चीन ने ताइवान पर बलपूर्वक कब्ज़ा करने की दिशा में अपनी तैयारियां तेज़ कर दी हैं। अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन की हालिया रिपोर्ट ने इस आशंका को और गंभीर बना दिया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चीन को विश्वास है कि वह वर्ष 2027 के अंत तक ताइवान के खिलाफ किसी संभावित युद्ध की स्थिति में जीत हासिल कर सकता है। पेंटागन के अनुसार, बीजिंग ताइवान पर “बलपूर्वक कब्ज़ा” करने के विकल्प को गंभीरता से तैयार कर रहा है और इसी उद्देश्य से वह अपनी सैन्य शक्ति का लगातार विस्तार कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने बीते कुछ वर्षों में अपनी सैन्य क्षमताओं में अभूतपूर्व वृद्धि की है। चीन ने अपनी नौसेना को दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना में बदल दिया है, जबकि वायुसेना, मिसाइल बल, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध क्षमताओं को भी तेज़ी से आधुनिक बनाया गया है। विशेष रूप से एम्फ़ीबियस असॉल्ट क्षमताओं पर जोर दिया जा रहा है, जो समुद्र के रास्ते ताइवान पर हमले के लिए अहम मानी जाती हैं। इसके अलावा, लंबी दूरी की बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइलें, उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम और संयुक्त सैन्य अभियानों की क्षमता को भी मजबूत किया गया है।
पेंटागन की रिपोर्ट यह भी बताती है कि चीन केवल सैन्य ताकत के सहारे ही नहीं, बल्कि गैर-सैन्य तरीकों से भी ताइवान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसमें राजनीतिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध, साइबर हमले और सूचना युद्ध (इंफॉर्मेशन वॉरफेयर) जैसे उपाय शामिल हैं। इनका उद्देश्य ताइवान को कमजोर करना और अंतरराष्ट्रीय समर्थन को कम करना हो सकता है, ताकि पूर्ण युद्ध की स्थिति के बिना ही ताइपे को झुकने पर मजबूर किया जा सके।
रिपोर्ट में यह भी आगाह किया गया है कि ताइवान जलडमरूमध्य में बढ़ता सैन्य तनाव केवल चीन और ताइवान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की शांति और स्थिरता पर पड़ेगा। जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए यह स्थिति गंभीर सुरक्षा चुनौती बन सकती है।
इस बीच, अमेरिका ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि वह ताइवान के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता रहेगा। वॉशिंगटन का कहना है कि वह अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक में शांति, स्थिरता और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में ताइवान मुद्दा वैश्विक राजनीति और सुरक्षा समीकरणों का एक प्रमुख केंद्र बना रहेगा।
