बांग्लादेश से सामने आया एक बेहद परेशान करने वाला खुलासा एक बार फिर देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भरोसे को झकझोर गया है। चट्टोग्राम ज़िले के राउज़ान उपज़िला क्षेत्र में हिंदू नरसंहार से जुड़ी कथित योजना का विवरण देने वाला एक पोस्टर सामने आया है, जिसमें हिंदू और बौद्ध समुदायों के सफाए की बात कही गई है। इस पोस्टर के सामने आने से व्यापक भय और आक्रोश फैल गया है। बताया जा रहा है कि यह पोस्टर पुलिस द्वारा बरामद किया गया। इसके कथित विवरण किसी छिटपुट हिंसा से कहीं आगे बढ़कर एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा करते हैं और जातीय व धार्मिक सफाए की योजनाबद्ध कोशिश का संकेत देते हैं।
द संडे गार्जियन में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, इस पोस्टर में साफ तौर पर दावा किया गया था कि 13 दिसंबर 2025 को लगभग दो लाख हिंदुओं और बौद्धों की हत्या के लिए हिंदू नरसंहार की योजना बनाई गई है। इससे भी अधिक भयावह बात यह थी कि इस सामूहिक हत्या को अंजाम देने के लिए धन की व्यवस्था पहले ही कर ली गई है, जो तैयारी, समन्वय और मंशा को दर्शाता है। संदेश में किसी तरह की अस्पष्टता नहीं छोड़ी गई थी और कहा गया था कि राउज़ान क्षेत्र में हिंदू और बौद्ध समुदाय का कोई भी निशान बाकी नहीं रहने दिया जाएगा। ऐसी भाषा मानव इतिहास के सबसे काले अध्यायों की याद दिलाती है और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों की मौजूदा स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
बांग्लादेशी सम्मिलित सनातनी जागरण जोत के प्रतिनिधि कुशल बरुण चक्रवर्ती ने पुष्टि की कि पोस्टर मिलने के बाद पुलिस ने उसे हटा दिया। इसके शब्दों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बैनर में खुले तौर पर हिंदू नरसंहार, योजनाबद्ध सामूहिक हत्या और इलाके से हिंदू व बौद्ध समुदाय की पूरी तरह समाप्ति की बात कही गई थी। इस तरह का संदेश सार्वजनिक रूप से लगाया जाना या तो अपराधियों के असाधारण दुस्साहस को दर्शाता है या फिर इस विश्वास को कि उन्हें तुरंत चुनौती नहीं दी जाएगी।
पोस्टर की भाषा इस मायने में बेहद अहम है कि इसमें किसी अचानक हुई हिंसा या अलग-थलग नफरत के संकेत नहीं हैं। इसके बजाय यह हिंदू नरसंहार की मंशा को दर्शाती है, यानी पूरे समुदायों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाने का इरादा। चक्रवर्ती ने ज़ोर देकर कहा कि यह कोई काल्पनिक डर नहीं है, बल्कि हालिया घटनाओं पर आधारित है। जिस इलाके में यह पोस्टर मिला, वहां पहले भी हिंदू घरों पर हमले हो चुके हैं और कई मकानों को आग के हवाले किया गया है। जांच के दौरान पुलिस ने कथित तौर पर आगजनी स्थलों से मिट्टी के तेल में भीगे कपड़े बरामद किए, जिससे एक संगठित अभियान की आशंका और मजबूत हुई है।
इलाके से हिंदू नरसंहार से जुड़ी आसन्न चेतावनियों वाले हस्तलिखित नोट्स की बरामदगी ने मामले को और भी चिंताजनक बना दिया है। इन नोट्स में कथित तौर पर राजनीतिक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के नाम और मोबाइल नंबर दर्ज थे। हालांकि इन विवरणों का वास्तविक महत्व अभी जांच के दायरे में है, लेकिन इनकी मौजूदगी समर्थन, प्रभाव या डराने-धमकाने के संभावित नेटवर्क को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करती है। अल्पसंख्यक समूहों को आशंका है कि इस जानकारी का इस्तेमाल या तो हमलों की योजना बनाने में किया जा सकता है या फिर चुप्पी और निष्क्रियता सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाने में।
चक्रवर्ती ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक पैटर्न की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने मयमनसिंह में दीपु चंद्र दास की लिंचिंग और हाल ही में एक अन्य हिंदू युवक अमृत मंडल की हत्या का जिक्र किया। मंडल के मामले में आधिकारिक बयान में उसे अपराधी बताया गया, लेकिन चक्रवर्ती ने सवाल उठाया कि उसी संदर्भ में गिरफ्तार किया गया एक मुस्लिम व्यक्ति जीवित कैसे रहा, जबकि मंडल की मौत हो गई। उनका कहना था कि ऐसी घटनाएं न्याय प्रक्रिया पर अविश्वास को गहरा करती हैं और इस धारणा को मजबूत करती हैं कि अल्पसंख्यकों के साथ असमान व्यवहार किया जा रहा है।
राउज़ान और अन्य इलाकों में रहने वाले हिंदू और बौद्ध समुदायों के लिए इस पोस्टर की खोज ने पहले से मौजूद असुरक्षा की भावना को और तीव्र कर दिया है। कई परिवारों को डर है कि यदि त्वरित और निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई तो लिखी गई बातें वास्तविक हिंसा में बदल सकती हैं। बांग्लादेश में साम्प्रदायिक अशांति के पिछले अनुभव इन आशंकाओं को और भी तीखा बना देते हैं। इतिहास गवाह है कि हिंदू नरसंहार की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करने के परिणाम अक्सर बहुत देर से समझ आने वाली त्रासदियों के रूप में सामने आते हैं।
पुलिस ने कहा है कि उन्होंने पोस्टर और उससे संबंधित सामग्री जब्त कर ली है और दावों की पुष्टि तथा जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए जांच शुरू कर दी है। हालांकि यह कदम जरूरी है, लेकिन अल्पसंख्यक समूह और नागरिक समाज की आवाजें केवल औपचारिक आश्वासनों से संतुष्ट नहीं हैं। वे एक निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं, जो भरोसा पैदा करे और ठोस जवाबदेही सुनिश्चित करे। जिस स्तर के खतरे का वर्णन किया गया है, उसे देखते हुए इससे कम कोई भी कदम पूरी तरह अपर्याप्त प्रतीत होता है।
यह घटना बांग्लादेशी राज्य की उस जिम्मेदारी को भी उजागर करती है, जिसके तहत उसे आस्था की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समानता और सुरक्षा देने के अपने संवैधानिक वादे को निभाना है। बांग्लादेश की स्थापना बहुलतावाद और सांस्कृतिक सहअस्तित्व के आदर्शों पर हुई थी। चरमपंथी धमकियों को बिना रोक-टोक पनपने देना न केवल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को कमजोर करता है, बल्कि देश की नैतिक और लोकतांत्रिक नींव को भी खोखला करता है।
चट्टोग्राम में उजागर हुई हिंदू नरसंहार की यह साजिश केवल स्थानीय कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है। यह मानवाधिकारों, कानून के शासन और साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रति बांग्लादेश की प्रतिबद्धता की परीक्षा है। हिंदू और बौद्ध समुदायों में फैला भय तभी कम होगा जब शब्दों के साथ सख्त और ठोस कार्रवाई भी दिखाई देगी। निष्पक्ष और स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला न्याय ही उस आतंक का एकमात्र इलाज है, जिसे ऐसी धमकियां पैदा करने के लिए गढ़ी जाती हैं।
