बलिदान-दिवस 2025 : भारत के उन महान वीरों को नमन,जिन्होंने देश के लिए दिए प्राण

17 दिसम्बर 1927 को उत्तर प्रदेश की गोंडा जेल में फाँसी दी गई। फाँसी से पूर्व उन्होंने “वन्दे मातरम्” का उद्घोष करते हुए कहा— “मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ.

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड का विशेष महत्व है। यह पहला अवसर था जब क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटकर यह स्पष्ट कर दिया कि उनका संघर्ष जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि दमनकारी शासन के खिलाफ है। इस घटना से जनता में यह विश्वास भी दृढ़ हुआ कि जो शासन अपने खजाने की रक्षा नहीं कर सकता, वह जनता की सुरक्षा कैसे करेगा।

मृत्युदंड और अमर बलिदान

काकोरी कांड में चार क्रान्तिवीरों को मृत्यु-दंड दिया गया। इनमें से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को सबसे पहले
17 दिसम्बर 1927 को उत्तर प्रदेश की गोंडा जेल में फाँसी दी गई। फाँसी से पूर्व उन्होंने “वन्दे मातरम्” का उद्घोष करते हुए कहा—
“मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ।”उनकी यह हुंकार सुनकर अंग्रेजी शासन समझ गया कि भारत माँ के सपूत उन्हें चैन से जीने नहीं देंगे।

गुप्त अंत्येष्टि और स्मृति-चिह्न

काकोरी कांड में मृत्यु-दंड पाए चारों क्रान्तिवीरों को अलग-अलग स्थानों पर फाँसी दी गई। राजेन्द्र लाहिड़ी की अंत्येष्टि गोंडा जेल के निकट परेड सरकार के पास टेढ़ी नदी के तट पर की गई।वहाँ उपस्थित उनके साथियों और समाजसेवियों—मन्मथनाथ गुप्त, लाल बिहारी टंडन, ईश्वर शरण आदि—ने उस स्थान की पहचान हेतु जमीन में एक बोतल गाड़ दी, किंतु समय के साथ उस स्थान की सटीक पहचान लुप्त हो गई।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को ग्राम मोहनापुर (जिला पावना, वर्तमान बांग्लादेश) में माता बसन्त कुमारी के गर्भ से हुआ।
जन्म के समय उनके पिता क्षितिमोहन लाहिड़ी और बड़े भाई बंग-भंग आंदोलन में कारावास का दंड भोग रहे थे। केवल नौ वर्ष की आयु में वे अपने मामा के पास काशी आ गए, जहाँ से उनके क्रान्तिकारी जीवन की दिशा तय हुई।

क्रान्तिकारी पथ और संगठन

काशी में उनका संपर्क महान क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। उनकी फौलादी दृढ़ता, अटूट देशप्रेम और अदम्य साहस को देखकर उन्हें हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) की अग्रिम टोली में शामिल किया गया और बनारस का प्रभारी नियुक्त किया गया। वे गुप्त बैठकों और बलिदानी अभियानों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।

काकोरी योजना और कार्यवाही

क्रान्तिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए धन की तत्काल आवश्यकता थी। इसी उद्देश्य से अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनी। 9 अगस्त 1925, सायंकाल छह बजे, लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन से चली आठ डाउन गाड़ी में ले जाया जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया गया। कार्य सफल होते ही सभी क्रान्तिकारी अलग-अलग दिशाओं में निकल गए। इस अभियान में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह, ठाकुर रोशन सिंह सहित 19 अन्य क्रान्तिकारियों ने भाग लिया।

मुकदमा और निर्णय

पकड़े गए सभी क्रान्तिकारियों पर शासन के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह और खजाना लूटने का आरोप लगाया गया। लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल 1927 को निर्णय सुनाया, जिसमें—

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी

रामप्रसाद बिस्मिल

रोशन सिंह

अशफाक उल्लाह को मृत्यु-दंड दिया गया।

भयभीत शासन और समयपूर्व फाँसी

अन्य तीन क्रान्तिवीरों को 19 दिसम्बर 1927 को फाँसी दी गई, परंतु अंग्रेजी शासन ने भयवश राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को दो दिन पहले ही
17 दिसम्बर 1927 को गोंडा कारागार में फाँसी दे दी।

अमर संदेश

क्रान्तिवीर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का बलिदान केवल एक मृत्यु नहीं था, वह अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने वाली चेतना का उद्घोष था—
जो आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता, साहस और बलिदान की प्रेरणा देता रहेगा।

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