क्या हो, यदि आप के साथ एक ऐसा हादसा हो जाये, जिसके लिए आप जिम्मेदार ही नहीं हैं, पर उस हादसे से आप फिर से अपनी ज़िंदगी बेफिक्र न जी पाये? क्या हो, यदि वही हादसा आपके लिए ज़िल्लत का एक जीता जागता प्रतीक बन जाये, कुछ ऐसा ही हुआ, जब 30 जुलाई की काली रात को बुलंदशहर से थोड़ी दूरी पर स्थित, नई दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय हाइवे 2 पर एक परिवार को नकाबपोश लुटेरों ने न सिर्फ लूटा, परंतु उस परिवार की एक महिला और उसकी 13 साल की मासूम बेटी के साथ वीभत्स बलात्कार भी किया, जिससे उत्तर प्रदेश में फैले मौजूदा ‘जंगल राज’ की एक भयानक झांकी सम्पूर्ण भारतवर्ष को देखने को मिली।
जिनहे नहीं पता है की बुलंदशहर में वास्तव में क्या हुआ, उन्हे संक्षेप में :-
30 जुलाई की रात, एक परिवार बुलंदशहर के रास्ते नई दिल्ली की तरफ जा रहा था। राष्ट्रीय हाइवे 2 पर, दोस्तपुर गाँव के पास उनकी गाड़ी पर किसी ने लोहे की छड़ (Axle) फेंकी। अपनी गाड़ी की सुरक्षा के लिए परिवार के कुछ सदस्य गाड़ी रोककर बाहर निकले, तो करीब 12-15 बंदूकधारी (अभी पूरी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुयी है) नकाबपोश राक्षसों (इन्हे इंसान तो नहीं ही कह सकते हैं) ने पूरे परिवार को चारों तरफ से घेर लिया।
बंदूक सबके सिर पर तानते हुये राक्षसों ने न सिर्फ उन्हे लूटा, बल्कि हाइवे से नीचे कुछ घनी झाड़ियों के पास पुरुष सदस्यों और उनके साथ उनकी वृद्ध माता को बांधते हुये, उस परिवार की एक महिला और उसकी 13 साल की बेटी को अपने साथ ले गए, और उसके बाद जो हुआ, उसके बारे में कोई भी सभ्य व्यक्ति का खून खौलने लगेगा। उन दोनों के साथ उन राक्षसों ने वीभत्स, समूहिक बलात्कार, और उनके परिवार वाले चाहकर भी कुछ न कर पाये।
उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद जो हुआ, वो न सिर्फ हृदयविदारक था, बल्कि उसे सुनकर कोई भी मनुष्य उत्तर प्रदेश की संवेदनहीन पुलिस को कोसे बिना नहीं रह पाएगा। राष्ट्रीय हाइवे 2 पर कोई पुलिस चौकी नहीं थी, और जब पीड़ित परिवार रिपोर्ट लिखाने गया, तो स्थानीय पुलिस ने ज़बरदस्त बदसलूकी की। न पीड़ितों की फरियाद सुनी, न बलात्कार पीड़ित सदस्यों, यहाँ तक की दर्ज एफ़आईआर की कॉपी तक नहीं दी। इतना ही नहीं, जांच करने वाले डॉक्टर ने भी पीडिताओं से बदसलूकी की। परिणामस्वरूप वह 13 साल की मासूम बच्ची अवसाद से ग्रस्त हो गयी है, और जहां तक सुना है, उसने उस घटना के बाड़े से कुछ खाया भी नहीं है। इससे त्रस्त होकर पीड़ित परिवार ने यह ऐलान कर दिया की यदि उनके साथ त्वरित न्याया, तो वे सब आत्महत्या कर लेंगे!
इसे सुनके तो आप भी बोलेंगे, यह कैसी पुलिस है? पर आप भूल रहें है, ये यूपी की पुलिस है, जिसे चलाने वाली सरकार के पार्टी सुप्रीमो के कुछ यह विचार है बलात्कार पे, ‘लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है! उसके लिए क्या फांसी पे चढ़ा दें?’ इस सरकार को चुनने वाले उत्तर प्रदेश की जनता पर दया ही आ सकती हैं, क्यूंकी जब ओखली में सिर दिया है, तो मूसलों से क्या डरना!
यूपी सरकार ने कुछ नहीं किया? किया क्यों नही, आनन फानन में अखिलेश यादव जी ने बुलंदशहर के एसपी, एसएसपी, और जिस थाने ने पीड़ित परिवार को शर्मिंदा किया, उसके थानेदार और बाकी पुलिस सिपाहियों को निलंबन थमा दिया। उन 12-15 राक्षसों में से करीब 5 पकड़ भी लिए गए हैं। पर उनके शहरी विकास मंत्री आजम खान ने तो गजब ही कह दिया। उनका कहना है, की यह सब विपक्ष की चाल है। विपक्ष ने तो बदायूं में गुंडे नहीं भेजे थे, विपक्ष ने तो मथुरा में रामवृक्ष यादव को शह नहीं दी थी। तो विपक्ष का गोला क्यूँ फेंक रहे हो सबको अंधा करने के लिए?
बुद्धिजीवियों की बुलंदशहर बलात्कार पर क्या प्रतिकृया रही? प्रतिक्रिया और भारत के बुद्धिजीवी? पहली बात तो यह, की इस देश में अभी सच्चे बुद्धिजीवियों की भारी कमी है, और दूसरी बात, अपने देश के बुद्धिजीवी ऐसे विषयों पर मौन रहते हैं। गुजरात के कथित ऊना काण्ड पर सरकार की चीर फाड़ करने वाले यह बुद्धिजीवी आतंकवादी जिस तरह बुलंदशहर के इस भयानक काण्ड पर मौन साधे हुये हैं, वो तो कोई और ही सच्चाई बयां कर रही है। न बुर्का (माफ कीजिएगा, बरखा, पर यह अपने नाम के शायद लायक ही नहीं है) दत्त ने कश्मीर मुद्दे की तरह संवेदना के दो आँसू टपकाए, न ही सागरिका घोष ने अपने शब्द बाणों से अखिलेश सरकार को घायल किया, और आश्चर्यजनक रूप से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी जी का इस्तीफा भी नहीं मांगा। इतना ही नहीं, बुर्का दत्त ने बलात्कार के एक दोषी, महमूद फारूकी पर अदालत के फैसले पर ही सवाल उठा दिया, जबकि बुलंदशहर की घटना को अपने ही शब्दों में मामूली करार दे दिया। यकीन नहीं होता, तो खुद ही देख लीजिये:-
ऐसी क्रूरता को देख कर मैं तो यही कहना चाहता हूँ, काश यह पीड़ित परिवार दलित या मुसलमान होता………… नकली ही सही, कम से कम इनकी संवेदना तो जागती, और शायद त्वरित न्याय भी मिलता। पर यह हिंदुस्तान है, यहाँ पीड़ितों को न्याय लाख पापड़ बेलने और धक्के खाने पर ही मिलता है, और कभी कभी कश्मीरी पंडितों की तरह वह भी नहीं नसीब होता।
विडम्बना की बात तो यह है, की जबसे फ़रवरी 2012 में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली है, तबसे विकास चाहे जो किया हो, जुर्म का ज़्यादा बोलबाला था। चाहे वह 2013 के वीभत्स मुजफ्फरपुर के दंगे, या 204 के मोहंगंज में हुआ वीभत्स बलात्कार, चाहे 2015 में बिसहड़ा में हुआ मौत का नंगा नाच हो, या फिर हाल ही में हुये मथुरा और कैराना कांड, अखिलेश यादव की सरकार ने कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर मूंह की खाई है। पर लगभग हर सरकार की तरह, दोष हमेशा विपक्ष पर ही मढ़ा है, चाहे कुछ भी रहा हो।
उत्तर प्रदेश के ‘जंगल राज’ की तस्वीर कैसे बुलंदशहर के इस वीभत्स काण्ड में झलकती है, इसका अंदाज़ा आप इस राज्य की जुर्म के दर से ही लगा सकता है। 2014 में भारत सरकार के नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा प्रकाशित क्राइम रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश का क्राइम रेट (यानि जुर्म दर), सबसे वीभत्स और सबसे बुरा था समस्त राज्यों में। आंकड़ों के अनुसार:-
2014 में हिंसक अपराध, जो आईपीसी के तहत दर्ज हुये, उनकी संख्या 3,30,754 थी, जो 2013 के मुक़ाबले 2.2% ज़्यादा थी। इसमें उत्तर प्रदेश का योगदान सर्वप्रथम था, जिसमें 41886 केस हिंसक अपराधों के तहत दर्ज हुये, जो पूरे देश में हुये अपराधों के दर का 12.7% है। हत्या और गैर इरादतन हत्या में भी हम यूपी वालों ने बाज़ी मारी है। गैर इरादतन हत्या में करीब 42.4% (3332 में से १४१२) और हत्या में 15.2% (33981 में से 5150) के साथ हमने अपराध जगत की हर सीमा को बेशर्मी से लांघा है।
इतना ही नहीं, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भी उत्तर प्रदेश सर्वोपरि है। 2014 की इसी रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं पर हुये अपराधों की दरों के अनुसार, उत्ता प्रदेश पूरे भारत में सबसे अव्वल है! यहाँ तक की महिलाओं के अपहरण और मानव तस्करी के मामलों में भी पूरे देश को हम पीछे छोडते आए हैं। अब भी कहेंगे की जंगल राज यूपी में नहीं है?
ये तो कुछ भी नहीं है। खुद यूपी पुलिस के 2015 के क्राइम रिपोर्ट के अनुसार, कुल दर्ज अपराध 2014 के मुक़ाबले काफी ज़्यादा है। 2014 में दर्ज 2663805 मामलों के मुक़ाबले, 2015 में 2791341 केस कुल मिलाकर आईपीसी और विशेष स्थानीय कानून (SLL) के तहत दर्ज हुये, जो 2014 के मुक़ाबले 5.98% ज़्यादा हैं। यह तो सिर्फ दर्ज आंकड़े हैं, और अगर यही आपके रोंगटे खड़े होने को विवश कर दें, तो सोचिए, अगर यूपी में न दर्ज हुये मामले भी इकट्ठे सामने आ जाए, तो क्या होगा?
इसका निष्कर्ष क्या निकलता है? जब उत्तर प्रदेश के चुनाव महज छह महीने दूर हों, तो ऐसे में एक जागरूक नागरिक का यह फर्ज़ बनता है, की अपने साथियों और समस्त समाज को आने वाले हर खतरे से आगाह करें। बिहार वाले पहले ही ‘सुशासन बाबू’ की असलियत झेल रहे हैं, हम यूपी वाले ये गलती कदापि न करें।
जो पार्टी बलात्कार को महज ‘लड़कों की गलती’ मानती हो, उसे दोबारा चुनना, और वो भी इन कांडों के प्रति इनकी संवेदना देखने के बाद तो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा। सोच समझकर चुने, वरना अगर समाजवादी पार्टी सत्ता में वापस आ गयी, तो कानून और व्यवस्था का क्या होगा, इसका तो भगवान ही मालिक है।
Source :-
http://indianexpress.com/article/blogs/a-land-called-crime-pradesh/
National Crime Records Bureau Official Report, 2014
Uttar Pradesh Police Crime Records Bureau Official Report, 2015