सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को विश्व के सबसे धनाढ्य और भारत में क्रिकेट के सर्वे-सर्वा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड( बीसीसीआई ) में ढांचागत सुधारों और बदलावों का रास्ता साफ़ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणियों के साथ लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों पर अपनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ बीसीसीआई के अड़ियल रुख और आपत्तियों को खारिज करते हुए उसे परिवर्तन बनाये रखने और परिवर्तन स्वीकार करने की सीख दी है।
राजनीति का अड्डा बन चुकी बीसीसीआई में परिवर्तन का यह अहम और ऐतिहासिक फैसला मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर व न्यायमूर्ति फकीर मोह्हमद इम्ब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ बीसीसीआई की ज्यादातर आपत्तियां खारिज कर दी। अब फैसला आ गया है और इसके क्या परिणाम होंगे, क्या है ये पूरा मामला और कैसे शुरू हुआ, लोढ़ा कमेटी कौन है इत्यादि प्रश्नों के उत्तर सटीक आंकड़ो एवं विश्लेषण के साथ मैं देने का प्रयास करूँगा, उम्मीद करता हूँ कि आप तल्लीनता से इसे पढ़ेंगे।
क्या है लोढ़ा कमेटी और इसका गठन क्यों हुआ ?
पिछले साल 22जनवरी को, जब सुप्रीम कोर्ट आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में सुनवाई कर रहा था तो उसने बीसीसीआई के संविधान में एक विवादित क्लॉज़ पे प्रश्न उठाया जिसमे बोर्ड अधिकारीयों को आईपीएल और चैंपियन लीग टी-20 में व्यापारिक हितों के संबंध में छूट प्रदान की गयी थी। इसी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस आर एम लोढ़ा कि अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की जो मयप्पन और कुंद्रा तथा उनकी फ्रैंचाइज़ीयों के लिए सजा का निर्धारण करती और उसके साथ ही ” खेल में भ्रष्टाचार के रोकथाम, हितों के टकराव रोकने तथा बोर्ड को जनता के प्रति जिम्मेदार बनाने की दृष्टि से ” कमेटी को बीसीसीआई में संभावित बदलावों कि सूचि तैयार करके सुझाव देने को कहा गया था। इसी कमेटी का नाम लोढ़ा कमेटी रखा गया था।
लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें क्या थी ?
अप्रैल 2015 में लोढ़ा कमेटी ने बीसीसीआई को 82-बिंदुओं की एक प्रश्नावली भेजी, जिसमे चुनाव के तरीकों और संविधान संशोधन की प्रक्रिया पे सवाल किये गए थे। बोर्ड कार्यकारणी में पारदर्शिता की मांग भी कमेटी ने करी थी और इसके प्रस्तावित संशोधन बीसीसीआई की नीव को हिलाने वाले थे। आइये कमेटी द्वारा प्रस्तावित प्रमुख संशोधनों पे एक नजर डालते हैं:-
- लोढ़ा कमेटी ने बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे में लाने की सिफारिश की थी।
- क्रिकेट में बेटिंग को कानूनी दर्ज़ा देने की सलाह थी।
- एक व्यक्ति, एक पद के सख्त नियम को मानने की सिफारिश थी।
- बीसीसीआई में किसी को भी दो बार से अधिक का कार्यकाल नहीं मिलना चाहिए।
- किसी भी मंत्री तथा सरकारी कर्मचारी को बीसीसीआई में स्थान नहीं मिलना चाहिए।
- कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक अध्यक्ष नहीं बन सकता है।
- सत्तर वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति संस्था में नहीं बना रह सकता है।
- कमेटी ने आईपीएल और बीसीसीआई की गवर्निंग बॉडी भी अलग-अलग करने की सिफारिश करी थी।
- कोई भी फ्रैंचाइज़ी का सदस्य गवर्निंग कॉउंसिल में नहीं होगा।
- विज्ञापन केवल लंच/टी और इनिंग ब्रेक के दौरान ही दिखाये जायें।
बीसीसीआई को किन सिफारिशों पे आपत्ति थी ?
बीसीसीआई ने लोढ़ा कमेटी की कुछ सिफारिशों पे अपनी आपत्ति जाहिर की थी। आईये समझते हैं क्या आपत्ति थी बोर्ड को:-
- एक पद एक व्यक्ति पे बीसीसीआई को इसलिए आपत्ति थी क्योंकि बोर्ड अहम सदस्य एक से अधिक पदों पे थे। बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख भी हैं, सचिव अजय सीकरे भी एमसीए के प्रमुख हैं।
- एक राज्य एक एसोसिएशन, क्योंकि महाराष्ट्र और गुजरात से तीन वोट हैं तो यह वोटिंग व्यवस्था को नुकसान पहुंचायेगा ऐसा बीसीसीआई का कहना था। गुजरात, सौराष्ट्र, बड़ोदा, मुंबई और महाराष्ट्र मिलकर वेस्ट-जोन ब्लाक बनाते हैं (विदर्भ सेंट्रल जोन में है) जो की सबसे ताकतवर और प्रभावशाली गठबंधन है।
- लोढ़ा कमेटी ने यह सिफारिश कि थी की विज्ञापन केवल लंच/टी और इनिंग ब्रेक के दौरान दिखाए जाये, इसके विरोध में बोर्ड का मत था कि ऐसा करने से उसे काफी वित्तीय घटा होने की आशंका है।
- कमेटी की प्रमुख सिफारिशों में से यह भी था की सत्तर की उम्रसीमा पार कर चुके लोगों को बोर्ड में कोई स्थान नहीं मिलेगा। बोर्ड के बड़े नामों में शुमार एन श्रीनिवासन, शरद पवार, निरंजन शाह पे इसका सीधा असर पड़ता, स्वाभाविक रूप से इसका विरोध होना ही था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में क्या कहा ?
अप्रैल महीने में ही सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिशों को अमल में लाने के लिए कहा था, परन्तु बीसीसीआई के अड़ियल रवैये के कारण इसपे संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने अब हरेक विषय पर बारीकी से व्याख्यान देने के बाद फैसले पर अंतिम मुहर लगा दी है। फैसला कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही लिया गया है और फैसले में जो बातें सुप्रीम कोर्ट ने कही है वो इस प्रकार हैं:-
- बीसीसीआई में पदासीन सभी लोगों की उम्रसीमा 70साल होगी, जो इससे अधिक उम्र के हैं उन्हें इस्तीफा देना होगा।
- कैग के एक सदस्य को गवर्निंग कौंसिल में शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है।
- बोर्ड कार्यकारणी में मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करते हुए कोर्ट ने कहा की इन लोगों को अयोग्य ठहराए जाने की कमेटी की सिफारिश एकदम सही हैं। कोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा की उसे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता कि मंत्री और अधिकारीयों के बीसीसीआई में रहने से ही खेल फल-फूल सकता है वे इसलिए बोर्ड की इस दलील में कोई दम नहीं है की बोर्ड में जगह नहीं मिलने से ये खेल की प्रोन्नति में मदद नहीं करेंगे क्योंकि जो खेल के प्रति रूचि रखते हैं वो खेल के उत्थान के लिए जरूर मदद करेंगे।
- कोर्ट ने साफ़ कर दिया की एक राज्य एक वोट होगा। जिन राज्यों में एक से अधिक खेल संघ हैं उन्हें रोटेशन के आधार पे वोट का अधिकार मिलेगा।
- विज्ञापन संबधी पॉलिसी के सारे अधिकार बीसीसीआई के पास सुरक्षित रहेंगे, यानि की लोढ़ा कमेटी की विज्ञापन वाली सिफारिश को नामंजूर कर दिया गया है।
- पुरुष और महिला खिलाड़ियों का अलग-अलग एसोसिएशन होगा और इसकी फंडिंग बीसीसीआई करेगी।
- बीसीसीआई को आरटीआई के अन्तर्गत लाने का काम कोर्ट ने संसद को सौंप दिया है मतलब की अब इसके लिए एक बिल पारित किया जायेगा और उसके साथ ही क्रिकेट में सट्टेबाज़ी को मान्यता देने के लिए भी एक कानून बनाया जायेगा।
- इन सभी बदलावों को लागु करवाने की जिम्मेदारी लोढ़ा पैनल पे होगी और उन्हें ये कार्य छः माह के भीतर करना होगा।
अब बीसीसीआई में बदलाव की हवा तो बहनी तय हो चुकी है मगर इसमे बोर्ड के बड़े दिग्गजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं यहाँ तक कि अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
कई लोगों की बोर्ड से विदाई तय मानी जा रही और आने वाले समय में हमे कई नये चेहरे देखने को मिल सकते हैं। बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारी और आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला ने कहा है की व सभी न्यायालय के बोर्ड के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव के फैसले का सम्मान करेंगे और लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागु करने की दिशा में प्रयास करेंगे। अब बीसीसीआई में बैठे लोगों को चाहे हंसकर, चाहे रोकर, कोर्ट की बात तो माननी ही पड़ेगी क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं की इस देश में ज्यादातर मामलों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही सुप्रीम होता है। पूर्व क्रिकेटरों ने भी इस फैसले पर ख़ुशी जतायी, बिशन सिंह बेदी और कृति झा आज़ाद ने ट्वीट कर के सुप्रीम कोर्ट की तारीफ की। यह फैसला हर मायने में ऐतिहासिक है और इससे पारदर्शिता को बढ़वा मिलने के साथ ही चाहे-अनचाहे और देर-सवेर दूसरे खेल संघो में भी बदलाव होंगे। मेरा तो यही मानना है की देश में खेल का भविष्य उज्जवल है और इस फैसले से सिर्फ अपना हित सोचने वालों को परेशानी होगी।