नई दिल्ली ने खारिज किया चीन का दावा, बताया ‘बिज़ार’ और राजनीति से प्रेरित

भारत ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि दोनों परमाणु हथियार संपन्न पड़ोसी देशों के बीच शत्रुता समाप्त कराने में किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं रही।

चीनी पक्ष अमेरिका के नक्शे कदम पर चल रहा है

चीनी पक्ष अमेरिका के नक्शे कदम पर चल रहा है

नई दिल्ली ने पिछले वर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य टकराव के दौरान चीन द्वारा “मध्यस्थता” किए जाने के दावे को सिरे से खारिज करते हुए इसे “बिज़ार” (अजीब) बताया है। भारत ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि दोनों परमाणु हथियार संपन्न पड़ोसी देशों के बीच शत्रुता समाप्त कराने में किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं रही। यह प्रतिक्रिया चीन के विदेश मंत्री वांग यी के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने 2025 में कथित तौर पर चीन द्वारा सुलझाए गए मुद्दों की सूची में भारत-पाकिस्तान तनाव को भी शामिल किया था।

मंगलवार (30 दिसंबर) को बीजिंग में आयोजित “अंतरराष्ट्रीय स्थिति और चीन के विदेश संबंधों पर संगोष्ठी” को संबोधित करते हुए वांग यी ने दावा किया कि चीन ने कई वैश्विक संघर्षों में मध्यस्थता की है। उन्होंने कहा, “हॉटस्पॉट मुद्दों को सुलझाने के लिए चीन के इस दृष्टिकोण के तहत हमने उत्तरी म्यांमार, ईरानी परमाणु मुद्दे, पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव, फिलिस्तीन-इजराइल के मुद्दे और हाल ही में कंबोडिया-थाईलैंड संघर्ष में मध्यस्थता की।”

भू-राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि इस तरह के दावे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कर चुके हैं। हालांकि, इन दावों के बावजूद संबंधित संघर्ष आज भी जारी हैं और शांति दूर नजर आती है। इसके बावजूद बड़ी शक्तियां वैश्विक राजनीति में अपनी छवि सुधारने के लिए ऐसे दावे करती रहती हैं।

इस मामले से परिचित नई दिल्ली के सूत्रों ने बुधवार (31 दिसंबर) को हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम समझौते में चीन की कोई भूमिका नहीं थी। एक सूत्र ने कहा, “चीनी पक्ष का यह दावा बिल्कुल अजीब है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सैन्य कार्रवाई रोकने से जुड़ी सभी बातचीत केवल दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच हुई थी।

गौरतलब है कि मई 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक सैन्य संघर्ष चला था। इस हमले में 26 नागरिकों की जान गई थी। इसके जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के अंदर आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। इसके बाद 10 मई को दोनों देशों ने सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति जताई।

नई दिल्ली तब से लगातार यह कहती आ रही है कि संघर्ष विराम भारत और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के बीच सीधे संवाद के जरिए हुआ। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया, “सिर्फ भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच हुई बातचीत से ही सैन्य कार्रवाई रोकने का फैसला हुआ।”

भारतीय अधिकारियों ने यह भी दोहराया कि भारत और पाकिस्तान से जुड़े मामलों में किसी तीसरे पक्ष की कोई गुंजाइश नहीं है। एक अन्य सूत्र ने कहा, “शायद चीनी पक्ष अमेरिका के नक्शे कदम पर चल रहा है,” यह संकेत देते हुए कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी बार-बार संघर्ष विराम में अमेरिकी भूमिका का दावा करते रहे हैं। भारत पहले ही ट्रंप के इन दावों को कई बार खारिज कर चुका है।

 एक सरकारी सूत्र ने कहा, “हम पहले ही ऐसे दावों का खंडन कर चुके हैं। भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय मुद्दों में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है। हमारा रुख कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि संघर्ष विराम दोनों देशों के DGMO के बीच सीधे बातचीत से हुआ।”

इस पृष्ठभूमि में चीन का ताजा दावा यह दिखाता है कि बड़ी शक्तियां दक्षिण एशिया की सुरक्षा स्थिति में खुद को शामिल दिखाने की कोशिश कर रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और चीन दोनों ही खुद को अनिवार्य वैश्विक मध्यस्थ के रूप में पेश करना चाहते हैं, खासकर ऐसे समय में जब दुनिया भर में संघर्ष बढ़ रहे हैं।

भारत ने हमेशा यह रेखांकित किया है कि पाकिस्तान के साथ उसके मुद्दे पूरी तरह द्विपक्षीय हैं, जैसा कि शिमला समझौते में भी उल्लेखित है। तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज कर भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पाकिस्तान द्वारा विवादों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की कोशिशें नाकाम हों।

इस संदर्भ में चीन का दावा वास्तविक मध्यस्थता से ज्यादा कूटनीतिक संकेत प्रतीत होता है। हालांकि बीजिंग के इस्लामाबाद के साथ करीबी संबंध हैं, लेकिन नई दिल्ली की कड़ी प्रतिक्रिया यह साफ करती है कि मई 2025 के संघर्ष विराम की कहानी को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की किसी भी कोशिश को चुनौती दी जाएगी।

अंततः भारत का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है—ऑपरेशन सिंदूर के बाद सैन्य कार्रवाई का रुकना पूरी तरह सैन्य स्तर पर सीधे संवाद का परिणाम था, न कि किसी बाहरी मध्यस्थता का। वॉशिंगटन हो या बीजिंग, वैश्विक शक्तियों के ऐसे दावे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अपने पक्ष को मजबूती से बनाए रखने के संकल्प को ही दर्शाते हैं।

Exit mobile version