श्रवण कुमार विश्वकर्मा की कहानी किसी कॉरपोरेट बोर्डरूम या बिज़नेस स्कूल से शुरू नहीं होती। यह कहानी कानपुर की गलियों से शुरू होती है, एक मध्यमवर्गीय परिवार से, जहाँ जीवन तेज़ी से आगे बढ़ता है और फैसले योजनाओं से ज़्यादा परिस्थितियों पर निर्भर होते हैं। टेम्पो चलाने से लेकर एक एयरलाइन की स्थापना तक का उनका सफर सिर्फ़ कारोबारी सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह सहज बुद्धि, आस्था और निरंतर संघर्ष की मिसाल है।
पढ़ाई से दूर, ज़िंदगी के करीब
श्रवण कुमार विश्वकर्मा की औपचारिक शिक्षा बहुत सीमित रही। दोस्तों का प्रभाव, माहौल और पढ़ाई में कम रुचि के कारण उन्होंने कम उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद काम और ज़िम्मेदारियाँ जल्दी आ गईं।
एक परिचित के ज़रिए उन्होंने टेम्पो चलाना शुरू किया। साइकिल, बस, ट्रेन और ट्रक से अलग-अलग शहरों की यात्राओं ने उन्हें आम भारत की सच्चाइयों से रूबरू कराया। श्रवण मानते हैं कि वही साल उनकी असली शिक्षा थे, जिन्होंने लोगों, संघर्ष और अवसरों को समझने की दृष्टि दी।
पीटीआई से बातचीत में श्रवण ने अपने शुरुआती जीवन के बारे में कहा,
“मेरी औपचारिक पढ़ाई बहुत कम रही—कुछ हद तक दोस्तों की वजह से और कुछ इसलिए क्योंकि उस समय पढ़ाई में मेरी रुचि नहीं थी। एक जान-पहचान वाले के ज़रिए मैंने टेम्पो चलाना शुरू किया। बाद में दोस्तों के साथ कुछ कारोबार भी आजमाए, लेकिन वे सफल नहीं हुए। करीब 2014 में मैंने सीमेंट के कारोबार में कदम रखा, फिर टीएमटी स्टील और खनन का काम किया। इसके बाद ट्रांसपोर्ट सेक्टर में आया। आज यह सफर 400 से 450 ट्रकों के बेड़े तक पहुंच चुका है। लोग ज़िंदगी में आते गए और सफर बनता गया। मुझे पता ही नहीं चला कि सब कब, कहां और कैसे हुआ। यह सब भगवान की योजना थी, कुछ भी पहले से तय नहीं था।”
उन्होंने आगे कहा,
“एविएशन में आने का विचार धीरे-धीरे बना। मेरा मानना है कि आने वाले समय में विमानन क्षेत्र में तेज़ी से विकास होगा। इसी सोच के साथ मैंने यह रास्ता चुना। इस कारोबार की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसमें कैश फ्लो बेहतर रहता है और उधार या कर्ज़ पर निर्भरता नहीं होती। मेरी नज़र में कई कारोबार इसलिए मुश्किल में पड़ जाते हैं क्योंकि ज़्यादा क्रेडिट से नकदी प्रवाह बिगड़ जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी अपेक्षाकृत कम है, जिससे टिके रहने की संभावना बढ़ जाती है—हालांकि सफलता अंततः आपकी सोच, रणनीति और दीर्घकालिक दृष्टि पर निर्भर करती है।”
शुरुआती असफलताएँ और सीख
दोस्तों के साथ शुरू किए गए शुरुआती व्यवसाय असफल रहे। ये असफलताएँ निराशाजनक थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इसके बजाय उन्होंने खुद को फिर से तैयार किया और आगे बढ़ने का रास्ता चुना।
2014 के आसपास उन्होंने सीमेंट कारोबार में प्रवेश किया। इसके बाद टीएमटी स्टील, खनन और अंततः परिवहन क्षेत्र में कदम रखा। हर नया कदम किसी ठोस योजना से नहीं, बल्कि सामने आए अवसरों से जुड़ा था। एक व्यवसाय दूसरे से जुड़ता गया और धीरे-धीरे उनका साम्राज्य बनता चला गया।
वे कहते हैं,
“लोग मिलते गए, कारवां बनता गया। पता ही नहीं चला लोग कब, कहां, कैसे मिले। सब भगवान का प्लान था।”
ट्रांसपोर्ट से साम्राज्य तक
उनके विकास की सबसे बड़ी खासियत रही वित्तीय अनुशासन, खासकर कैश फ्लो को लेकर। श्रवण का मानना है कि कई व्यवसाय मांग की कमी से नहीं, बल्कि गलत वित्तीय प्रबंधन के कारण असफल होते हैं।
स्वच्छ और नियंत्रित कैश फ्लो पर ध्यान देने से उनके कारोबार लगातार बढ़ते गए। समय के साथ उनका ट्रांसपोर्ट नेटवर्क 400 से 450 ट्रकों तक पहुंच गया, जिससे वे उत्तर प्रदेश में एक बड़े लॉजिस्टिक्स और मटेरियल उद्यमी के रूप में स्थापित हो गए।
उड़ान भरने का विचार
जब उनके मुख्य कारोबार स्थिर हो गए, तब उन्होंने भविष्य की ओर देखना शुरू किया। वे ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते थे, जिसमें दीर्घकालिक विकास की संभावनाएं हों। एविएशन सेक्टर उन्हें सबसे उपयुक्त लगा।
बढ़ती आय और समय की बढ़ती अहमियत के कारण हवाई यात्रा अब विलासिता नहीं, बल्कि ज़रूरत बनती जा रही थी। लेकिन अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने महसूस किया कि टियर-2 और टियर-3 शहरों से मध्यमवर्ग के लिए सस्ती और भरोसेमंद एयरलाइनों की कमी है।
वे कहते हैं,
“मुझे लगा कि आने वाले समय में एविएशन बहुत बड़ा सेक्टर बनेगा। इसमें एक स्पष्ट कमी दिख रही थी, और वहीं से इस विचार की शुरुआत हुई।”
शंख एयर की शुरुआत
इसी सोच से शंख एयर की नींव पड़ी। हाल ही में इस एयरलाइन को नागरिक उड्डयन मंत्रालय से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) मिला है। यह सरकार की मौजूदा विस्तार योजना के तहत मंजूरी पाने वाली पहली नई एयरलाइन है।
नागरिक उड्डयन मंत्री के. राममोहन नायडू ने इस विकास की पुष्टि की। इस दौरान अल हिंद एयर और फ्लाईएक्सप्रेस जैसी अन्य प्रस्तावित एयरलाइनों को भी मंजूरी मिली है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत का विमानन बाजार तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन प्रतिस्पर्धा को लेकर चिंताएँ भी बनी हुई हैं।
शंख एयर का मालिक कौन
शंख एयर के संस्थापक और मालिक श्रवण कुमार विश्वकर्मा हैं। वे शंख एविएशन प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। इसके अलावा वे शंख एजेंसीज़ प्राइवेट लिमिटेड के भी मालिक हैं, जिसकी स्थापना 2022 में हुई थी। इस कंपनी के हित निर्माण सामग्री, सिरेमिक्स, कंक्रीट और थोक व्यापार से जुड़े हैं।
एविएशन में उनका प्रवेश पारंपरिक उद्योगों से निकलकर भारत के सबसे तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों में कदम रखने का प्रतीक है, जो अनुभव और वित्तीय अनुशासन पर आधारित है।
टेकऑफ की तैयारी
शंख एयर की उड़ानें 2026 की पहली तिमाही में शुरू होने की उम्मीद है। फिलहाल विमानों का तकनीकी मूल्यांकन और डिलीवरी की तैयारियां चल रही हैं। एयरलाइन लखनऊ, नोएडा के जेवर एयरपोर्ट और नई दिल्ली से परिचालन की योजना बना रही है, जिससे यह उत्तर प्रदेश की पहली घरेलू एयरलाइन बनेगी।
कंपनी की नेतृत्व टीम में अनुराग छाबड़ा और कौशिक सेनगुप्ता जैसे निदेशक शामिल हैं, जो रणनीतिक और परिचालन अनुभव प्रदान करेंगे।
दो-खिलाड़ी बाज़ार को चुनौती
फिलहाल भारत का घरेलू विमानन बाजार इंडिगो और एयर इंडिया समूह के कब्ज़े में है, जिनकी हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि इससे प्रतिस्पर्धा सीमित हुई है, लेकिन क्षेत्रीय और केंद्रित एयरलाइनों के लिए अवसर भी खुले हैं।
श्रवण कहते हैं,
“इस कारोबार में प्रतिस्पर्धा कम है, जिससे टिके रहने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन आखिरकार सब कुछ आपकी सोच, दृष्टि और क्रियान्वयन पर निर्भर करता है।”
शंख एयर खुद को एक किफायती, क्षेत्रीय-केंद्रित एयरलाइन के रूप में स्थापित करना चाहती है, जो इंडिगो और स्पाइसजेट जैसी बड़ी कंपनियों को चुनौती दे सके और उपेक्षित मार्गों पर बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करे।
आकांक्षी भारत का प्रतीक
कानपुर में टेम्पो चलाने से लेकर एक एयरलाइन की तैयारी तक, श्रवण कुमार विश्वकर्मा की यात्रा भारतीय उद्यमिता के बदलते स्वरूप को दर्शाती है। यह कहानी विशेषाधिकार की नहीं, बल्कि निरंतर प्रयास की है; योजना से अधिक विश्वास की है।
2026 में जब शंख एयर भारतीय आसमान में उड़ान भरेगी, तब यह केवल एक व्यवसाय नहीं होगी, बल्कि इस बात का प्रमाण होगी कि सही दृष्टि, अनुशासन और आस्था के साथ साधारण शुरुआत भी असाधारण ऊँचाइयों तक पहुंच सकती है।
