लगता है मोदी सरकार ने कश्मीर में अपनी सत्ता वापस से जमानी शुरू कर दी है। सरकार भले ही पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ़्ती सय्येद के नेतृत्व में हो, पर सिक्का तो गठबंधन में अब भारतीय जनता पार्टी का चल रहा है॥
कश्मीर घाटी में व्याप्त समस्या अब एक स्थायी समाधान की ओर अग्रसर होता दिख रहा है, जिसकी पुष्टि बारम्बार गृह मंत्री राजनाथ सिंह करते आ रहे हैं। अब तीन रुझान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं, जिससे ये साफ ज़ाहिर होता है की गेंद अब मोदी सरकार के पाले में आ चुकी है।
सबसे पहला संकेत जो दिखा है, वो है भारतीय थलसेना को आतंकियों का सफाया करने के स्पष्ट निर्देश देना। 15 सालों में यह पहली बार हो रहा है की खोज एवं घेराओ अभियान में मूल परिवर्तन करते हुये उसे खोज एवं विनाशक अभियान में परिवर्तित किया गया हो। सेना के पास नाम भी है, और उन नामों का सफाया भी किया जा रहा है।
महज दो वर्षों के अंदर अंदर ही कभी सोशल मीडिया पे वाइरल हुये एक हास्यास्पद चित्र में 11 कश्मीरी मुजाहिदीनो, जिनहोने थल सेना की वेशभूषा की नकल करने में अपने आप को फन्ने खाँ समझ रहे थे, में से 8 मुजाहिदीनों का भारतीय सेना ने सूद समेत सफाया ही नहीं किया, अपितु उनमें से एक मुजाहिदीन को आत्मसमर्पण के लिए भी प्रेरित किया।
घर पे घर, गाँव पे गाँव की सेना तलाशी ले रही है। इस गहन खोज में भारी गोलीबारी से एक तीर दो शिकार भी किए जाते हैं, खोज में कोई बाधा नहीं आती, और आतंकियों की घुसपैठ में सहायता करने वाली शत्रु सेना के बंकर भी काबू में रहते हैं।
सेना का मनोबल इस बार काफी ऊंचा है, और ये सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के बयानों में साफ दिखाई देता है। कश्मीर में व्याप्त आतंकवाद के मसले पे इनके तीखे बोल किसी से छुपे नहीं है। सेना के अफसरों को उत्कृष्ट उपायों की खोज कर भारी नुकसान से सेना को बचाने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है, जिसकी जीती जागती मिसाल बने हैं 57 राष्ट्रीय राइफल्स के प्रसिद्ध मेजर नितिन लीतुल गोगोई।
सोशल मीडिया सेवाओं पे उचित लगाम ने इस अभियान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसमें विशेषकर भारत और सेना विरोधी जज़्बातों पर तीखा प्रहार करने में सरकारी एजैंसियाँ सफल भी रही है। इस कामयाबी का प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिला दुर्दांत आतंकी सबजार भट्ट के जनाज़े में, जहां उसके पूर्व साथी बुरहान वानी के तमाशबीन जनाज़े की तरह भारी भीड़ नहीं उमड़ पायी।
दूसरा मुख्य बदलाव आया आतंकवाद के वित्त पोषण पर हुये कड़ी कारवाई से। हवाला के लेन देंन से आतंकवाद के धन वितरण से जोड़ने में राष्ट्रीय अन्वेषन अजेंसी (NIA) को भारी सफलता मिली है। यह वित्त पोषण करने वाले नीच नौकरशाही को चकमा देकर वित्त विभाग में मौजूद भेदियों की मदद से अपने आकाओं को समय समय पे उचित सहायता करते रहते थे। पर अब और नहीं, क्योंकि 200 नामों की सूची तैयार हो चुकी है, और NIA अब उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। मेवों में होने वाले हवाला व्यापार से पत्थरबाज़ों को मिलने वाली वित्तीय सहायता का पर्दाफाश अब हो चुका है, तो यह सोचना लाज़मी है, की इस कड़ी पर लगाम लगाने से पत्थरबाजी में भी एक भारी कमी आने की संभावना है।
और इसी वक़्त इस प्रहार ने अलगाववादियों को हार की कगार पर लगभग धकेलने में भी सफलता हासिल की है। न सिर्फ उनके संसाधनों पे लगाम लग गयी है, अपितु सरकार ने हुर्रियत के साथ बात न करने की कसम को भी बरकरार रखा है। उल्लेखनीय बात ये है की ये सब पाकिस्तान और स्थानीय सरकार के बढ़ते दबाव के बावजूद यथावत है, जिससे ये साफ ज़ाहिर होता है, की अगर हुर्रियत से सरकार बात करती भी है, तो मर्ज़ी सरकार की चलेगी, न की हुर्रियत की। जैसे एक फिल्म में कहा गया है, ‘दबाव बना रहना चाहिए’।
इतना ही नहीं, लड़ाई ज़्यादा लंबी खींचने पर हुर्रियत की स्थिति भी यथावत, जैसा की ज़ाकिर मूसा ने अपनी धमकी में ज़ाहिर किया था, की अपनी लड़ाई से ज़रा सा भी हटने पर हुर्रियत के सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। मतलब अब दुश्मन हमारी नज़रों से छिप नहीं सकता, खुले मैदान में सामने आ चुका है।
तीसरी विजय इस बात से साफ होती है, की अब यह गठबंधन पीडीपी के लिए पहाड़ सा बोझा प्रतीत होता है। उनके पास कोई चारा नहीं है सिवाय इस गठबंधन का साथ निभाने के। मोदी सरकार हमेशा महबूबा सरकार से सख्ती से पेश आई है, और हुर्रियत के साथ किसी भी बातचीत से साफ इंकार किया है। साथ ही साथ महबूबा सरकार ने ये भी सुनिश्चित किया है, की विचारों में मतभेद कहीं से भी मोदी सरकार की बुराई में न परिवर्तित हो। अभी हाल ही में महबूबा मुफ़्ती ने एक रैली सिर्फ इसलिए छोड़ दी, क्योंकि वहाँ भारत विरोधी नारे लगे थे।
मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन के पश्चात उमर अब्दुल्लाह और पीडीपी के बीच की खाई को गहराने में नरेंद्र मोदी ने काफी अहम भूमिका निभाई है। बुरहान वानी के एंकाउंटर से अपनी लोकप्रियता में भारी गिरावट देख महबूबा मुफ़्ती के लिए अब गठबंधन बनाए रखना एक विकल्प नहीं, आवश्यकता बन चुकी है। ऐसे ही नहीं 80000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज भेजा है मोदी सरकार ने, भारत का कश्मीर पे प्रभुत्व भी सम्पूर्ण विश्व को जो दिखाना है।
इन तीनों तत्वों से मोदी की नई कश्मीर नीति बनती साफ नज़र आ रही है, और आने वाले वक़्त में, ये उचित फल लाने में अवश्य सफल होंगी। ये एक व्यापक योजना है, जो शायद कश्मीर घाटी में उमड़ रहे भारत विरोधी आवाज़ों का स्थायी दमन करने में सफल भी होंगी!