‘अग्नि से सजे हथियार’: 4.25 लाख स्वदेशी CQB कार्बाइन से सजी भारतीय सेना बनेगी आतंकियों के लिए काल

CQB कार्बाइन सिर्फ़ हथियार नहीं, एक मानसिक क्रांति हैं। आधुनिक युद्ध, खासकर आतंकवाद-रोधी ऑपरेशनों में, शहरी और नजदीकी लड़ाई निर्णायक होती है। जहां एक-एक सेकंड और एक-एक गोल़ी युद्ध का परिणाम तय करती है।

‘अग्नि से सजे हथियार’: 4.25 लाख स्वदेशी CQB कार्बाइनों से सजी भारतीय सेना बनेगी आतंकियों के लिए काल

यही असली परिवर्तन है, जहां बंदूक के ट्रिगर पर विदेशी मुहर नहीं, भारत लिखा होगा।

भारतीय रक्षा व्यवस्था के इतिहास में यह वह मोड़ है, जहां निर्भरता की जगह नियंत्रण ले रहा है, और आयात की जगह आत्मनिर्भरता अपनी पूर्ण प्रतिज्ञा निभा रही है। भारतीय सेना को आखिर वह हथियार मिलने जा रहे हैं, जिनकी प्रतीक्षा उसने लगभग डेढ़ दशक से की जा रही थी। क्लोज क्वार्टर बैटल (CQB) कार्बाइन। यह केवल एक सैन्य सौदा नहीं, बल्कि भारत की बदलती सुरक्षा सोच, औद्योगिक क्षमता और राष्ट्रवाद के आत्मविश्वास का उद्घोष है।

करीब 2,770 करोड़ रुपये के इस सौदे के तहत दो भारतीय कंपनियां कल्याणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम्स और अडानी समूह की रक्षा इकाई पीएलआर सिस्टम्स भारतीय सेना के लिए 4.25 लाख CQB कार्बाइन बनाएंगी। यह वह हथियार हैं, जिनकी मांग लंबे समय से अधूरी रही थी। पुराने मॉडल के कार्बाइन, जिन पर दशकों से जवान निर्भर थे, कब के रिटायर हो चुके हैं। आतंकियों के साथ नजदीकी मुठभेड़ में इन हथियारों की अनुपस्थिति एक स्थायी दर्द बन चुकी थी। लेकिन, अब वह दर्द इतिहास बनने जा रहा है।

यह निर्णय केवल एक औद्योगिक सौदा नहीं बल्कि भारतीय आत्मगौरव की पुनर्स्थापना है। दशकों तक छोटे हथियारों के लिए भारत विदेशी कंपनियों के दरवाज़े खटखटाता रहा है। कभी अमेरिकी, कभी यूरोपीय, तो कभी इजरायली हथियारों की फाइलें दक्षिण ब्लॉक की दीवारों में धूल खाती रहीं। हर बार प्रक्रिया विवाद, भ्रष्टाचार या लालफीताशाही में उलझ जाती। लेकिन, इस बार भारत ने तय किया कि उसकी सुरक्षा अब किसी विदेशी बोली का विषय नहीं होगी। यही ‘नया भारत’ है, जो अपनी बंदूक खुद बनाता है, अपनी युद्धनीति खुद लिखता है।

सिर्फ हथियार नहीं, मानसिक क्रांति

CQB कार्बाइन सिर्फ़ हथियार नहीं, एक मानसिक क्रांति हैं। आधुनिक युद्ध, खासकर आतंकवाद-रोधी ऑपरेशनों में, शहरी और नजदीकी लड़ाई निर्णायक होती है। जहां एक-एक सेकंड और एक-एक गोल़ी युद्ध का परिणाम तय करती है। कश्मीर, पूर्वोत्तर या नक्सल प्रभावित इलाकों में भारतीय सैनिकों के सामने अक्सर यही चुनौती होती है कि कम दूरी में, घरों और गलियों के भीतर आतंकियों से भिड़ंत। ऐसे में ये हल्के और अत्याधुनिक CQB कार्बाइन सेना के हाथों में शक्ति नहीं, बल्कि न्याय का प्रतीक बनेंगे, राष्ट्र के शत्रुओं के लिए।

आत्मनिर्भर भारत की भी झलक

इस सौदे की सबसे बड़ी बात यह है कि ये हथियार पूरी तरह भारत में बनेंगे। इसमें भारत का तकनीकी कौशल, भारतीय उद्योग की दक्षता और भारतीय वैज्ञानिकों की दृष्टि शामिल है। एक समय था, जब रक्षा उत्पादन का अर्थ लाइसेंस असेंबली भर था। अब वह समय समाप्त हो चुका है। भारत अब केवल असेंबलर नहीं, आविष्कारक की भूमिका में है। कल्याणी ग्रुप और पीएलआर सिस्टम जैसे उद्योग न केवल सेना की जरूरतें पूरी करेंगे, बल्कि भारतीय रक्षा उद्योग के लिए एक नया मानक तय करेंगे।

इस निर्णय के समानांतर भारतीय सेना ने 104 जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल और 12 लॉन्चर की खरीद की प्रक्रिया भी तेज की है। ये दोनों निर्णय मिलकर बताते हैं कि भारतीय सेना अब प्रतिक्रियावादी नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति की ओर बढ़ रही है। यह अब डिफेंस फोर्स नहीं, बल्कि डिटरेंस फोर्स—यानी ऐसा बल जो दुश्मन के इरादे को जन्म लेने से पहले ही समाप्त कर दे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ अब महज़ नारा नहीं रहा, यह मैदानों में उतर चुका है। सैनिकों के हाथों में जब स्वदेशी कार्बाइन होगी, तब वह हथियार केवल लोहे की बनी वस्तु नहीं होगी, वह आत्मनिर्भर भारत की आत्मा होगी। यही वह क्षण है जब भारत ने अपने सैनिकों को न केवल गोला-बारूद दिया, बल्कि स्वाभिमान भी सौंपा।

इस करार के साथ भारत ने अपने रक्षा-उद्योग की दिशा भी स्पष्ट कर दी है। अब टैंक, मिसाइल या फाइटर जेट ही नहीं, छोटे हथियारों में भी पूर्ण स्वदेशीकरण का लक्ष्य रखा गया है। ये छोटे हथियार ही हैं, जो मोर्चे पर पहला और आख़िरी संघर्ष तय करते हैं। 4.25 लाख कार्बाइन के आने से सेना की हर बटालियन, हर अग्रिम चौकी और हर आतंक-विरोधी यूनिट की क्षमताएं कई गुना बढ़ जाएंगी।

लेकिन, यह कहानी केवल शस्त्रों की नहीं है। यह कहानी मनोबल की है। जब एक सैनिक को यह ज्ञात हो कि उसका हथियार उसके ही देश की मिट्टी में बना है, उसकी हर गोली उसी राष्ट्र के गर्भ से निकली है, जिसकी रक्षा वह कर रहा है तो उसका आत्मबल दस गुना बढ़ जाता है। यह वही आत्मबल है जो कारगिल की चोटियों पर दिखा, और यह वही आत्मबल है जो अब आतंकवाद के अंधेरों को चीरकर निकलेगा।

कहा जाता है, हर युग अपने प्रतीक गढ़ता है। आज का भारत अपने प्रतीक स्वदेशी हथियारों में ढाल रहा है। CQB कार्बाइन केवल एक तकनीकी उपकरण नहीं, यह राष्ट्र की चेतना का विस्तार है। यह उस भारत का प्रतीक है जो अब रक्षा नहीं, प्रतिशोध की क्षमता रखता है। आतंक के हर ठिकाने को यह बताने का संदेश है कि अब भारतीय सैनिक के हाथ में विदेशी दया नहीं, भारतीय दृढ़ता है।

जो भारत कल तक सप्लायर की देरी से परेशान था, आज वह अपने सैनिक को कह सकता है​ कि अब देरी नहीं, निर्णय होगा। यही निर्णय भारत को एक नई रक्षा सभ्यता की ओर ले जा रहा है, जहां सुरक्षा नीति आत्मनिर्भरता से शुरू होती है और राष्ट्र गौरव पर समाप्त होती है।

यही असली परिवर्तन है, जहां बंदूक के ट्रिगर पर विदेशी मुहर नहीं, भारत लिखा होगा। यही नए भारत की सबसे बड़ी ताक़त है और यही आतंकवाद के अंत का प्रारंभ।

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