भ्रष्टाचार की सड़ांध और चेन्नई से Wintrack Inc की विदाई: जब सरकार और अफ़सर दोनों जिम्मेदार हों

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "Make in India" और "Ease of Doing Business" का सपना भी इसी बात पर टिका हुआ है कि भारत सुरक्षित, पारदर्शी और उद्योग हितैषी माहौल प्रदान करे। लेकिन, चेन्नई से आई इस खबर ने इस सपने को गहरी चोट पहुंचाई है।

भ्रष्टाचार की सड़ांध और चेन्नई से Wintrack Inc की विदाई: जब सरकार और अफ़सर दोनों जिम्मेदार हों

विदेशी निवेशक भी भारत से दूरी बनाना शुरू कर देंगे।

भारत आज विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां यहां आकर निवेश करना चाहती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “Make in India” और “Ease of Doing Business” का सपना भी इसी बात पर टिका हुआ है कि भारत एक सुरक्षित, पारदर्शी और उद्योग हितैषी माहौल प्रदान करे। लेकिन, चेन्नई से आई इस खबर ने पीएम मोदी के इस सपने को गहरी चोट पहुंचाई है।

टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पहचान बना चुकी कंपनी Wintrack Inc ने घोषणा की है कि वह अपना कारोबार समेट रही है। वजह? वही पुरानी बीमारी—भ्रष्टाचार। यह केवल एक कंपनी की हार नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की विफलता है। यह उस दीमक की कहानी है, जिसने आज़ादी के बाद से इस देश की जड़ों को चाट-चाटकर खोखला किया है। ऐसा नहीं है कि ये आरोप ऐसे ही लगा दिए गए हों। कंपनी के संस्थापक प्रवीन गणेशन ने कुछ कस्टम अधिकारियों के नाम लेकर आरोप लगाए हैं।

कंपनी की मजबूरी और भ्रष्टाचार का जाल

Wintrack Inc ने वर्षों तक चेन्नई को रोजगार दिया, तकनीकी कौशल विकसित किया और विदेशी निवेशकों के बीच भारत की छवि को मजबूत किया। लेकिन, जब रोज़ाना कामकाज करने के लिए अधिकारियों के भ्रष्ट रवैये से जूझना पड़े, हर मंजूरी पर रिश्वत का बोझ डाला जाए, तो आखिर कोई कंपनी कितने दिन तक टिकी रहेगी?

कंपनी के प्रबंधन ने साफ कहा-“हम कारोबार करना चाहते थे, लेकिन हर कदम पर भ्रष्टाचार ने हमें तोड़ा।” यह बयान सिर्फ एक कंपनी की व्यथा नहीं, बल्कि तमिलनाडु में निवेश करने वाले हर उद्यमी का सच है।

अधिकारियों का काला खेल

चेन्नई जैसे शहर, जो दक्षिण भारत की औद्योगिक और आईटी की राजधानी कहलाता है, वहां के अधिकारी अगर उद्योगपतियों को खुलेआम लूटने में लगे रहें, तो यह पूरे देश की छवि को धूमिल करता है।

लाइसेंस दिलाने में अड़ंगे

फाइल आगे बढ़ाने के लिए घूस की मांग

टैक्स और नियमों की आड़ में उत्पीड़न

निरीक्षण के नाम पर बार-बार परेशान करना

ये सब मिलकर किसी भी निवेशक को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि भारत में व्यापार करना आसान नहीं, बल्कि असंभव है।

क्या सरकार भी दोषी है?

यह सवाल यहीं पर रुकता नहीं। क्या यह सब केवल अधिकारियों का खेल है? बिल्कुल नहीं। जब किसी प्रदेश में लगातार ऐसी घटनाएं हों, तो सरकार पर सवाल उठना लाजमी है। राज्य की डीएमके सरकार का कर्तव्य है कि वह उद्योगों के लिए पारदर्शी माहौल बनाए, भ्रष्टाचार को खत्म करे और निवेशकों को विश्वास दिलाए। लेकिन जब सरकार चुप्पी साध लेती है या भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देती है, तब यह समझना आसान है कि राजनीति भी इस गंदे खेल का हिस्सा है।

चेन्नई की इस घटना में भी यही लगता है कि अगर राज्य की एमके स्टालिन सरकार चाहती तो Wintrack Inc जैसी कंपनी कभी भारत से न जाती। लेकिन या तो सरकार ने आंखें मूंद लीं या फिर सत्ता के गलियारों में भी इस भ्रष्टाचार का हिस्सा बंट रहा था।

जनता पर असर: असली पीड़ित कौन?

कंपनी का कारोबार बंद होना सिर्फ़ प्रबंधन का नुकसान नहीं है। इससे हजारों कर्मचारी बेरोज़गार हो जाएंगे। उनके परिवार रोज़ी-रोटी के संकट में फंस जाएंगे। चेन्नई ही नहीं, पूरे तमिलनाडु और भारत की अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा। इतना ही नहीं, विदेशी निवेशक भी भारत से दूरी बनाना शुरू कर देंगे। यानी भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों की चोरी नहीं है, यह सीधा जनता की थाली से रोटी छीनने जैसा अपराध है।

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