योंकि उनके मुताबिक यह बलूच संसाधनों की लूट का नया औज़ार है।
भारत के लिए यह घटना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। जहां पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का राग अलापता रहता है, वहीं उसके अपने हिस्से बलूचिस्तान में आज़ादी का ज्वालामुखी हर हफ्ते फूट रहा है। भारत ने हमेशा ही कहा है कि पाकिस्तान पहले अपने घर को ठीक करे और अब वही सच्चाई दुनिया के सामने खुद-ब-खुद उजागर हो रही है।
दिलचस्प बात यह है कि बलूच विद्रोहियों के हमले अब केवल क्वेटा या मस्तुंग तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि सिंध और पंजाब की सीमाओं तक फैल चुके हैं। यानी यह अब आंचलिक विद्रोह नहीं रहा, बल्कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय एकता के लिए सीधा खतरा बन गया है।
आंतरिक विफलता और अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी
पाकिस्तान की इमरान सरकार के बाद से सेना ने ही देश का वास्तविक नियंत्रण अपने हाथ में ले रखा है। लेकिन आर्थिक तबाही, आतंकवाद की वापसी और अब बलूच विद्रोह ने यह साफ कर दिया है कि सेना अब अपने ही देश में असुरक्षित है। इंटरनेशनल मीडिया ने भी सवाल उठाया है कि पाकिस्तान की अरबों डॉलर की सुरक्षा व्यवस्था अगर एक ट्रेन नहीं बचा पा रही, तो वह आणविक शक्ति कहलाने के लायक कैसे है?
पाकिस्तान की जनता अब खुलकर पूछ रही है कि बलूचिस्तान के लोग आखिर क्यों बार-बार हथियार उठा रहे हैं? क्या यह महज़ आतंकवाद है या एक जनविद्रोह, जिसे इस्लामाबाद अब और नहीं दबा सकता?
भीतर से बिखर रहा पाकिस्तान
जाफर एक्सप्रेस पर यह हमला सिर्फ़ एक रेल हादसा नहीं, यह पाकिस्तान की राजनीतिक और सैन्य व्यवस्था की जड़ता का प्रतीक है। बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग अब सीमित आंदोलन नहीं रही। यह उस देश के अंतर्गत स्वाभाविक विस्फोट है, जिसने दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप को ही अपनी नीति बना लिया है।
भारत के लिए यह घटना यह संदेश दोहराती है कि आतंक के निर्यातक देश अब अपने ही पाले में आग देख रहे हैं। बलूच विद्रोह पाकिस्तान के लिए वही साबित हो सकता है जो 1971 में बंगाल था, एक ऐसा विद्रोह, जो आख़िरकार नकली एकता की दीवार गिरा कर ही दम लेगा।