जब से माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात से बाहर निकल कर केंद्र की राजनीति में कदम रखा है , तब से भारतीय जनता पार्टी निरंतर रूप से सफलता के नित्य नए आयाम स्थापित करती जा रही है।
2014 के लोकसभा चुनावों में मिली अप्रत्याशित सफलता के पश्चात अनेक राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने दम पर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनायी है जिनमें झारखण्ड, महाराष्ट्र, असम, अरुणाचल प्रदेश , हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं। इसके अलावा भाजपा ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश में भी सरकार का गठन किया है। हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने बहुत शानदार प्रदर्शन करते हुए चार राज्यों में सरकार बनाने में सफलता हासिल की है जिसमें उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में मिली प्रचंड बहुमत ने सभी मोदी विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। अगर दिल्ली, बिहार और पंजाब की विफलताओं को दरकिनार कर दें, तो मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा का प्रदर्शन काबिले-तारीफ रहा है।
एक ऐसे समय में जब उत्तर-पूर्व और दक्षिण में भी भाजपा का विस्तार हो रहा है, तो पश्चिम बंगाल एक ऐसा प्रदेश है जहाँ भाजपा उल्लेखनीय सफलताएं नहीं हासिल कर पाई है और इसका प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है। 2014 में मोदी लहर के बावजूद भी भाजपा बंगाल में 42 लोकसभा सीटों में से महज दो पर ही जीत हासिल कर पाई थी।
पश्चिम बंगाल में प्रारंभ से ही वामपंथियों और वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों का दबदबा रहा है तथा उनका गढ़ भी माना जाता रहा है, लेकिन ममता बैनर्जी ने माँ, माटी, मानुष के नारे के साथ जब बंगाल में इतिहास रचते हुए तृणमूल कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत दिलाई तो सभी राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण गलत साबित हो गए थे।
सभी लोगों को उम्मीद जगी थी की शायद वामपंथियों के कुशासन में गर्त में जा चुका प्रदेश स्वावलंबी होने की दिशा में अग्रसर होगा और अटकलें तो ये भी लगायी जाने लगी थीं कि ममता बैनर्जी NDA में शामिल हो सकती हैं। परंतु ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अधिक प्राथमिकता देते हुए भाजपा के साथ आने के मोदी जी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
और जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में ममता बैनर्जी ने मुस्लिम तुष्टिकरण की हदें पार कर दी हैं, राज्य के लोग सत्ता परिवर्तन के लिए लालायित हो चुके हैं। आए दिन वामपंथियों और तृणमूल कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी की खबरें सामने आती हैं लेकिन जनता की सुध लेने वाला कोई नहीं है। जिस तरह से हिन्दू समुदाय के लोगों पर अत्याचार हुए हैं चाहे वह धुलागढ़ में हुए दंगों में हिंदूओं के साथ हुई बर्बरता पर प्रशासन का मूक दर्शक बने रहना हो या फिर विद्यालयों में सरस्वती पूजा आयोजित करने पर प्रतिबंध लगाना, इस तरह की अनेक घटनाओं ने न सिर्फ ममता सरकार की नीयत पर गंभीर प्रश्न चिह्न लगाए हैं बल्कि उनकी प्रशासनिक विफलताओं को भी उजागर किया है। वोट बैंक की खातिर अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों पर कोई कार्रवाई ना करना भी आने वाले चुनावों में एक अहम भूमिका निभा सकता है।
खासकर वर्तमान राजनीतिक परिवेश में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत ने मुस्लिम वोट बैंक के मिथक को ध्वस्त कर दिया है, ऐसे में ममता जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी हाशिये पर जाती हुई दिख रही है। विशेषकर बंगाल की ताज़ा परिस्थितियों में उत्पन्न हुए नए राजनीतिक समीकरणों के अनुसार बंगाल में जबरदस्त उलट ध्रुवीकरण का माहौल है क्योंकि ममता सरकार की हिन्दू विरोधी रवैये से नाराज़ पूरा हिन्दू समुदाय भाजपा के पक्ष में एकजुट हो सकता है।
जिस तरह से यूपी और उत्तराखण्ड में विमुद्रिकरण का विरोध करने वालों की दुर्गति हुई है, उसने ममता जी की रातों की नींद भी उड़ा दी होगी क्योंकि इस लोकप्रिय निर्णय का विरोध करने में उन्होंने बंगाल से दिल्ली तक कोहराम मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। और जनता भी यह भली भांति समझ चुकी है कि विमुद्रिकरण से सिर्फ धनाढ्यों , बड़े कारोबारियों और राजनेताओं आदि को ही तकलीफ हुई है जिन्होंने अवैध संपत्ति जमा कर रखी थी। वैसे भी शारदा चिट फण्ड घोटाले में ममता सरकार सवालों के घेरे में आ चुकी है क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं पर इस केस में गंभीर आरोप लगे हैं । हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने नारद स्टिंग को भी वैध घोषित कर दिया है जिसमें तृणमूल के कई मंत्री और सांसद कथित रूप से सहायता करने के एवज में पैसे लेते हुए कैमरे में कैद हो गए थे। भ्रष्टाचार के इन सभी आरोपों का जवाब भी जनता आने वाले चुनावों में देगी।
बंगाल में ममता सरकार की हिटलरशाही नीतियों का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बंगाल सरकार द्वारा पारित किए गए सार्वजनिक व्यवस्था संरक्षण सुधार विधेयक के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति सरकार की नीतियों या व्यवहार का विरोध करता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। तथा पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय एवम् महाविद्यालय विधेयक के अनुसार अब विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों की नीतियां और प्रबंधन सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे। यह अपने आप में शिक्षण संस्थानों की स्वायत्ता पर एक बड़ा हमला है।
इस तरह ही निरंकुश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पश्चिम बंगाल के लोग एक स्वस्थ विकल्प की तलाश में हैं जो मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा प्रदान कर सकती है।
निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि भाजपा के आगामी चुनावों में एक उपयुक्त अवसर है बंगाल की राजनीति को परिवर्तित करने का ।आरएसएस और भाजपा को पूरी मजबूती के साथ हिन्दुओं के हक़ के लिए आगे आना चाहिए। अभी विधान सभा चुनाव पूरे चार साल दूर है. तैयारी अभी से करने की जरुरत है।
अगर वो संगठित होकर एक मजबूत रणनीति के साथ मोदी जी के नेतृत्व में बंगाल के अखाड़े में उतरते हैं, तो वामपंथियों और तृणमूल का सूपड़ा साफ हो सकता है।