मोदी सरकार ने जैसे ही JNU के भीतर पल रहे सपोलो को कसना शुरू किया ठीख तभी अमेरिकी विश्वविद्यालयों के कुछ 455 शिक्षको ने 1 संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर भारत सरकार के इस निर्णय की भर्त्सना की और इसे छात्रो पर हो रही ज़्यादती अथवा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 1 कठोर प्रतिघात बताया।
भारतीय वाम जोकि आमतौर पे अमेरिकी विचारधारा को अपना चिर वैचारिक प्रतिद्वंदी मानता हैं, ने इस विज्ञप्ति के बहाने मोदी सरकार को तानाशाह, फासीवादी आदि इत्यादि बताया।
इस 455 लोगो की सूची पे 1 नज़र मारी तो कुछ नाम सामने निकल कर आये और लगा की इन मित्रो को निकट दृष्टि दोष हैं। अमेरिका और अमेरिकी मानसिकता को अपने दोष दिखाई नहीं देते और दुसरो के दोष गिनाने से वह चूकते नहीं।
ख़ैर स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की बात उठी हैं तो गरीब एडवर्ड स्नोडेन और जूलियन पॉल असांज के नाम का ज़िक्र यो होना ही चाहिए। इन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी दिखानी चाही तो निर्वासित जीवन बिताने को मजबूर हो गए। वह तो भला हैं की छद्म शीत युद्ध के कारण इन्हें सर छिपाने को आसरा मिल गया वरना कानून की दफा इतनी दफा लगती की बेचारे दुनिया से दफा हो लेते।
यह वही अमेरिका हैं जिसने ” occupy Wall street” आंदोलन का ऐसा क्रूर दमन किया था की चीन का टीएननमेंन चौक आंदोलन का दमन याद आ जाये। पर वो अमेरिकी बुद्धिजीवी शेल्डन पोलाक और नोअम चोम्स्की को दिखाई नहीं देता या शायद वह देखना नहीं चाहते। इसी 455 ब्रिगेड में 1 नाम नोबेल पुरस्कार विजेता ओरहान पामुक का भी था। यह जनाब तुर्की से हैं और इन्हें तुर्की सरकार द्वारा कुर्द समुदाय का दमन दिखाई नहीं देता और ना ही ISIS का तुर्की सरकार द्वारा किया जा रहा परोक्ष संरक्षण दिखाई दे रहा हैं। न इन भाई साहब को यह दिखाई दे रहा हैं की कैसे एरडोगन सरकार ने मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्षता की विरासत को नष्ट किया हैं और कैसे आज का तुर्की ISIS का एजेंट ज़्यादा नज़र आता हैं।
ख़ैर उपदेश 1 ऐसी चीज़ हैं जो होती सबके पास हैं और उसे देना भी हर कोई चाहता हैं पर कोई लेना नहीं चाहता। यही बात शेल्डन पोलाक,नोअम चोम्स्की और ओरहान पामुक को समझनी चाहिए की भाई सफाई पहले खुद के गिरेबां से करो,दूसरे के दामन के दाग बाद में गिनाना।