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देश के किसान को क़र्ज़ माफ़ी नहीं, ये बदलाव चाहिए

हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसान परिवारों का लगभग 38 हजार करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया है। महाराष्ट्र में भी किसान कर्ज माफ़ करने के मुद्दे पर विरोधियो द्वारा सरकार को घेरने की कोशिश ...

सुकमा हमले के बाद कहाँ मर गए आजादी के पैरोकार?

ढीली पड़ती पकड़ से बौखलाए हुये वामपंथ की लंपट औलादे अब नपुंसकता वाली हरकतों पर आ गए हैं। कल छत्तीसगढ़ के सुकमा क्षेत्र में उग्र वामपंथियों (नक्सली) ने 30 जवानों की टुकड़ी पर हमला कर दिया जिसमें 12 जवान ...

एटीएम की लाइन में गयी एक और जान, ज़िम्मेदार कौन?

“नहीं.....” अमीना चीत्कार कर उठी “शोएब के अब्बू नहीं रहे, हाय अल्लाह...अब मैं कहाँ जाऊं” अमीना की चीख से मानो पूरा घर कंपकपा रहा था. कोने में खड़ा नन्हा शोएब भी सुबक रहा था, अभी सुबह ही तो अब्बू ...

शहाबुद्दीन बाहर नहीं आया है, सिवान का काल वापस आया है

जिला सिवान, साल 1996, एक इंसान चंदा बाबु, गल्ला पट्टी बड़ा बाजार इलाके में एक किराना दुकान थी, वहीं बगल में चंदा बाबु का घर भी था, अच्छा-खासा बड़ा परिवार, पति-पत्नी, चार बेटे-दो बेटियां। काफी मेहनती आदमी थे चंदा ...

चीन का एनएसजी विरोध, मोदी का पलटवार

  हमारे देश में चाइनीज़ सामान काफी सस्ते दामों में गली, मुह्हलों और बाज़ारों में मिलता है, मतलब कि बहुत प्रसिद्ध है ये हमारे देश में। मगर आजकल वो देश जहां से ये सारा सामान आता है यानि चीन, ...

कोटा देश की आत्महत्या राजधानी क्यूँ बन गयी है?

कल शाम को कानपुर की कोचिंग नगरी काकादेव इलाके से गुज़रा और IIT परीक्षा में उत्तीर्ण हुए छात्रो का नाम बड़े बड़े पोस्टर्स और बैनर्स पर देखा। अच्छा लगा। फिर घर आया और किसी टीवी चैनल पर कोटा को ...

पतंजलि आयुर्वेद: सारे बिज़नस गुरु एक तरफ, रामदेव एक तरफ

Patanjali Ayurved – A 5500 Crore Business Empire एक कहावत आप लोगों ने जरूर सुनी होगी कि "घर का जोगी जोगना, दूर गाँव का सिद्ध" मतलब यह कि अपने घर का गुणी आदमी भी निर्गुण व व्यर्थ प्रतीत होता ...

Happy Women’s Day परन्तु हमारी महिला सशक्तिकरण की परिभाषा गलत है

105 वर्ष पूर्व जर्मनी के एक समाजवादी द्वारा प्रारंभ किया गया पर्व ‘नारी दिवस’ लगभग 40 वर्षों से पुरे विश्व में महिलाओं को बराबरी का हक दिलवाने के लिए मनाया जाता है। आज महिला सशक्तिकरण के 'जुमले' के इस ...

क्या है रे तू मीडिया?

क्या है रे तू मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ या लोकतंत्र के आस्तित्व पर एक कटाक्ष उपालंभ तू निर्भय है या लज्जाहीन तू स्वतंत्र है या पराधीन तू नैतिकता का तराजू है या नैतिकता का अभिनय करता है तू ...

अब त्यौहार नहीं आते बस छुट्टियां आती हैं।

वक़्त के साथ-साथ अगर कुछ सबसे तेजी से बदला है तो वो है हमारी त्योहारों की परिभाषा।  आज की महानगरों की भाग-दौड़ भरी दुनिया में अब त्यौहार नहीं आते, बस आती हैं तो केवल छुट्टियाँ।  फ़ेसबुक के स्टेटस अपडेट ...

मिलावट की माया

ज़ालिम ज़माने की मार से तंग आकर दिनोंदिन बढती महंगाई से घबरा कर हमने आत्महत्या की सोची फिर सोचा - ज़िन्दगी भूख में कटी है, अब भूखे क्यों मरें जब मरना ही है तो कुछ खाकर क्यों न मरें ...

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