बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता है? इसके पीछे की कथा रोचक है
भारत और भारत की रीतियों को समझना बहुत ही जटिल कार्य है। जिस देश में “कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी” जीवन का एक पर्याय हो, वहां हर स्थान की अपनी संस्कृति, अपनी रीति तो...
भारत और भारत की रीतियों को समझना बहुत ही जटिल कार्य है। जिस देश में “कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी” जीवन का एक पर्याय हो, वहां हर स्थान की अपनी संस्कृति, अपनी रीति तो...
बॉक्स ऑफिस पर दिखा पठान का दम! पठान पर झूमा पूरा हिंदुस्तान! KGF 2 का किला ध्वस्त, बाहुबली का घमंड हुआ धुआँ धुआँ! बॉलीवुड इज बैक! Pathaan box office collection scam: किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा...
गोलमाल के प्रथम संस्करण के प्रारम्भिक दृश्यों में जब लक्ष्मण और लकी अकड़कर कुछ विद्यार्थियों से “चन्दा” मांगते हैं, तो उन्हीं में से एक माधव पूछता है, “ये कोई तरीका है भीख मांगने का?” लगता है इस...
हर कृति के पीछे उसकी एक अंतर्कथा उपलब्ध है। अपने देश के क्लासिक्स यूं ही नहीं बनते, उनके पीछे ढेर सारा परिश्रम और थोड़ी प्रेरणा अवश्य रहती है। अब बॉलीवुड को अक्सर ही हम “कॉपीवुड” कहते हैं,...
हम भारतीयों की एक बड़ी खराब आदत है: नकलची बंदर होने की। आजकल तो विदेश नीति से लेकर उत्पाद निर्माण में भी स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी जा रही है। परंतु एक समय वो भी था,...
बड़ी कंपनियां, छोटी कंपनियों को खा जाती है। उन्हें या तो अपने साथ ले लेती हैं या उन्हें बर्बाद कर देती हैं या उनकी हालत ऐसी कर देती हैं कि वह चाह भी कुछ न कर पाए।...
जब कोई चलचित्र प्रदर्शित होता है तो भांति भांति की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं। इसी भांति उस फिल्म के भाग्य से लोगों में भांति भांति के भाव भी प्रकट होते हैं। कोई गुरु दत्त की भांति दीन...
लगता है भारत सरकार को “गदर” कुछ अधिक ही भा गई है, तभी वे आजकल तारा सिंह मोड में है। प्रतिद्वंदी कोई भी हो यदि बात भारत पर आई, तो कोई चुप नहीं बैठेगा और विदेश मंत्री...
हमारे बड़े बुज़ुर्गों ने ठीक ही कहा है, कुछ भी पालो पर गलतफहमी ना पालो। परंतु असम के कट्टरपंथियों के कॉन्फिडेन्स को मानना होगा, मर जाएंगे परंतु अपने 'रूढ़िवादी सोच' को नहीं त्यागेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में कट्टरपंथियों...
भारतीय फिल्म उद्योग में हर स्टार की एक आवाज़ निश्चित है, अर्थात हर प्रसिद्ध अभिनेता को पर्दे पर एक गायक की आवाज़ प्रभावशाली बनाती है। जैसे राज कपूर के लिए मुकेश, दिलीप कुमार के लिए मोहम्मद रफी,...
फिल्म उद्योग हो या राजनीति, न समृद्धि कभी स्थाई होती है, न ही करियर। परंतु कुछ ऐसे भी नाम होते हैं, जो जितने भी समय के लिए आए, उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी और जब वे गए...
एक होते हैं नेता, फिर आते हैं अभिनेता और फिर प्रकट होते हैं विक्टिम कार्ड के प्रणेता। लॉजिक से इनका कोई सरोकार नहीं, व्यवहारिकता से इनका छत्तीस का आंकड़ा है और जब बात अपने एजेंडे के लिए...
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