समस्तीपुर की धूप में उमड़ता जनसागर, हाथों में लहराते झंडे और मंच से गरजती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवाज़। यह सिर्फ एक चुनावी सभा नहीं थी, बल्कि बिहार के राजनीतिक मानस की दिशा बताने वाला क्षण था। कर्पूरी ठाकुर की धरती पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब लालटेन और उसके साथी नहीं चाहिए, अब झुकेगा नहीं बिहार, तो यह वाक्य बिहार के दशकों पुराने राजनीतिक प्रतीकों पर चोट करने वाला संदेश था।
यह वही बिहार है, जिसने कभी लालटेन की रोशनी में राजनीति की शुरुआत देखी थी। लेकिन आज वही राज्य एलईडी, डिजिटल इंडिया और सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था की राह पर चल रहा है। पीएम मोदी का भाषण इसी संक्रमण का प्रतीक था। अंधेरे से उजाले की ओर, अतीत की राजनीति से विकास के भविष्य की ओर।
कर्पूरी ठाकुर से की शुरूआत
पीएम मोदी ने कर्पूरी ठाकुर के नाम से शुरुआत कर यह स्पष्ट कर दिया कि यह सिर्फ चुनावी भाषण नहीं, बल्कि एक वैचारिक संवाद है। उन्होंने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवन गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के सम्मान के लिए समर्पित था, और आज वही मिशन सुशासन के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है। इस संदर्भ में मोदी सरकार द्वारा कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का निर्णय, बिहार के सामाजिक न्याय के विमर्श में भाजपा की पैठ को और गहरा करने का राजनीतिक प्रयास भी है।
प्रधानमंत्री के भाषण में एक ओर अतीत का सम्मान था, तो दूसरी ओर भविष्य का वादा। उन्होंने विकास के प्रतीकों की सूची दी सिक्स लेन हाइवे, वंदे भारत ट्रेनें, बिजली के नए संयंत्र, किसानों को सीधे सहायता और मखाना बोर्ड जैसी योजनाएं। यह बिहार के हर घर में पहुंचते विकास के ठोस प्रमाण हैं, जो राजनीतिक विमर्श को जाति से काम की ओर खींच रहे हैं। मोदी ने यही संदेश देने की कोशिश की कि बिहार को अब अतीत के प्रतीकों की नहीं, नई सोच की ज़रूरत है।
नई रफ्तार से चलेगा बिहार, जब फिर आएगी एनडीए
उनकी यह पंक्ति नई रफ्तार से चलेगा बिहार, जब फिर आएगी एनडीए सरकार सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि बिहार के भीतर बदलते जनमानस का आईना भी है। 2015 और 2020 के बीच का बिहार बहुत कुछ बदल चुका है। नीतीश कुमार का अनुभव, भाजपा की संगठनात्मक शक्ति और केंद्र सरकार की योजनाओं का समन्वय, यह गठजोड़ बिहार में एक बार फिर सुशासन बनाम जंगलराज की बहस को पुनर्जीवित कर रहा है।
पीएम मोदी का भाषण इस लिहाज से भी रणनीतिक था कि उन्होंने प्रतिद्वंद्वी गठबंधन को सीधा निशाना बनाते हुए कहा कि जमानत पर चल रहे लोग अब जननायक की उपाधि की चोरी कर रहे हैं। यह टिप्पणी सिर्फ राजनीतिक कटाक्ष नहीं थी, बल्कि एक गहरी वैचारिक रेखा खींचने का प्रयास थी कि भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण की राजनीति का दौर अब समाप्त होना चाहिए।
कर्पूरी ठाकुर की धरती से दिया गया यह संदेश प्रतीकात्मक रूप से बहुत अर्थपूर्ण है। ठाकुर ने सामाजिक न्याय को संस्थागत रूप देने के लिए सत्ता की कुर्बानी दी थी और पीएम मोदी उसी सामाजिक न्याय को ‘समावेशी विकास’ के रूप में पुनर्परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा का यह नया विमर्श सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास कर्पूरी की विचारधारा के लोकधर्मी स्वरूप को आधुनिक प्रशासनिक भाषा में ढालने का प्रयास भी माना जा सकता है।
पीएम मोदी ने अपने भाषण में गरीबों और पिछड़ों के साथ-साथ सामान्य वर्ग के गरीबों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण की बात कर, सामाजिक न्याय की राजनीति को समान अवसर के फ्रेम में प्रस्तुत किया। यह आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन की उस राजनीति पर भी सीधा प्रहार है, जो अब भी सामाजिक विभाजनों के सहारे खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है।
विकास का दिया भरोसा
विकास की भाषा में बोलते हुए पीएम मोदी ने बिहार को तीन गुना विकास की रफ्तार का भरोसा दिलाया। उनका यह विश्वास महज़ राजनीतिक बयान नहीं था, बल्कि उस भरोसे की झलक थी जो केंद्र सरकार की योजनाओं से ग्रामीण बिहार में आकार ले रही है। प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि एनडीए सरकार की प्राथमिकता केवल सड़कों या पुलों तक सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल कनेक्टिविटी, महिला सशक्तिकरण और छोटे किसानों की आर्थिक स्वतंत्रता तक फैली है।
कर्पूरी ग्राम में जाकर भारत रत्न को नमन करना, मोदी के भाषण को एक भावनात्मक गहराई देता है। यह उन लाखों पिछड़े वर्गों के मतदाताओं को संदेश था कि भाजपा सिर्फ ‘ऊपरी तबकों की पार्टी’ नहीं, बल्कि उस नए सामाजिक आधार की वाहक है जो परिश्रम, स्वाभिमान और अवसर की राजनीति को केंद्र में रखता है।
इस यात्रा का बड़ा राजनीतिक अर्थ यह है कि भाजपा अब बिहार में लालटेन बनाम विकास की लड़ाई को निर्णायक बनाना चाहती है। लालटेन यहां सिर्फ एक चुनाव चिन्ह नहीं, बल्कि उस बीते दौर का प्रतीक बन चुकी है, जब सत्ता का उपयोग विकास की जगह जाति और सत्ता-संतुलन के लिए होता था। पीएम मोदी का लालटेन का युग खत्म कहना इसलिए भी प्रभावशाली है, क्योंकि यह जनता के भीतर पल रहे मनोभाव से मेल खाता है। बिहार अब पीछे नहीं देखना चाहता।
इस जनसभा ने यह भी दिखा दिया कि बिहार की राजनीति का भविष्य केवल गठबंधन समीकरणों से तय नहीं होगा, बल्कि उस विचार की दिशा से होगा जो जनता के जीवन में ठोस सुधार ला सके। पीएम मोदी ने यह कोशिश की कि सुशासन को केवल एक प्रशासनिक शब्द नहीं, बल्कि बिहार के आत्मसम्मान की आकांक्षा के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
जब पीएम मोदी ने कहा कि बिहार झुकेगा नहीं, तो वह केवल महागठबंधन पर हमला नहीं था, बल्कि बिहार के स्वाभिमान को जगाने वाली पुकार थी। यह पुकार उस बिहार के लिए है जो कभी प्रवासी मज़दूरों की कहानी से पहचाना जाता था, लेकिन आज उद्योग, शिक्षा और नवाचार की नई पहचान गढ़ना चाहता है।
कर्पूरी ठाकुर की धरती से पीएम मोदी का यह संकल्प लालटेन का युग खत्म, सुशासन का सवेरा शुरू दरअसल बिहार के राजनीतिक संक्रमण की घोषणा है। एक ओर अतीत की राजनीति के प्रतीक हैं, तो दूसरी ओर भविष्य की आकांक्षाएं। और यह सभा इस बात की गवाही बन गई कि बिहार अब उस रोशनी की ओर बढ़ रहा है जहां लालटेन नहीं, विकास का उजाला दिशा तय करेगा।




























