भारत – पाकिस्तान सम्बन्ध:शांति तब तक जब तक भारत ज्यादा शक्तिशाली है

पाकिस्तान

पाकिस्तान दक्षिण एशिया की शांति और अस्तित्व के लिए 1 नासूर हैं और जब तक अस्तित्व में रहेगा तब तक नासूर ही रहेगा। यहाँ अस्तित्व का अर्थ उसके वर्तमान वैचारिक दृष्टिकोण से हैं की जब तक यह कठमुल्ला पकड़ उसको जकड़े रखेगी तब तक दक्षिण एशिया शांत नहीं रह सकता। कुछ बुद्धिजीवियो का तर्क हैं की मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध, खेल तथा कलाकारों के आदान प्रदान तथा फिल्मो के मंचन से स्थापित हो सकते हैं।

पाकिस्तान का जन्म ही हिन्दू के साथ सहअस्तित्व न देख पाने के कारण हुआ था। बटवारे का ठीकरा एक अकेले जिन्ना के सर पे फोड़ना बंद करे और सत्य को पहचाने। पाकिस्तान का नक्शा, उसका अर्थ, उसकी कल्पना किसी जिन्ना ने नहीं 1 छात्र समूह जिसकी अगुवाई चौधरी रेहमत नामक छात्र कर रहा था। धीरे धीरे इस दैत्य ने 2 नेशन थ्योरी का रूप ले लिया। भारत पाकिस्तान के मध्य 4 युद्ध लड़े जा चुके और हमेशा 1 छद्म युद्ध की अवस्था बनी रहती हैं। इसकी वजह यह हैं की मुस्लिम बहुल पाकिस्तान एक बुतपरस्त, मुर्तिद कौम को खुद से आगे बढ़ता नहीं देख सकता। एक ऐसी कौम जिसपे उसने 1000 साल तक राज किया और 1947 में वह उसके साथ सत्ता की साझीदार बनने वाली थी। इससे पहले ऐसा होता, बटवारा हो गया लेकिन खुद को छोटा पाना आज भी पाकिस्तानी जेहनियत का हिस्सा हैं।

यह वही जेहनियत हैं जोकि पाकिस्तानी स्कूली किताबो में बताई जाती हैं की उसने हिन्दू भारत से 4 जंग फ़तेह की और हिंदुस्तान हर माजरे में पाकिस्तान से उन्नीस हैं।1965 की लड़ाई में ग़ज़वा ए बद्र के शोहदे सफ़ेद घोड़े पे बैठ कर आसमान से उतरे और हिन्दुस्तानी फौजियों को काट पीट आये।

दक्षिण एशिया का अशांत स्थिरता का माहौल जैसा भी कामचलाऊ हैं, तभी तक हैं जब तक भारत सैन्य और सामरिक रूप से पाकिस्तान से श्रेष्ठ हैं और जब तक पाकिस्तान इस हकीकत से वाकिफ हैं। जिस दिन भी पाकिस्तान रत्ती भर भी सैन्य क्षमताओ में भारत से आगे निकल भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिणी सूडान या इराक में बदलने में बहुत देर नहीं लेगा और यह बात बाकी उपमहाद्वीपीय देश जैसे की बांग्लादेश, नेपाल,भूटान के लिए भी हाज़िर-नाज़िर हैं।
मुस्लिम पाकिस्तान में 67 साल में शिया,अहमदिया,ईसाई आदि पंथो की सफाई व्यापक रूप से हो रही हैं। पाकिस्तान के 2 नोबेल पुरस्कार विजेता,मलाला यूसुफ़ज़ई और प्रोफेसर अब्दुस समद हुए। 1 देश से निर्वासित हैं क्योंकि वह औरत हैं और दूसरे की कब्र इस वजह से खुद गयी की वह अहमदिया था।इस से आप अंदाज़ा लगाये की पाकिस्तान जिसे की जिन्ना ने इस्लामिक सिद्धांतो की प्रयोगशाला बताया था किस प्रकार अपने अनुसंधान में अनुतीर्ण रहा। इस प्रयोगशाला से ईश-निंदा पे वाजिब उल क़त्ल का फार्मूला ही विकसित हो पाया।

पाकिस्तान जैसे खतरे के लिए ही आवश्यक हैं की भारत सामरिक तथा सैन्य रूप से सक्षम रहे ।

ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का वोह आह्वाहन की पाकिस्तनी वह कौम हैं जो हज़ार साल तक हिन्दुओ से जंग लड़ेगी और एटमी ताकत बन कर रहेगी भले उसके लिए उसे घास ही क्यों न खानी पड़े, मात्र 1 जुमला नहीं था नाही भुट्टो की कोरी कल्पना। भुट्टो एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि था जो जानता था की आवाम क्या चाहती हैं।

इसलिए यह मोमबत्ती जला कर कल्पना करना की 1 दिन पाकिस्तान और भारत एक हो जायेंगे तो यह 1 शेखचिल्ली की सोच से ज़्यादा कुछ भी नहीं।

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