जेएनयु के देशद्रोहियों, तुम लोग बुद्धिजीवी नहीं, गन्दगी फैलाने वाले मच्छर हो

जेएनयु

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तुम लोग मच्छर हो।

जवाहरलाल के नाम का ये विश्वविद्यालय कायरों की बस्ती है, बीमारी का अड्डा है।

अपने आप को प्रबुद्ध समझने वाले ये लोग कीड़े हैं जो सिर्फ़ देश के टुकड़ों पर पलते हैं, और उस पर तुर्रा ये की देश को ही बीमार करने की कोशिश करते रहते हैं। ये मच्छर सिर्फ़ एक ही भाषा समझते हैं: स्वार्थ की। ये जो अपने आप को ग़रीबों का मसीहा समझते हैं और उन्हीं ग़रीबों के दिए कर से अपनी सिगरेटें ख़रीद कर सुलगते रहते हैं। ये दग़ाबाज़ हैं हर चीज़ से, यहाँ तक कि अपने तथाकथित उसूलों से भी।

अमरीका के पिट्ठू जेएनयु के बुद्धिजीवी

अमरीकी इन्हें पसंद करते हैं। अमरीकी इन्हें useful fools यानी उपयोगी मूर्ख समझते हैं। उन्हें इनका वामपंथ भी परेशान नहीं करता क्योंकि ये लोग अपना वामपंथ भी मैले कुर्ते और फटी जींस के साथ फेंक देते हैं जैसे ही कॉलेज से निकलते हैं। हाँ अगर काम किसी मीडिया कम्पनी में लग जाए या राजनीति/NGO की बेईमान रोटियाँ सेंकने का मौक़ा मिले तो कुर्ते कलफबंद और जींस ब्रांडेड हो जातीं हैं। सिगरेटें इम्पोर्टेड, रम की जगह स्कॉच और बालों की बेतरतीबी बक़ायदा हेयर सलून में जा के कराई जाती है। (इनके उपयोगी मूर्ख होने के किस्से अमरीकी “leaked cables” में मिला करते हैं। अमरीका को सालों गाली देने के बाद उन्ही के तलवे चाटने में बड़ा स्वाद आता होगा ना, जेएनयु के इन मूर्खों को?)

जेएनयु में देशविरोधी गतिविधियों की पुरानी परंपरा है

बहरहाल अभी की घटना को देखें तो साफ़ पता चलता है कि ये कोई नया क़िस्सा नहीं है। ग़द्दारों के लिए नारे लगाना तो आम बात है इस “विद्यापीठ” में। नया सिर्फ़ ये हुआ की इस बार बात खुल गयी। इस बार विडीओ को सोशल मीडिया ने भूलने नहीं दिया। और इस बार सरकार इनके बाप की नहीं है।

जेएनयु के बुद्धिजीवी या भारत के मुख्य राजनैतिक परिवार के दास

देखिए बाप की बात पे बुरा ना मानिए। हो सकता है असल बाप को ले कर किसी किसी को कनफ़्यूजन हो, लेकिन राजनीतिक बापों को ले कर तो मामला साफ़ है। अभी तक राज इनके बापों का चल रहा था। सोनिया सरकार को अफ़ज़ल को जब मजबूरन फाँसी देनी पड़ी थी तो अपनी “लेफ़्टिस्ट” साख बचाने के लिए इन्हीं मच्छरों का साथ लिया गया था। उस समय के भी विडीओ हैं। उनमें भी ऐसे ही नारे हैं। मगर उस समय कुछ हुआ नहीं। कुछ करने की नीयत ही नहीं थी सोनिया सरकार की, और गूँगे महाराज तो शायद यही सोच के ख़ुश थे की कोई तो कुछ बोल रहा है। कोंग्रेसियों के ख़िलाफ़ नारे ना तब थे, ना आज हैं। नारेबाज़ी सिर्फ़ देश के विरुद्ध है। उन्हें पता है की पैसा भले ही देश का हो, हड्डी फेंकने वाले हाथ तो कांग्रिस के ही रहे हैं सदा से। आख़िर कुत्ता वफ़ादार तो अपने मालिक का ही होता है ना, जो बकरा अपनी हड्डी देते हुए चल बसे उससे कौन कुत्ता वफ़ादार हुआ है।

जेएनयु के बुद्धिजीवी और उनके दोहरे मापदंड

हम हैं वो बकरे। जो मेहनत करते हैं, टैक्स भरते हैं, और अपने ख़ून से इन बीमारी वाले मच्छरों को पालते हैं। लेकिन अब बस। अब सरकार भी देश हित सोचती है, अब हमें भी सोचना है। कहो जितना कहना है हमें असहिष्णु। हम अब सहन नहीं करेंगे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से ये लोग परेशान हैं क्योंकि वो हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाते हैं। जी हाँ बक़ायदा शिकायत हुई है इस बात की। उनकी मीटिंग में ये नारे सुन कर ही तो आग बबूला हुए थे ये कीड़े। अब तो उनके कान पका देंगे भारत माता के नारों से। भरो इन ग़द्दारों को जेल में, और हम जाएँगे वहाँ। मार खाने में तो शायद मज़ा आए इनको, लेकिन दिन रात जय हिंद सुन के बचा खुचा ख़ून ज़रूर खौलेगा।

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत जेएनयु कैंपस से ही होनी चाहिए

इस देश की सरकार को हमारे जैसे देशप्रेमियों की ज़रूरत है। चलिए आवाज़ उठाएँ, इनके लिबास उतार कर सबके सामने इनकी सच्चाई ला दें। इनके जो आका हैं, हिंदुस्तान में और पड़ोस में उन्हें भी तो ये पता चले किन नपुंसकों को मोहरा बना के भारत से खेल रहे थे। कई बार देखा है कि जब लिबास और मुखौटा उतरता है तो जिसे हम खलनायक समझा करते थे वो विदूषक निकालता है। वामपंथ के ये मच्छर उस पानी में उपजते हैं जो बना विद्या के लिए था शायद लेकिन अब सिर्फ़ एक गंदा तालाब है। या तो उस तालाब को पाट दें या देशप्रेम की दवा डाल कर और गंदगी को वहाँ से निकाल कर उसे एक स्वाछ जलस्त्रोत बनाएँ।

क्योंकि भाईलोग स्वछता अभियान की सबसे ज़्यादा ज़रूरत देशद्रोह की गंदगी मिटाने के लिए है।

 

फीचर्ड इमेज साभार – www.firstpost.com

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