पाकिस्तान ने हाल ही में अपनी “शिप–लॉन्च्ड एंटी–शिप बैलिस्टिक मिसाइल (ASBM)” का परीक्षण किया है। पाकिस्तान की तरफ़ से SMASH नाम की इस एंटीशिप मिसाइल के लॉन्च का वीडियो भी लॉन्च किया गया है। इस परीक्षण के बाद से ही पाकिस्तान द्वारा इस मिसाइल को “INS विक्रांत किलर” कह कर पेश किया जा रहा है। पाकिस्तान बेस्ड डिफेंस एक्सपर्ट सोशल मीडिया पर प्रचार कर रहे हैं कि पाकिस्तान की ये नई हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल जब चाहे “INS विक्रांत” को अरब सागर में डुबा सकती है।
पाकिस्तान नौसेना द्वारा जारी किए गए एक छोटे से वीडियो में PNS टीपू सुल्तान (जो कि एक चीनी–निर्मित टाइप 054A/P मल्टी रोल फ्रिगेट है)—इस मिसाइल को दागते हुए दिख रहा है। पाकिस्तानी हैंडल्स ये दावा भी कर रहे हैं कि ये मिसाइल 700–850 किमी दूर मौजूद जहाजों, और दूसरे समुद्री टारगेट्स को हाइपरसोनिक स्पीड से निशाना बना सकती है।
हालाँकि, पाकिस्तान की डिफेंस इंडस्ट्री, जिस फ्रिगेट से इसे दागा गया है– उसकी तकीनीकी सीमाओं और ASBM जैसे हथियारों के लिए जरूरी “किल–चेन” की गैरमौजूदगी और खुद इस वीडियो के फ्रेम–दर–फ्रेम विश्लेषण से साफ़ हो जाता है कि पाकिस्तान का यह दावा न तो तकनीक के स्तर पर टिकता है, न औद्योगिक क्षमता और न ही रणनीतिक स्तर पर।
सच्चाई ये है कि पाकिस्तान ने जिस मिसाइल का परीक्षण किया है, वह ज्यादा से ज्यादा एक सुपरसोनिक एंटी–शिप क्रूज़ मिसाइल का ही कोई वैरिएंट हो सकता है, जिसे एक एंगल के साथ झुके हुए रेल टाइप डेक–लॉन्चर से दागा गया है।
ज़ाहिर है ये मिसाइल न तो ASBM है, न ही हाइपरसोनिक, खासकर तकनीक के स्तर पर ये चीन की DF-21D या DF-26 जैसी तो बिल्कुल भी नहीं है, जैसा कि दिखाने की कोशिश की जा रही है।
पाकिस्तान के डिफेंस इकोसिस्टम में SMASH की कोई मौजूदगी नहीं
पाकिस्तान की डिफेंस इंडस्ट्री और सप्लाई चेन इकोसिस्टम सिस्टम न सिर्फ छोटा है, बल्कि सीमित भी है, जहां किसी भी बड़े और नए मिसाइल प्रोजेक्ट को आसानी से छिपाया नहीं जा सकता है। क्योंकि ख़ासकर पाकिस्तान जैसे देश में जब कोई भी नया मिसाइल प्रोजेक्ट शुरू होता है तो कई तरह के स्पष्ट संकेत भी नज़र आते हैं, फिर चाहे वो अलग अलग पार्टनर्स को दिए गए ‘टेंडर’ हों या फिर उस प्रोजेक्ट के लिए इंगेज की जाने वाली मैन पॉवर हो( NESCOM या NDC)। यही नहीं डिफेंस एक्सपो में आम तौर पर ऐसे फ़्लैगशिप हथियारों के मॉडल शो केस किए जाते रहे हैं।
वैसे भी किसी मिसाइल को बनाने से लेकर उसे टेस्ट करने में अच्छा–खासा समय लगता है और तब जाकर कोई मिसाइल सर्विस में इंडक्ट की जाती है। यानी मिसाइल डेवलमेंट एक टाइम टेकिंग प्रोसेस है। पाकिस्तान की ‘अबाबील’ और ‘फतह-II’ की ही बात करें, तो इन्हें बनाने में सालों का समय लगा है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि SMASH के लिए ऐसा कोई संकेत कहीं नहीं मिलता ।
यही नहीं SMASH को लेकर ऐसा एक भी लिंक या सार्वजनिक प्रमाण नहीं मिलता, जो मिसाइल डेवलमेंट पर काम करने वाली पाकिस्तान की अलग अलग एजेंसीज़ जैसे NESCOM, NDC, SUPARCO, HIT या फिर पाकिस्तानी नेवी के डॉकयार्ड से ही इसके किसी प्रकार के संबंध को सामने रखता हो।
यानी न किसी प्रकार का कोई टेंडर जारी हुआ, न भर्तियां निकलीं, न ही किसी औद्योगिक इकाई में इसके डेवलमेंट से जुड़ा कोई संकेत मिला।यहां तक कि 2024 के अंत से पहले तक SMASH नाम का भी पाकिस्तान में कोई ज़िक्र तक नहीं मिलता।
अब इतनी कॉम्पलेक्स टेक्नॉलजी वाली एक शिप–लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल बिना किसी इंडस्ट्रियल एक्टिविटी के रातों–रात अचानक से नहीं पैदा हो सकती। लेकिन पाकिस्तान में इसके डेवलमेंट को लेकर इंड्रस्ट्रियल एक्टिवटी के कोई सार्वजनिक संकेत नहीं मिलते। यहीं से ही पाकिस्तान के दावे की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो जाती है।
टाइप 054A/P फ्रिगेट बैलिस्टिक मिसाइल दागने में सक्षम नहीं
वीडियो में दिखाई देने वाला PNS टीपू सुल्तान अपने 32-सेल वर्टिकल लॉन्च सिस्टम के जरिए सिर्फ़ HQ-16 (सर्फेस टू एयर मिसाइलों) के कोल्ड–लॉन्च के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये लॉन्च सेल बैलिस्टिक मिसाइल के हॉट–लॉन्च से पैदा होने वाली गर्मी, गैस, हाई प्रेशर और स्ट्रक्चरल टेंशन को बिल्कुल भी सहन नहीं कर सकते। बैलिस्टिक मिसाइलें न सिर्फ आकार में बड़ी होती हैं, बल्कि लॉन्च किए जाते वक्त वो जबरदस्त हीट, प्रेशर और बड़ी मात्रा में गैस भी रिलीज़ करती हैं।
ऐसे में बैलिस्टिक मिसाइल से पैदा हुई गर्मी को झेलने के लिए जहाज़ में बड़े पैमाने पर स्ट्रक्चरल चेंज करने पड़ते हैं– जैसे जैसे ज्यादा मज़बूत और गर्मी सहन करने लायक़ ‘साइलो‘, फ्लेम–ट्रेंच, ब्लास्ट–आइसोलेटेड कम्पार्टमेंट और गैस मैनेजमेंट सिस्टम। जबकि टाइप 054A/P फ़्रिगेट (जिससे इसे लॉन्च किया गया है) में ऐसा कुछ भी मौजूद नहीं है।
अगर पाकिस्तान ने इस फ़्रिगेट को ASBM लॉन्च के लिए ‘रेट्रोफिट’ किया होता, तो न सिर्फ इसके ‘हल स्ट्रक्चर’ में बड़े बदलाव दिखते, बल्कि जब इसे वायरिंग चेंज, वेट बैलेंसिंग और डॉकयार्ड मॉडिफिकेशन के लिए भेजा जाता तो न सिर्फ इसके लिए टेंडर्स जारी होते, बल्कि इसे डॉकयार्ड में भी लंबे वक्त के लिए खड़ा रहना पड़ता। ऐसे में डॉकयार्ड की सैटेलाइट तस्वीरों में भी ये वहां ज़रूर दिखती, लेकिन ऐसा कुछ भी नज़र नहीं आया।
ऐसे में इस जहाज का जो मौजूदा डिज़ाइन है, उससे इस मिसाइल को लॉन्च करना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
चीन ASBM तकनीक का निर्यात नहीं करता
कुछ लोगों का ये तर्क भी है कि, ‘हो सकता है पाकिस्तान को ASBM की तकनीक चीन से मिली हो।’
लेकिन ये तर्क भी सच्चाई से कोसों दूर है। दरअसल ASBM न सिर्फ चीन की सबसे ‘क्लासीफाइड’ सैन्य क्षमताओं में से एक है, बल्क ये PLA जैसी रॉकेट फोर्स की एंटी–एक्सेस रणनीति का आधार भी हैं। चीन ने आज तक DF-21D या DF-26 के किसी भी संस्करण– फिर चाहे वो मैनुवरेबल री–एंट्री व्हीकल (MaRV) तकनीक हो या हाइपरसोनिक टर्मिनल–गाइडेंस सिस्टम का निर्यात नहीं किया है। चीन के द्वारा सैन्य, राजनीतिक या औद्योगिक—किसी भी आधार पर पाकिस्तान को ऐसी तकनीक प्रदान किए जाने का कोई उदाहरण मौजूद नहीं।
पाकिस्तानी का वीडियो ही उसके संदिग्ध दावे का सबसे बड़ा प्रमाण
इस मिसाइल को लेकर निर्णायक प्रमाण उसी वीडियो फुटेज से मिलता है, जिसे पाकिस्तान ने खुद जारी किया। इस वीडियो में मिसाइल को एक तिरछे झुके, रेल बेस्ड लॉन्चर से दाग़ते हुए दिखाया गया है—किसी ‘वर्टिकल साइलो’ से नहीं। ये लॉन्चर लगभग 35–45 डिग्री झुका हुआ है, जो हार्बह क्रूज़ मिसाइल, C-802/803 या CM-302 जैसे मिसाइल सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले लॉन्चर जैसा ही है।
जबकि दुनिया में कोई भी ASBM—फिर चाहे वो अमेरिकी हो या चीनी—angled launcher का इस्तेमाल नहीं करतीं।सभी ASBM आमतौर पर vertical canister launch सिस्टम से दागी जाती हैं।
तकनीकि आधार पर भी देखें तो एक angled launcher किसी बैलिस्टिक मिसाइल को ठीक से लॉन्च कर ही नहीं सकता और इसी एक फैक्ट से ये स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान ‘विक्रांत किलर’ ASBM बनाने का ये दावा हकीकत के कितना करीब है।
मिसाइल लॉन्च का वीडियो हो, लॉन्च में इस्तेमाल फ़्रिगेट हो, मिसाइल की ‘बैलिस्टिक ट्रेजेट्री’ का मिस होना हो या फिर उसके पीछे की इंड्रस्ट्रियल एक्टिविटी का पूरी तरह ग़ायब होना। ये सब बताते हैं कि पाकिस्तान का ये दावा न सिर्फ संदेहास्पद है, बल्कि हकीकत से कोसों दूर भी हैंं।
जहां तक रही बात INS विक्रांत को पाकिस्तान की इस मिसाइल से खतरे की- तो पाकिस्तान और पाकिस्तान बेस्ड सोशल मीडिया हैंडल्स द्वारा किया जा रहा ये दावा Science, Engeering या फिर किसी भरोसेमंद इंटेलिजेंस इनपुट पर बेस्ड नहीं है– बल्कि ये सिर्फ पाकिस्तान के द्वारा perception बनाने की एक कोशिश है, जो एक बार फिर बुरी तरह एक्सपोज़ हो गई है।
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