हिंसा और अस्थिरता के साये में बांग्लादेश: चुनाव से पहले बढ़ता संकट

नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) और जमात-ए-इस्लामी: दोनों दल लगातार चुनाव टालने की मांग कर रहे हैं। फरवरी 2025 में बनी NCP का मानना है कि उसे देशभर में समर्थन जुटाने के लिए अभी और समय चाहिए।

अस्थिरता के साये में बांग्लादेश

अस्थिरता के साये में बांग्लादेश

छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की 11 दिसंबर को हुई हत्या के बाद बांग्लादेश में हालात और अधिक बिगड़ गए हैं। हादी का संबंध नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) से था, जो पिछले साल हुए छात्र-आंदोलन से उभरी एक नई राजनीतिक ताकत है। उनकी हत्या के बाद से देश में भारत-विरोधी प्रदर्शन, अख़बारों के दफ्तरों पर हमले, भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग), तोड़फोड़ और सड़क हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। सोमवार को एक और छात्र नेता, मोतालेब शिकदर, की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे देश में अस्थिरता को लेकर आशंकाएं और गहरी हो गई हैं।

ये चुनाव अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाए जाने के बाद बांग्लादेश के पहले चुनाव होंगे। इससे अवामी लीग के 15 वर्षों के शासन का अंत हुआ। ये चुनाव इसलिए भी बेहद अहम हैं क्योंकि इनके साथ-साथ ‘जुलाई चार्टर’ पर जनमत संग्रह (रेफरेंडम) भी होगा। यह अंतरिम सरकार द्वारा तैयार किए गए संवैधानिक सुधारों का एक प्रस्ताव है। इसका उद्देश्य केवल नई सरकार का चुनाव नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र को नया रूप देना है। लेकिन इन सबके सफल होने के लिए शांति और स्थिरता बेहद जरूरी है। इसके बिना स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनाव संभव नहीं हैं।

अनिश्चित मतदाता वर्ग

देश में आम जनता का मनोभाव अब भी असमंजस में है। अगस्त 2025 में ब्रैक इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक सीमित सर्वे में पाया गया कि लगभग 50 प्रतिशत मतदाता अब भी अनिर्णीत हैं, जो अक्टूबर 2024 की तुलना में काफी अधिक है। यह स्थिति भ्रम, अविश्वास और नए राजनीतिक विकल्पों को लेकर स्पष्टता की कमी को दर्शाती है।

कौन क्या चाहता है?

चुनाव नजदीक आने के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के हित अलग-अलग हैं:

नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) और जमात-ए-इस्लामी: दोनों दल लगातार चुनाव टालने की मांग कर रहे हैं। फरवरी 2025 में बनी NCP का मानना है कि उसे देशभर में समर्थन जुटाने के लिए अभी और समय चाहिए। सड़क पर आंदोलन और तीखी बयानबाजी उसके लिए जल्दी चुनाव से ज्यादा फायदेमंद हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP): मजबूत जमीनी संगठन वाली यह एकमात्र पारंपरिक पार्टी है, जो जल्द से जल्द चुनाव चाहती है। शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बने राजनीतिक खालीपन का लाभ उठाकर वह सत्ता में आना चाहती है। हसीना शासन के दौरान उत्पीड़न झेल चुकी BNP अब नई राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने के लिए सत्ता में जल्दी आना चाहती है।

अंतरिम सरकार: नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की दो मुख्य जिम्मेदारियां हैं—बड़े सुधार लागू करना और निष्पक्ष, सुरक्षित चुनाव कराना। सुधारों की रफ्तार धीमी रही है और सभी पक्ष उस पर पक्षपात के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में चुनाव प्रक्रिया की सफलता उसकी विश्वसनीयता के लिए निर्णायक होगी।

हादी की हत्या ने सब कुछ बदल दिया

शरीफ उस्मान हादी की हत्या एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। शोक दिवस की घोषणा करते हुए यूनुस ने कहा कि यह हत्या उन ताकतों द्वारा की गई है जो बांग्लादेश में शांतिपूर्ण चुनाव नहीं चाहते। सीधे तौर पर जिम्मेदार चाहे जो भी हो, इसके बाद भड़की हिंसा ने हालात की नाजुकता को उजागर कर दिया है।

आगजनी, तोड़फोड़ और हत्याओं ने एक “चेन रिएक्शन” पैदा कर दिया, जिससे राजनीतिक दलों के लिए भीड़ को भड़काना आसान हो गया। युवा NCP नेताओं के लिए भारत-विरोधी बयानबाजी लोकप्रियता हासिल करने का आसान जरिया बन गई है। भारत पर हादी के कथित हत्यारों को शरण देने का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि ‘पुरानी व्यवस्था’ से जुड़े माने जाने वाले संस्थानों और मीडिया हाउसों—जैसे प्रथम आलो और डेली स्टार—को निशाना बनाया गया है।

BNP की नाजुक स्थिति

यह हिंसा ऐसे समय हो रही है जब BNP नेता तारिक रहमान के 18 साल के निर्वासन के बाद बांग्लादेश लौटने की संभावना है। BNP और अंतरिम सरकार दोनों की स्थिरता बहाल करने में गहरी रुचि है। लेकिन नई राजनीतिक ताकतें BNP को भी पुराने राजनीतिक तंत्र का हिस्सा बताकर पेश कर रही हैं, जबकि चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में वही सबसे आगे दिख रही है।

किसे फायदा, किसे नुकसान?

इस समय सबसे बड़ा नुकसान आम नागरिकों, खासकर युवाओं का हो रहा है, जो डर, अनिश्चितता और राजनीतिक इस्तेमाल के बीच फंसे हुए हैं। फायदा उन्हें मिल रहा है जो अराजकता से लाभ उठाते हैं—वे ताकतें जो भड़काऊ भाषा, सड़क शक्ति और पहचान की राजनीति के सहारे बिना जवाबदेही के प्रभाव बढ़ाना चाहती हैं।

आगे क्या?

बांग्लादेश इस समय क्रांति के बाद पैदा होने वाली अस्थिरता के पारंपरिक लक्षण दिखा रहा है, जैसा इतिहास में कई देशों में देखा गया है। जब जुलाई 2024 के आंदोलन को आधिकारिक तौर पर “क्रांति” कहा जा रहा है, तो आगे की राह का अनुमान लगाना कठिन हो गया है।

आने वाले समय में यह इस बात पर निर्भर करेगा कि अंतरिम सरकार और बांग्लादेश सेना हिंसा को रोकने और व्यवस्था बनाए रखने में कितने सफल होते हैं। भारत के लिए सबसे व्यावहारिक नीति यही होगी कि वह धैर्य, सतर्कता और निगरानी बनाए रखे, और ऐसे किसी कदम से बचे जो तनाव को और भड़का सके।

फरवरी 2026 तक का रास्ता अनिश्चित है—और आने वाले महीनों में लिए गए फैसले बांग्लादेश के भविष्य को लंबे समय तक प्रभावित करेंगे।

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