बीबीसी इंडिया का हालिया लेख Gen Z Rising? Why Young Indians Aren’t Taking to the Streets, पत्रकारिता से अधिक मानसिक युद्ध का प्रतीक लगता है। यह केवल भारत की सामाजिक और राजनीतिक वास्तविकताओं का विश्लेषण नहीं है, बल्कि एक तरह से पश्चिमी मीडिया की नाराज़गी और असहजता का दर्पण है। लेख का मूल संदेश अस्पष्ट रूप से यह है कि भारत के युवा पर्याप्त अराजक नहीं हैं, वे सड़कों पर नहीं उतर रहे हैं, विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, और इसलिए अपने पड़ोसी देशों नेपाल या बांग्लादेश के युवाओं के मुकाबले पीछे हैं।
यहां सवाल उठता है कि क्या शांति और अनुशासन को विफलता के रूप में दिखाना पत्रकारिता है या यह एक मनोवैज्ञानिक संदेश है, जिसका उद्देश्य युवाओं में अपराधबोध और असंतोष पैदा करना है। बीबीसी का यह लेख उसी मानसिकता का परिणाम लगता है, जिसमें लोकतांत्रिक स्थिरता, विकास और युवा सृजनशीलता को नजरअंदाज किया गया है।
आखिर भारत में शांति से दिक्कत क्या है?
लेख बार-बार भारत के Gen Z की कम सक्रियता को लेकर चिंता व्यक्त करता है। इसे पश्चिमी मीडिया अक्सर नकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है। बीबीसी हिंसक विरोध और सड़कों पर उथल-पुथल को प्रगतिशील और युवा ऊर्जा का प्रतीक बताता है, जबकि संयम, शांति और जिम्मेदारी को डर या दमन के रूप में चित्रित करता है। उदाहरण के तौर पर, लेख में repeatedly यह उल्लेख किया गया कि भारतीय युवा एंटी-नेशनल कहलाने के डर से या सरकार की आलोचना के भय से सड़कों पर नहीं उतरते। यह दलील सतही और भ्रामक है। वास्तविकता यह है कि युवा अब अपने समय और ऊर्जा को निर्माण और नवाचार में निवेश कर रहे हैं, न कि हिंसा या अराजकता में।
बीबीसी का लेख इतिहास की selective memory का परिचायक भी है। वह भारत के पुराने आंदोलनों जैसे अन्ना हजारे का आंदोलन, CAA विरोध को एक तरह से रोमांटिक बनाकर दिखाता है। हालांकि, वह यह भूल जाता है कि इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप हिंसा, सांप्रदायिक तनाव और भारी नुकसान हुआ। उदाहरण के लिए, CAA विरोध के दौरान दिल्ली और अन्य शहरों में हुई हिंसा में 50 से अधिक लोग मारे गए और करोड़ों रुपये का सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुआ। बीबीसी इन तथ्यों को नजरअंदाज कर केवल जनता का उत्साह और सड़कों पर क्रांति का जश्न मनाता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर उसकी दिक्कत क्या है?
लेख का एक और संदर्भ नेपाल के सितंबर 2025 के प्रदर्शन हैं। बीबीसी इसे युवा-नेतृत्व वाली क्रांति और नेताओं का रातों-रात पतन के रूप में प्रस्तुत करता है। लेकिन असलियत यह थी कि इन प्रदर्शनों में करीब 20 लोग मारे गए, सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचा और सेना को कर्फ्यू लगाना पड़ा। बाद में यह भी सामने आया कि कई प्रदर्शनों का वास्तविक उद्देश्य राजनीतिक एजेंडों के लिए हाइजैक किया गया था। बीबीसी ने इस तथ्य को नजरअंदाज किया। इसका उद्देश्य केवल नाटकीय कहानी प्रस्तुत करना और भारतीय युवाओं के मन में सड़कों पर उतरने की प्रेरणा पैदा करना प्रतीत होता है।
वास्तव में, भारत का Gen Z अब इस तरह की हिंसा या अराजकता में विश्वास नहीं रखता। उनका जुड़ाव अब डिजिटल प्लेटफॉर्म, स्टार्टअप, नवाचार, कला, नीति निर्माण और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से है। उदाहरण के तौर पर विश्वविद्यालय अब हैकाथॉन, इनोवेशन चैलेंज और डिजिटल अभियान की मेजबानी करते हैं, भूख हड़ताल या पत्थरबाजी नहीं। पेटेंट, स्टार्टअप और नई तकनीकें पुराने नारों और हिंसा की जगह ले चुकी हैं।
पश्चिमी मीडिया के लिए असहज है भारत का बदलाव
यह बदलाव बीबीसी और पश्चिमी मीडिया के लिए असहज है। भारत का Gen Z अपनी ऊर्जा को सृजन, सुधार और देश निर्माण में लगा रहा है। यह समाज की स्थिरता, आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति को प्राथमिकता देता है। पश्चिमी मीडिया के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उनके पुराने नैरेटिव भारत एक दमनशील, अस्थिर और अराजक लोकतंत्र है, अब टूट चुके हैं।
बीबीसी की आलोचना में केवल समाजशास्त्र या युवा प्रवृत्तियों का विश्लेषण नहीं है, बल्कि इसमें भारत की सभ्यता और विकास की उपेक्षा भी झलकती है। मोदी सरकार का शासन डिजिटल सशक्तिकरण, बुनियादी ढांचे का विकास, कल्याणकारी योजनाएं और सांस्कृतिक पुनरुत्थान युवाओं को केवल नारों से नहीं, परिणाम और प्रदर्शन के माध्यम से जोड़ता है। राम मंदिर का उद्घाटन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत पुनर्संतुलन का संकेत था। पश्चिम के लिए यह अस्वीकार्य है, क्योंकि यह दर्शाता है कि भारत अब अपनी पहचान, इतिहास और संस्कृति के साथ गर्व से खड़ा है, बिना किसी बाहरी मान्यता के।
बीबीसी का यह लेख यह भी उजागर करता है कि पश्चिमी मीडिया के पुराने दृष्टिकोण अब काम नहीं कर रहे। जब भारत को अस्थिर और उत्पीड़ित दिखाया जाता था, तब पश्चिमी मीडिया के लिए यह आदर्श कहानी थी। लेकिन आज भारत 8% विकास दर, मजबूत संस्थाएं, चुनावी स्थिरता और डिजिटल सशक्तिकरण के साथ दुनिया में अपने कदम मजबूती से रख रहा है। भारतीय युवा अब सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक भागीदारी में सक्रिय हैं, लेकिन उनके तरीके हिंसा या सड़कों पर प्रदर्शन नहीं हैं।
युवा अब अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हैं। वे मतदान, सामाजिक सेवा, डिजिटल अभियान, नीति निर्माण और नवाचार के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते हैं। उनकी सक्रियता अब स्थायी और सकारात्मक बदलाव के लिए केंद्रित है। यह पश्चिमी मीडिया की उम्मीदों अराजकता और हिंसा को चुनौती देता है।
संक्षेप में, बीबीसी का लेख केवल पत्रकारिता नहीं, बल्कि मानसिक उत्तेजना और विचारधारा का प्रदर्शन है। यह भारत की वास्तविकता को नहीं दर्शाता, बल्कि पश्चिमी मीडिया की असहजता और निराशा का प्रतिबिंब है। भारतीय Gen Z शांत, सृजनशील, और जिम्मेदार है। उनकी क्रांति हंगामा या हिंसा में नहीं, बल्कि नवाचार, सुधार और देश के निर्माण में है। उनके कार्यशैली और दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि उनका उद्देश्य केवल विरोध करना नहीं, बल्कि देश और समाज में स्थायी सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
इसलिए भारत के युवा अब सड़कों पर आग नहीं, बल्कि डिजिटल और सामाजिक क्रांति के माध्यम से दुनिया बदल रहे हैं। यही वह वास्तविकता है, जिसे बीबीसी और पश्चिमी मीडिया की नजरों से छुपाया नहीं जा सकता।





























