अरविन्द केजरीवाल की “नई तरह की राजनीति”

“अजी ! हम तो नई तरह की राजनीति करने आये हैं” ये एक वाक्य आपने पिछले 3 वर्षों से खूब सुना होगा। आप जो सोच रहे हैं ठीक ही सोच रहे हैं। मैं बात कर रहा हूँ श्री अरविन्द केजरीवाल जी के इस वाक्य का….इस लेख में थोड़ा सा विश्लेषण करूँगा अरविन्द जी की नई तरह की राजनीति का।

ज्ञात है अन्ना हज़ारे जी ने 2011 में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नामक गैर राजनीतिक आंदोलन खड़ा करके देश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक माहौल तैयार किया था। सभी क्षेत्रों के विद्वानों ने, युवाओं ने, छात्रों ने, सभी उम्र, जाति, धर्म, वर्ग के लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया। आंदोलन का एक मुख्य मुद्दा था “जनलोकपाल कानून“…..आंदोलन तेज़ी से बढ़ा काफी हद तक सफल भी रहा (काफी हद इसलिए क्योंकि जनलोकपाल तो नहीं आया देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता जरूर आई) लेकिन जैसा की मानवीय व्यवहार है सफलता इन्सान में महत्वाकांक्षाएं बढ़ा देती है। वैसा ही हुआ… आन्दोलन के कर्ता धर्ताओं के बीच आपसी फूट बढ़ी… पद की महत्वाकांक्षाएं आईं…लोगों की भावनाओं को अवसर में बदलने की महत्वाकांक्षाएं आई और देखते देखते सभी विद्वानों ने आंदोलन से दूरी बना ली और फिर नवम्बर 2012 में जन्म हुआ नई तरह की राजनीति करने आई नई नवेली राजनीतिक पार्टी ‘आम आदमी पार्टी’ का जिसके नेता बने श्री अरविन्द केजरीवाल जी।
अब आते हैं अरविन्द जी की नई राजनीति पर…. उन्होंने अपनी पार्टी की जन्मभूमि दिल्ली में विधानसभा चुनावों में हिस्सा लिया। इस नई पार्टी ने 28 सीटें जीतकर कांग्रेस से समर्थन (सशर्त) लेकर दिल्ली में सरकार बनाई केजरीवाल जी मुख्यमंत्री बने और लोगों में उम्मीदों का संचार हुआ कि अब भारत की राजनीति बदलेगी। केजरीवाल जी ने 49 दिन बाद लोकपाल की लड़ाई में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के पीछे का मुख्य कारण था लोगों की सहानुभूति लेकर लोकसभा चुनावों में जाना और वहां पर मिली असफलता के बाद अरविन्द केजरीवाल जी ने नई तरह की राजनीति को पुन: दिल्ली के लिए केंद्रित किया। फिर से चुनावों की मांग हुई 2015 में चुनाव हुए और अरविन्द केजरीवाल जी पुन: नई तरह की राजनीति करने के लिए मुख्यमंत्री बने।
      इन 8 महीनों में अरविन्द केजरीवाल जी नई तरह की राजनीति में भ्रष्टाचार, लोकपाल के मुद्दों से ‘व्यक्ति विरोधी राजनीति’ तक पहुँच गए। कभी भ्रष्टाचारियों की नींद उड़ाने की बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल जी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘सोने नहीं दूंगा’ की नई राजनीति तक पहुँच गए। आंदोलनकारी केजरीवाल भारत के सभी नेताओं को बुरा कहते थे अब राजनेता केजरीवाल दिल्ली चुनावों के लिए ममता बनर्जी से समर्थन लिए, नितीश कुमार से समर्थन लिए और अब पिछले कुछ दिनों से वो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी के लिए समर्थन (ऑनलाइन प्रचार) मांगते दिख रहे हैं। नितीश जी ने भी (केजरीवाल जी की तरह) लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। नितीश जी के महागठबधंन में उनके साथ न्यायालय द्वारा घोषित भ्रष्टाचारी लालू यादव हैं, आंदोलनकारी अरविन्द केजरीवाल जी के कथित विरोधी कांग्रेस है (वही कांग्रेस जिनकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के 376 पन्नों के सबूत अरविन्द केजरीवाल जी बाबा रामदेव के मंच से लहरा रहे थे) अब ये कैसी नई राजनीति हुई जो अपनी विचारधारा के विपरीत लोगों के लिए वोट मांगने को कह रही है ?

दिल्ली में 2 बार चुनाव करवाकर चुनाव आयोग ने लगभग 200-250 करोड़ रुपये खर्च किये। इतने पैसे खर्च करने के बाद नई राजनीति के रूप में क्या मिला ? एक ऐसा नया नेता जो पुन: उन्हीं नेताओं को चुनने की सलाह दे रहा है जिनके खिलाफ कभी वो आंदोलनकारी बना था। वही नया नेता अब कह रहा है नितीश कुमार को वोट दीजिये। नितीश कुमार तो लगभग 10 वर्ष बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं उनके समर्थन के लिए इस नई राजनीति की क्या जरूरत ? ममता बनर्जी, नितीश कुमार इन्हीं के लिए वोट माँगना था तो नई तरह की राजनीति की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये लोग तो दशकों से राजनीति कर ही रहे हैं, ये नई राजनीति न आती तो भी ये आने वाले दशकों में राजनीति करते रहते इनको दोबारा जितवाकर क्या बदलाव आने वाला है ?

सभी नरेंद्र मोदी विरोधियों को इकट्ठा करना उनके समर्थन में वोट माँगना, नरेंद्र मोदी पर लगातार हमले करना, नरेंद्र मोदी को लगातार अपशब्द कहना ये कैसी नई तरह की राजनीति है ? ये काम तो कांग्रेस 2002 से सपा, बसपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर कर रही है। दिल्ली की सभी समस्याओं के लिए केंद्र सरकार (नरेंद्र मोदी) की जवाबदेही माँगना, हर घटना के लिए केंद्र सरकार (नरेंद्र मोदी) को जिम्मेदार ठहराना ये कैसी नई तरह की राजनीती है ? ये काम तो क्षेत्रीय पार्टियां बहुत अच्छे तरह से कर रही हैं।
एक और तथ्य आपके सामने रखना चाहता हूँ नरेंद्र मोदी 2002 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। पूरी राजनीतिक बिरादरी उनके ख़िलाफ़ थी। इन 12 वर्षों में 10 वर्ष केंद्र में कांग्रेस का शासन रहा क्या कभी किसी ने सुना की मोदी ने अपनी गुजरात की विफलता को केंद्र सरकार के मत्थे मढ़ने की कोशिश की हो। जितने भी संसाधन उपलब्ध थे उन्हीं का सर्वोत्तम उपयोग करके सभी बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, छद्म सेक्युलरों, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की खरी खोटी सुनते सुनते बिना उफ़ किये  6 करोड़ गुजरातियों के विकास के काम में लगा रहने के कारण आन देश की 121 करोड़ की जनता ने उस शख़्स को भारत के प्रधानमंत्री की गद्दी सौंपी है।
अत: अरविन्द केजरीवाल जी को अपनी नई तरह की राजनीति पर पुन: विमर्श करना चाहिए। जिस दिल्ली की जनता ने आपको बहुमत दिया उसकी भलाई के लिए बिना किसी की परवाह किये पूरे मन से जुट जाना चाहिए। अन्यथा इस नई तरह की राजनीति से देश के युवाओं का सपना टूटेगा और एक और परिपक्व राजनेता मिलेगा जैसे की पिछले 68 सालों से आते रहे हैं जो व्यक्ति विशेष का विरोध करके विरोधियों को साथ लेकर मोर्चा बनाकर सत्ता हासिल करते रहे हैं।
जय हिन्द !
Exit mobile version