भारत की कूटनीति अब ‘वर्चुअल’ नहीं, रणनीतिक है: आसियान शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी का डिजिटल नेतृत्व और एशिया की नई शक्ति-संतुलन रेखा

पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया कि भारत का विदेश नीति दृष्टिकोण अब केवल भौतिक उपस्थिति पर आधारित नहीं है।

भारत की कूटनीति अब ‘वर्चुअल’ नहीं, रणनीतिक है: आसियान शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी का डिजिटल नेतृत्व और एशियाकी नई शक्ति-संतुलन रेखा

इस बार आसियान शिखर सम्मेलन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आसियान शिखर सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने का निर्णय केवल एक ‘प्रोटोकॉल अपडेट’ नहीं, बल्कि बदलते भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं और आत्मविश्वासी वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक है। मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से उनकी व्यक्तिगत बातचीत और गहरी आत्मीयता का संदेश यह दिखाता है कि भारत अब केवल भागीदार नहीं, बल्कि ‘निर्धारक शक्ति’ के रूप में एशिया के मंच पर खड़ा है।

पीएम मोदी ने यह साफ कर दिया कि भारत का विदेश नीति दृष्टिकोण अब केवल भौतिक उपस्थिति पर आधारित नहीं है। जब कोई नेता वैश्विक मंच पर अपने कूटनीतिक संवाद को “डिजिटल डिप्लोमेसी” के रूप में इस्तेमाल करता है, तो यह शक्ति-संतुलन के एक नए मॉडल की ओर इशारा करता है, जहां प्रभाव, उपस्थिति से ज्यादा विचारों और नीतियों के दम पर कायम किया जाता है।

मलेशिया के प्रधानमंत्री का खुद ट्वीट कर यह बताना कि मोदी दीपावली के चलते आसियान शिखर सम्मेलन में वर्चुअली शामिल होंगे, अपने आप में यह दर्शाता है कि भारत की सांस्कृतिक प्राथमिकताएं अब किसी वैश्विक दबाव में झुकती नहीं हैं। पीएम मोदी का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भारत के लिए “सभ्यता-संवेदन” और “राजनय” परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।

इस बार आसियान शिखर सम्मेलन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। जयशंकर की उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी कि भारत का स्वर न केवल औपचारिक होगा, बल्कि रणनीतिक भी, क्योंकि भारत-आसियान साझेदारी अब केवल आर्थिक या निवेश तक सीमित नहीं है। दक्षिण चीन सागर की स्थिरता, इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा, और सप्लाई चेन की स्वायत्तता जैसे विषयों पर भारत की भूमिका निर्णायक बन चुकी है।

आसियान के 10 देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, ब्रुनेई, म्यांमार और फिलीपीन के बीच भारत की उपस्थिति एक ‘स्थिरता के प्रतीक’ के रूप में देखी जाती है। जब चीन लगातार दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, भारत का यह ‘विश्वसनीय साझेदार’ वाला चरित्र क्षेत्रीय राजनीति में संतुलन लाने का कार्य कर रहा है।

वर्ष 2025 के इस आसियान सम्मेलन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भागीदारी के साथ, यह मंच फिर से एशिया बनाम पश्चिम के टकराव का संकेत दे रहा है। लेकिन भारत इस टकराव में किसी खेमे का हिस्सा नहीं, बल्कि स्वतंत्र धुरी के रूप में उभर रहा है, जहां नीति ‘भारत केंद्रित’ है, न कि ‘पश्चिम या चीन केंद्रित’।

पिछले एक दशक में आसियान के साथ भारत का व्यापार दोगुना हुआ है और रक्षा साझेदारी का स्तर भी अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंचा है। यह सब ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की रणनीतिक परिणति है, जिसे मोदी सरकार ने 2014 के बाद नई गति दी। इस नीति का सार यही है कि भारत पूर्वी एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों में एक निर्णायक भूमिका निभाएगा, न कि दर्शक की तरह बैठेगा।

पीएम मोदी का वर्चुअल उपस्थिति का निर्णय यह भी बताता है कि अब भारत की नीति ‘समय-संवेदनशील’ है। एक ओर वे दीपावली जैसे सांस्कृतिक पर्वों को देश के भीतर प्राथमिकता दे रहे हैं, तो दूसरी ओर विदेश नीति के मोर्चे पर निरंतर संवाद बनाए रख रहे हैं। यह संतुलन ही नया भारतीय कूटनीति मॉडल है, जहां परंपरा और प्रगति दोनों का संगम है।

आसियान-भारत संबंधों की यह मजबूती केवल कूटनीतिक सौजन्यता का परिणाम नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था में भारत की वैचारिक स्थिति का प्रतिबिंब है। आज भारत किसी शक्ति के दबाव में निर्णय नहीं लेता, बल्कि स्वयं अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर कूटनीतिक दिशा तय करता है। यही स्वतंत्रता, मोदी युग की सबसे बड़ी पहचान है।

इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में स्क्रीन के माध्यम से जुड़ेंगे, तब वह केवल भारत के प्रतिनिधि नहीं होंगे, वे उस आत्मविश्वासी भारत की आवाज़ होंगे, जो कह रहा है कि हमारी उपस्थिति हमारे विचारों से तय होती है, हमारी नीति हमारे समय से नहीं, हमारे स्वाभिमान से संचालित होती है। भारत का आसियान में यह डिजिटल संवाद आने वाले वर्षों में उस नए एशियाई युग की नींव रखेगा, जहां भारत न केवल एक सहभागी शक्ति, बल्कि “संवेदनशील शक्ति” के रूप में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

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