राजनीती में छवि बनाने-बिगाड़ने का खेल कितना सतत है, इसका ताज़ा उदाहरण मिला 19 मार्च के बाद, जो मीडिया योगी आदित्यनाथ के आगे विवादास्पद का विशेषण जोड़े बिना एक वाक्य नहीं बोल पाता था, उत्तराखंड से लेकर गोरखपुर तक उनके समाजिक क्षेत्र की उपलब्धियां गिनाता नहीं थक रहा हैं। ख़ैर ये तो उगते सूरज के सामने मीडिया का 24 घण्टे चलने वाला सूर्य-नमस्कार था, लेकिन बात अस्त “सूरज” की भी कर लेते हैं। बात टीपू भैया की हैं।
छल का हर दांव जानने वाले पहलवान के घर सन 1973 में पैदा हुए उसी नैन-नक्श के अखिलेश यादव। लेकिन टीपू भैया ने अपने पिता की छवि पे लगे बट्टे और उसी 2 कौड़ी के छवि के चलते नब्बे के दशक में प्रधानमंत्री की कुर्सी के खिसक जाने से, बहुत कुछ सीखा। खैर ये टीपू भैया ने शायद टीपू सुल्तान का इलाका रहे मैसूर में 4 साल की पढाई के दौरान सीखा होगा। इंसान घर के बाहर निकलता है तो चार अच्छी बात सीख ही जाता है।
इन्होंने भी बहुत कुछ सीखा होगा, जिसमें ये भी था कि जनता बड़ी भोली है और वैज्ञानिक चिंतन कत्तई नहीं करती। ढेला भर का काम न करो, संघ लोकसेवा आयोग को “यादव सेवा आयोग” बना दो, लेकिन छवि एक पढ़े-लिखे, सौम्य और मृदुभाषी की बनी रहे तो आँख में धूल झोंक ही देंगे, उसी में लगे हाथ अपना सारा पाप अपने चचा शिवपाल को ओढ़ा दो तो सोने पे सुहागा। फिर जो मीडिया नरेंद्र मोदी के टक्कर का हीरो खोजने निकली है वो तुमको हाथो-हाथ लेने में कहाँ देर लगाने वाली है?
लेकिन इसमें टीपू भैया ये भूल गए कि राजनीति अंकगणित (Arithmetic) कम और रसायन विज्ञान (Chemistry) ज्यादा है और यहाँ इन्होंने अपने साथ ऐसा रसायन चूर्ण चुना जो पिछले दसियों चुनाव से अपने साथ वाले को केवल चूना लगा रहा है, जी हाँ पानी में भी आग लगाने वाली आँधी – श्रीमान राहुल गाँधी।
अमित शाह को अगर मोदी जी के बाद किसी से सबसे ज्यादा सीट जीताने की उम्मीद थी तो वो थे राहुल जी। और ये राहुल भी दीवार ही हैं – बस काँग्रेस और जीत के बीच की दीवार।
टीपू भैया ने अपनी खासी लम्बी नाक से पराजय तो पहले ही सूँघ ली थी, लेकिन ये नहीं सोचा था कि अर्धशतक बनाना मुश्किल हो जाएगा। फिर क्या था, आग तो तब लगी, जब योगी गृह शुद्धि करवा दिए। अब जहाँ बैठ कर मीडिया वालो को फिर से इंटरव्यू देने का सपना देखा था वहाँ तो नाथ सम्प्रदाय के महंत ने डेरा डाल दिया। जिसका साथ यूपी को कितना पसन्द है ये समझाने के लिए 404 में से 325 लोग भेज दिए गंगा-जमुना के प्रदेश ने। अब भईया जिस गंगा जी में तुम्हारी कृपा से चलने वाले अवैध बूचड़खानों का खून मिला हो उस गंगा जल को पहले योगी थोड़ा शुद्ध तो कर लें, फिर छिड़कते रहना जहाँ छिड़कना है। लेकिन योगी जी बहुत कुछ पवित्तर करने निकले हैं, जिसमें समय लगेगा और जब वो हो गया तब लोगों को आपकी याद आएगी इसकी उम्मीद बहुत कम है।
बाकि राजनीत उम्मीद का खेल है, खेलते रहिये,और भले ही 5 कालिदास मार्ग अब आपका घर नहीं है तो क्या हुआ? मुस्कुराइये आप लखनऊ में तो हैं।