छत्तीसगढ़: कांकेर के दर्जनभर गांवों में पादरियों की ‘नो एंट्री’, धर्म परिवर्तन के प्रयास के बीच ग्राम सभाओं ने लिए फैसलाू

कांकेर के प्रभावित गांवों में स्थिति सामान्य बताई जा रही है, लेकिन यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, स्थानीय परंपराओं और कानून के बीच संतुलन को लेकर नई बहस छेड़ सकता है।

कांकेर के दर्जनभर गांवों में पादरियों की ‘नो एंट्री

कांकेर के गांवों में पादरियों पर धर्म परिवर्तन के प्रयास का आरोप था

छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले में दर्जन भर से अधिक गांवों में पादरियों के प्रवेश को लेकर नया विवाद सामने आया है। अब गांवों में ‘पादरियों की नो एंट्री’ लिखे बोर्ड लगाए गए हैं, जिनमें बिना अनुमति गांव में प्रवेश न करने की चेतावनी दी गई है। मामला सामने आने के बाद प्रशासन और पुलिस अलर्ट मोड़ पर है।

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ पादरी धर्म परिवर्तन के प्रयास कर रहे थे, जिससे गांवों में तनाव की स्थिति पैदा हो रही थी। इसी के विरोध में ग्राम सभाओं की बैठकों के बाद कई गांवों में सामूहिक निर्णय लेकर ऐसे बोर्ड लगाए गए हैं।

ग्राम सभाओं के फैसले का दावा

ग्रामीणों का कहना है कि यह फैसला ग्राम सभा की सहमति से लिया गया है और इसका उद्देश्य गांवों में सामाजिक सौहार्द बनाए रखना है। बोर्डों में यह भी लिखा गया है कि बिना ग्राम सभा की अनुमति किसी भी बाहरी व्यक्ति, विशेषकर पादरियों, का प्रवेश वर्जित है।

प्रशासन सतर्क, जांच के आदेश

जिला प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि कानून व्यवस्था भंग नहीं होने दी जाएगी। अधिकारियों के अनुसार, गांवों में लगाए गए बोर्डों की वैधता की जांच की जा रही है और सभी पक्षों से बातचीत कर स्थिति को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास किया जाएगा।

मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया संभव

घटना के बाद मानवाधिकार और अल्पसंख्यक संगठनों की प्रतिक्रिया भी सामने आने की संभावना जताई जा रही है। वहीं, प्रशासन ने साफ किया है कि किसी भी तरह की जबरदस्ती, भेदभाव या कानून के उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

फिलहाल, कांकेर के प्रभावित गांवों में स्थिति सामान्य बताई जा रही है, लेकिन यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, स्थानीय परंपराओं और कानून के बीच संतुलन को लेकर नई बहस छेड़ सकता है। लेकिन यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, स्थानीय परंपराओं और कानून के बीच संतुलन को लेकर नई बहस छेड़ सकता है। घटना के बाद प्रशासन ने गांवों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया है।
अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल किसी भी तरह की हिंसा या तनाव की स्थिति नहीं है और हालात नियंत्रण में हैं।

स्थानीय ग्रामीणों से संवाद कर प्रशासन उनकी चिंताओं और मांगों को समझने की कोशिश कर रहा है। वहीं, सामाजिक संगठनों का मानना है कि ऐसी घटनाएं आपसी संवाद की कमी का परिणाम होती हैं। धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर अलग-अलग समुदायों के बीच विचारों का टकराव इस मामले में सामने आया है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार कानून और सार्वजनिक व्यवस्था के दायरे में ही लागू होता है। स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को लेकर भी गांवों में मतभेद देखने को मिले हैं। प्रशासन ने सभी पक्षों से संयम बरतने और अफवाहों से बचने की अपील की है। आने वाले दिनों में यह मामला राज्य स्तर पर धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता को लेकर व्यापक चर्चा का विषय बन सकता है।

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