राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और महात्मा गांधी को लेकर समाज में अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं। प्रायः यह मान लिया जाता है कि गांधी जी संघ से सहमत नहीं थे, जबकि वास्तविकता इससे कहीं अधिक संतुलित और तथ्यपरक है। गांधी जी ने संघ के कार्य को प्रत्यक्ष रूप से देखा, समझा और उसकी अनेक विशेषताओं की सराहना भी की। यह प्रसंग उनके उसी अनुभव से जुड़ा है।
संघ में स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण हेतु 2 से 25 दिनों तक के शिविर आयोजित किए जाते हैं। ऐसा ही एक शीत-शिविर 22 से 26 दिसंबर 1934 के बीच वर्धा में आयोजित हुआ था। इसमें लगभग 1,500 स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। यह शिविर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सेठ जमनालाल बजाज के मैदान में लगा था। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी भी सेठ जी के बंगले की दूसरी मंज़िल पर ठहरे हुए थे।
शिविर में प्रतिदिन प्रातः बिगुल के साथ दिनचर्या प्रारंभ होती थी। गांधी जी अपने आवास से तथा प्रातः भ्रमण के दौरान स्वयंसेवकों की अनुशासित गतिविधियाँ नियमित रूप से देखते थे। संघ के स्वयंसेवकों का अनुशासन, समयबद्धता और सामूहिक आचरण उन्हें लगातार प्रभावित करता गया।
एक दिन गांधी जी ने अपने सहयोगी महादेव देसाई से संघ शिविर को निकट से देखने की इच्छा प्रकट की। यह संदेश वर्धा के जिला संघचालक अप्पा जी तक पहुँचा, जो कांग्रेस से भी जुड़े हुए थे। अप्पा जी ने गांधी जी से समय जानना चाहा। गांधी जी ने बताया कि वे अगले दिन सुबह 6 बजे शिविर में आकर लगभग डेढ़ घंटे रुकेंगे।
निर्धारित समय पर गांधी जी शिविर पहुँचे। स्वयंसेवकों ने पंक्तिबद्ध होकर उनकी मानवंदना की। इस अवसर पर महादेव देसाई, मीराबेन तथा अन्य सहयोगी भी उनके साथ थे। यह दृश्य देखकर गांधी जी ने अप्पा जी के कंधे पर हाथ रखकर कहा—
भोजन, व्यवस्था और समानता
गांधी जी ने शिविर के भोजनालय, चिकित्सालय तथा आवास व्यवस्था का निरीक्षण किया।
एक घंटे के भीतर बिना किसी अव्यवस्था के सभी स्वयंसेवकों का भोजन संपन्न होना उन्हें विशेष रूप से आश्चर्यजनक लगा।
